भाड़ में जायें किसान और किसानी
2 अक्तूबर 1988 को छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने रायपुर में विशाल रैली का आयोजन किया था। रैली के समापन पर आयोजित जनसभा में दिये गये भाषण में शहीद नियोगी ने बेहतरी से जुड़े तमाम मसलों की रोशनी में अपने इस लोकप्रिय नारे की सुगठित व्याख्या की थी कि- ‘हम बनाबो नवी पहिचान, राज करही मज़दूर किसान।’ उस रैली में शहडोल निवासी मशहूर जन कवि श्याम बहादुर नम्र (अभी कुछ माह पहले उनकी मृत्यु हो चुकी है) भी शामिल हुए थे और उसके तुरंत बाद उन्होंने आशावाद की उसी ज़मीन पर यह गीत रचा था जो आज भी उतना ही प्रासंगिक और जीवंत है;
नया छत्तीसगढ़ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
गरीबों, देशभक्तों की, दलालों पर फतह होगी। लुटेरों के लिए जिसमें न कोई भी जगह होगी।
उन्हीं का राज होगा, जोकि मेहनत से कमायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
बड़े बांधों से कोई गांव विस्थापित नहीं होंगे।
कोई शोषक नहीं होगा, कोई शोषित नहीं होंगे।
जहां भी होंगी दीवारें विषमता की, ढहायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
हरापन जंगलों का फिर से वापस लौट जायेगा।
जो वनवासी हैं, उस पर फिर नया अधिकार पायेगा।
हरी चादर से धरती को दुबारा हम सजायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
हवा में ताजगी होगी, गगन गंदा नहीं होगा।
धुएं से चांद या सूरज, कोई मंदा नहीं होगा।
प्रदूषण के नरक से, सारी नदियों को छुड़ायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
जहां पर जाति-धर्मों का कोई दंगा नहीं होगा।
कोई भूखा नहीं होगा, कोई नंगा नहीं होगा।
नशाखोरी के सौदागर जहां पर घुस न पायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
हमारी बोलियां, इस देश की भाषा कहायेंगी,
कि जिनसे होके अपनी दूर तक आवाज जायेगी।
ये सपने हैं, मगर इनको बनाकर सच दिखायेंगे।
नया छत्तीसगढ हमको बनाना है, बनायेंगे।
नया भारत हमें ही तो बनाना है, बनायेंगे।
श्याम बहादुर नम्र
कल से नया रायपुर उर्फ़ छत्तीसगढ़ की नयी राजधानी में राज्योत्सव की भव्य और भड़कीली शुरूआत होगी। इसमें विकास की प्रदर्शनी होगी- अब तक के यानी भाजपा सरकार के दौरान हासिल की गयी उपलब्धियों का बखान करते हुए, सूबे में बेमिसाल ख़ुशहाली की तसवीर पेश करते हुए… विकास पुरूष के बतौर मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की मोहक छवि गढ़ते हुए। राज्योत्सव में इसके अलावा 11 एकड़ में फैला सांस्कृतिक परिसर होगा जिसमें बालीवुड के सितारे अपने लटके-झटकों के जल्वे बिखेरेंगे। पिछले ओलम्पिक खेलों में देश की नाक बचानेवाली मुक्केबाज एमसी मेरीकाम और तीरंदाज़ दीपिका कुमारी भी राज्योत्सव के उद्घाटन समारोह की शान बढ़ाते हुए हाज़िर रहेंगी। शिल्पग्राम में बिक्री के लिए आदिवासी कला के एक से बढ़ कर नायाब नमूने सजे होंगे। मौज-मस्ती का उम्दा से उम्दा इंतज़ाम होगा, पूरा बाज़ार गुलज़ार होगा- फ़न पार्क, फ़ूड ज़ोन और गेम ज़ोन।
और हां, राज्योत्सव का शुभारंभ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के हाथों होगा। रमन सरकार के लिए उनसे बेहतर नाम और कौन हो सकता था जो राजनीति में भी माहिर है और उद्योग-धंधे का भी उस्ताद है और जिसके उजले लिबास पर अभी हाल में भ्रष्टाचार के गहरे छींटे पड़े हैं।
राज्योत्सव के चकाचौंध तामझाम किसी भी आम छत्तिसगढ़िया को हक्का-बक्का कर देंगे, आतिशबाजी और लेज़र शो के शानदार नज़ारे उसे यादगार अहसास से भर देंगे- अगर वह राज्योत्सव तक पहुंच सका तो। आम छत्तिसगढ़िया के लिए यह क़तई आसान नहीं होगा। यों, रायपुर से नया रायपुर तक आने-जाने के लिए बस की मुफ़्त सेवा का इंतज़ाम रहेगा लेकिन ज़ाहिर है कि मुफ़्त सवारी भर से राज्योत्सव का पूरा लुत्फ़ नहीं उठाया जा सकेगा। इसके लिए जेब के झमाझम गर्म होने की ज़रूरत होगी। आख़िर यह राज्योत्सव होगा, किसी गांव की मंडई नहीं कि 10-20 रूपये ख़र्च कर अघा गये। यह भरी जेबवालों का मेला होगा।
प्रसंगवश, बताते चलें कि आज से सूबे में साधारण बसों का किराया 10 फ़ीसदी बढ़ जायेगा। एसी और डीलक्स बसों के किराये में यह बढ़त 20 से 30 फ़ीसदी तक होगी। यह फ़ैसला बस आपरेटरों की इस धमकी को देखते हुए कल अचानक लिया गया कि अगर किराया नहीं बढ़ा तो बसें भी नहीं चलेंगी। छत्तीसगढ़ में पहले से बस का सफ़र मंहगा है। सड़क परिवहन पूरी तरह निजी हाथों के हवाले है और हम जानते हैं कि सेवाओं का निजीकरण केवल मुनाफ़े की लूट को हरी झंडी दिखाता है। उसे लोगों की चाहतों और मजबूरियों से क्या लेनादेना?
राज्योत्सव के दौरान मुफ़्त बसों का इंतज़ाम मजबूरी है कि बिना भीड़ के कैसा मेला? लेकिन इस भीड़ में ग़रीब नहीं के बराबर होंगे। जितने होंगे, हसरत भरी आंखों से बस टुकुर-टुकुर ताकते रहने के लिए होंगे, मखमल में पैबंद के मानिंद होंगे। बड़ी संख्या उन खाते-पीते लोगों की होगी जो ऐश और मजे के लिए रहमदिली से अपनी जेब ढीली कर सकते हैं। वैसे, बताते चलें कि राज्योत्सव के दौरान सौ बसों की खेप रायपुर से राज्योत्सव स्थल तक लगातार चक्कर लगायेगी और आधा करोड़ रूपयों से अधिक का पेट्रोल पी जायेगी। तो क्या? राज्योत्सव तो आबाद रहेगा।
एक लाइन में कहें तो छह दिन के लिए नयी राजधानी मायावी दुनिया की सैरगाह रहेगी और इस मायाजाल पर सवा तीन सौ करोड़ से अधिक रूपये स्वाहा हो चुके होंगे। आपकी जानकारी के लिए रायपुर नगर निगम पर पिछले दस सालों के दौरान सवा दो करोड़ से अधिक का कर्ज़ चढ़ चुका है और ज़्यादातर इलाक़े बुनियादी सहूलियतों के लिए तरसने को मजबूर हैं।
छह दिन के इस स्वर्गलोक की हिफ़ाज़त का पूरा बंदोबस्त रहेगा। किसी भी संकट से निपटने के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल मुस्तैद रहेगा। लोगों को तगड़ी जांच-पड़ताल से गुज़र कर ही राज्योत्सव में प्रवेश मिलेगा। चौतरफ़ा ख़ुफ़िया निगाहें और कैमरे चौकसी पर रहेंगे। सरकार को डर है कि ‘शरारती तत्व’ राज्योत्सव के दौरान गड़बड़ी फैलाने की साज़िश कर सकते हैं। रंग में भंग न पड़े इसलिए राज्योत्सव जैसे छावनी में तब्दील होगा, छावनी के घेरे में होगा। इस क़दर निगरानी रहेगी कि ‘शरारती तत्व’ कोई बखेड़ा करने से पहले सौ बार सोचें। यह छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने की 11वीं सालगिरह ही नहीं, उसे नयी राजधानी मिलने का भी जश्न होगा साहब। इसके मद्देनज़र नया रायपुर की ऐसी मज़बूत क़िलेबंदी रहेगी कि परिंदा भी पर न मार सके।
‘शरारती तत्व’ भला कौन हो सकते हैं। यह कयास लगाना बेकार है कि वे माओवादी हो सकते हैं कि जो यहां कोई धमाका करने की फ़िराक़ में हों। इसकी गुंजाइश लगभग नहीं दिखती। लेकिन यहां तो अमन और तरक़्क़ी की राह में ‘रोड़े’ और भी हैं जो आसानी से सुरक्षा कवच में सेंध लगा सकते हैं और राज्य में उनकी जैसे बाढ़ सी आ गयी है। वे अगर सरकार से दुखी-नाराज़ किसान और मज़दूर हो सकते हैं तो शिक्षाकर्मी और दूसरे सरकारी मुलाज़िम भी हो सकते हैं जिनकी शिकायतें अब तक अनसुनी की जाती रही हैं। राज्योत्सव उनके असंतोष को ज़ाहिर करने और सरकार पर दबाव बनाने का बेहतर मौक़ा हो सकता है। इस मौक़े को भला कौन गंवाना चाहेगा? सयानी सरकार को इसका पूरा अंदेशा है।
नया रायपुर में जिसे अंग्रेज़ी में न्यू रायपुर के नाम से जाना जायेगा- इधर राज्योत्सव का धूमधड़ाका होगा और उधर कुछ दिन पहले बेवजह रौंदी गयी तूता गांव की 12 एकड़ की खड़ी फ़सल अपनी बरबादी पर सिसकियां भर रही होगी। उसका क़सूर बस इतना था कि वह मेला स्थल के क़रीब लगी थी और राज्योत्सव की तैयारी के ज़िम्मेदारों को न जाने क्यों खटक रही थी। उस पर बुलडोज़र चला और खेतों को समतल मैदान में बदल दिया गया। इससे पता चलता है कि राज्य सरकार खेती को लेकर किये जा रहे अपने दावे और वायदे से कितना उलटा चलती है, हरियाली को कितनी अहमियत देती है। क़ायदे से तो फ़सलों की भूण हत्या के इस गुनाह के लिए सरकार पर मुक़दमा चलना चाहिए। क्या पता कि बगल के तूता गांव के किसानों से ही ख़तरा पैदा हो जाये जिनकी मेहनत को बेरहमी से कुचल दिया गया।
नयी राजधानी के लिए 27 गांवों की ज़मीनें ली गयीं थीं लेकिन सरकार अधिग्रहण के लिए तय हुई शर्तों पर अब तक केवल अगर-मगर ही करती रही। आख़िरकार, एक पखवारा पहले प्रभावित किसानों ने तय किया कि वे आंदोलन की राह पकड़ेंगे। ज़ाहिर है अगर ऐसा कुछ हुआ तो राज्योत्सव की शान पर बट्टा लगेगा और सरकार की किरकिरी होगी। राज्योत्सव के दौरान दो दिन निवेशकों का भी जमावड़ा लगेगा और किसानों के आंदोलन से उनके बीच ग़लत संदेश जायेगा। किसानों की सरगर्मी सूंघते ही सरकार फ़ौरन हरक़त में आयी और तीन बाद ही किसानों की आधी मांगें मान ली गयीं। तय हो गया कि हरियाणा की तरह इन किसानों को अगले दस साल तक प्रति एकड़ दस हज़ार रूपये का मुआवज़ा मिलेगा। सभी तरह की बसाहट का स्थाई पट्टा मिलेगा। सभी परिवार के बालिग सदस्यों को दो हज़ार वर्गफीट की अतिरिक्त ज़मीन भी मिलेगी।
इस समझौते से सरकार ने राहत की सांस ली कि चलो आफ़त टली। लेकिन दो दिन बाद ही सच सामने आ गया कि किसानों से किया गया मौखिक वायदा तो बस झूठ का पुलिंदा है, कि उनके साथ तो फ़रेब किया गया है। पता चला कि किसानों के साथ हुई उच्च स्तरीय बातचीत के लिखित विवरण में अगर-मगर की भरमार है और इंसाफ़ मिलने की राह बहुत टेढ़ी और कमज़ोर है। इससे किसानों और बौखला गये। नयी राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति ने सरकार की इस दोहरी नीति के ख़िलाफ़ राज्योत्सव के दौरान गिरफ़्तारी देने का फ़ैसला कर लिया। इसके लिए गांवों में सिलसिलेवार बैठकें शुरू हो गयीं। छह हज़ार किसानों के हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति को पत्र लिख कर सरकार की शिकायत हुई और उनसे राज्योत्सव में भाग न लेने की अपील की गयी। याद रहे कि तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक़ राज्योत्सव का समापन राष्ट्रपति को करना है और उसके अगले दिन, 7 नवंबर को, उन्हीं के हाथों नया रायपुर में नवनिर्मित मंत्रालय भवन का उद्घाटन होना है।
यह भी तय हुआ कि राज्योत्सव से पहले अगर किसान कल्याण समिति के नेताओं की गिरफ़्तारी होती है तो सभी गांव के किसान अपने पूरे परिवार और मवेशियों के साथ थाने पर धरना देंगे। और बस, प्रशासन धमकाने लगा कि अगर किसान नहीं माने तो उन्हें सुरक्षा क़ानून के तहत सबक़ सिखाया जायेगा। नयी राजधानी के लिए किसानों की ज़मीनों की बलि चढ़ी और इंसाफ़ की गुहार करने पर उन्हें धमकियां मिलीं। यह अलग बात है कि तमाम धमकियां बेअसर रहीं। उलटे किसानों के तेवर और तीखे और तल्ख़ होते गये। किसानों ने इस सवाल को और गाढ़ा करने का काम किया कि राज्योत्सव आख़िर किस बात का उत्सव है और किसके लिए है? इस पूरे मामले ने सरकार के दमनकारी मिजाज़ को एक बार और उजागर कर दिया।
क्या उलटबांसी है कि सरकार अपनी पीठ थपथपाते हुए यह ढोल पीट रही है कि नया रायपुर देश का पहला हरियाली से भरा शहर होगा। अभी दस दिन पहले मुख्यमंत्री ने नयी राजधानी में प्रस्तावित ‘जंगल सफ़ारी’ का भूमि पूजन किया। यह शेर, चीता, हाथी, भालू. घडियाल जैसे जानवरों का आशियाना होगा, पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र होगा और दो साल में विकसित होगा। यह अलग बात है कि राज्य के दूसरे तमाम इलाक़ों में उद्योगों के लिए जंगलों का बेरहमी से सफ़ाया किया गया। इतना कि रायगढ़ जैसे जिलों के गांवों में हाथियों के हमले जब-तब होने लगे।
ख़ैर, ‘जंगल सफ़ारी’ के लिए दो सौ एकड़ से अधिक ज़मीन चाहिये। आधी से अधिक ज़मीन सरकार के हाथ में आ चुकी है लेकिन बाक़ी ज़मीन हासिल करने में उसे लाले पड़ रहे हैं और उसे हासिल करने के लिए हर साम-दंड-भेद हर तरह के नुस्खे आज़मा रही है।
रायपुर कभी छोटा सा शहर हुआ करता था, अलग छत्तीसगढ़ की राजधानी बना तो उसका रूतबा बढ़ गया। ज़मीन की क़ीमतें आसमान छूने लगीं और वह घने से घना होता गया। कई गांव भी रायपुर शहर में समा गये और वहां एक के बाद एक ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी होती गयीं। गांव की ज़मीनें अमीरों के रिहाइशी इलाक़ों में बदल गयीं।
माओवाद प्रभावित इलाक़ों में लकदक सड़कें बनाये जाने की सरकारी चिंता के ठीक उलट रायपुर की सड़कें ख़स्ताहाल होती गयीं। सड़कों की मरम्मत के नाम पर धांधलियों की पौ बारह रही। राज्योत्सव सर पर आ गया तो रायपुर की सड़कों की सुध जागी। आनन-फानन सड़कें दुरूस्त की जाने लगीं। ज़ाहिर है कि यह हड़बड़ी केवल दिखावे भर के लिए है और जल्द ही सड़कों को पुराने हाल पर लौट आना है। एक सप्ताह पहले तक राज्योत्सव की ओर जानेवाली सड़क तक का बुरा हाल था।
ख़ैर, नया रायपुर पुराने रायपुर से बहुत अलग होगा, खुला-खुला सा होगा। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि अमीरों के लायक़ होगा, सुख-सुविधा की तमाम सहूलियतों के साथ होगा। हवाई अड्डे से सीधे नया रायपुर पहुंचने का रास्ता होगा। इसी रास्ते पर बेंज़ और बीएमडब्ल्यू जैसी मंहगी गाड़ियों का शोरूम भी खुल चुका है और एक शानदार मॉल भी। तो जो रायपुर के विकास में हुआ, वह नया रायपुर में भी हुआ। बिल्डरों और बिचौलियों को अंधी कमाई का रास्ता तो यहां तभी खुल गया था जब नया रायपुर की योजना तैयार हो रही थी।
नया रायपुर जैसे बेशर्मी और बेदिली से कह रहा है कि भाड़ में जायें किसान और उनकी किसानी।
आख़ीर में यह छोटी सी जानकारी भी कि राज्योत्सव की तैयारी में जुटे मज़दूरों को सौ रूपये दिहाड़ी पर रखा गया। यह राज्य में लागू न्यूनतम मज़दूरी की सरकारी दर से 80 रूपये कम है। इस तरह नयी राजधानी के इस पहले जश्न की तैयारी में लगे मज़दूरों के पसीने की खुली लूट हुई और श्रम क़ानूनों की धज्जियां उड़ीं। क्या उलटबांसी है कि विकास का जाप तब भी ताल ठोंक कर जारी है। इसलिए कि सरकार के लिए विकास का मतलब किसी ग़रीब के चेहरे पर छलकनेवाली ख़ुशी से नहीं है।
राज्योत्सव में ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ का सरकारी नारा लगेगा और ‘जय हो छत्तीसगढ़ महतारी’ का गीत गूंजेगा। अब इसके लिए सर खपाने की ज़रूरत नहीं कि ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ और ‘जय हो छत्तीसगढ़ महतारी’ किसके लिए है? लुट-पिट रहे छत्तिसगढ़ियों को ख़ूब पता है कि यह नारा और गीत उनके भले के लिए तो हर्गिज़ नहीं है बल्कि उन्हें और रूलाने-छकाने के लिए है।