नकद नहीं, खाद्यान चाहिए
केंद्र व राज्य सरकारें अपने सलाहकारों की बेहूदी सलाहों को मानते हुए लगातार जनविरोधी निर्णय ले रही हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के बजाय खातों में सीधे नकद हस्तांतरण से भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा भूखे रहने को मजबूर हो जाएगा। इसकी बानगी चंडीगढ़ में दिखाई भी दे गई है। क्या सरकार इससे सबक लेगी ? सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए खातों में सीधे नकद हस्तांतरण के दुष्प्रभावों पर अविनाश भारद्वाज एवं शिखा नेहरा की सप्रेस से साभार रिपोर्ट;
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से राशन वितरण की बजाय नकद हस्तांतरण पर जाने की अपनी योजना को साकार करते हुए भारत सरकार ने सितम्बर 2015 से तीन केंद्र शासित प्रदेशों में प्रत्यक्ष (सीधे) लाभ हस्तांतरण (डी.बी.टी) योजना को लागू कर दिया है। इससे संबंधित सभी नियमों को सरकार ने 21 अगस्त को अधिसूचित कर दिया था। इन्हीं नियमों के तहत चंडीगढ़ में राशन के बदले नकद हस्तांतरण योजना को 11 सितम्बर से क्रियान्वयन कर दिया गया है। इस पायलट योजना को दादरा और नगर हवेली में भी लागू करने की बात थी परन्तु वहां जनता के विरोध के कारण इसे रोक दिया गया।
सेन्टर फॉर इक्विटी स्टडीज ने चंडीगढ़ में 21 से 27 दिसंबर के बीच राशन के बदले नकद हस्तांतरण के मामले में आम लोगों की राय का मूल्यांकन करने के लिए एक सर्वेक्षण किया। इसके लिए चंडीगढ़ के पाँच अलग-अलग स्थानों का चयन किया गया। इन जगहों के नाम धनास, हल्लोमाजरा, खुदा अलीशेर, सेक्टर-26 तथा सेक्टर-56 हैं। ये पांचों इलाके पूरे चंडीगढ़ की तस्वीर को दिखाते हैं। राष्ट्रीय खाद्यसुरक्षा कानून, यानी नेशनल फूड सिक्यूरिटी एक्ट के तहत लाभों की जो सूची चंडीगढ़ खाद्य विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है उनमें से बिना किसी पूूर्व योजना के (रेंडमली) 200 घरों का चयन कर उनका साक्षात्कार किया गया। कच्ची बस्ती में लाभार्थियों के घरों को ढूंढना काफी कठिन काम था क्यों कि नगर निगम ने लोगों के घरों को गिराने के बाद उन्हें शहर से दूर नये स्थानों पर बसा दिया है।
सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया कि चंडीगढ़ में जब से राशन के बदले नकद हस्तांतरण लागू हुआ है, तब से जरूरतमंद परिवारों के बीच काफी गुस्सा है। लोगों को नई व्यवस्था से काफी मुश्किल का सामना करना पढ़ रहा है। सर्वेक्षण के दौरान जब हमने लोगों से खाद्यसुरक्षा की दृष्टि से बेहतर व्यवस्था का चयन करने को कहा 74 प्रतिशत परिवारों का कहना था कि राशन की व्यवस्था ही बेहतर है। महिलाएं जोर देकर कह रहीं थी कि राशन की व्यवस्था बंद होने से रोज-रोज का मानसिक तनाव बढ़ गया है। चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में सर्वेक्षण करते वक्त हमने महिलाओं को एक स्वर में कहते हुए पाया कि अब घर में अनाज का पीपा हमेशा खाली रहता है और रोज सुबह चावल व आटा लेने दुकान पर जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त बैंक खाते में पैसे आने की कोई निश्चित समय सीमा नहीं है, तथा महिलाओं को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके किस बैंक खाते में आधार नंबर को लिंक कर सब्सिडी का पैसा भेजा गया है ।
जब हमने प्रश्न किया कि आप किस व्यवस्था के पक्ष में हैं तो 71 प्रतिशत परिवारों का मत राशन व्यवस्था के पक्ष में था। बातचीत के दौरान यह सामने आया कि जब लोगों को डीलर से राशन मिलता था तो कम से कम घर में महीना भर चावल और आटा रहता था और बचा हुआ पैसा दाल, तेल, सब्जी, दूध खरीदने में लगता था एवं लोग बेहतर खाना खाते थे। लेकिन जब से नकद की व्यवस्था को लागू किया गया है तब से लोग इन पैसों का इस्तेमाल दवा से लेकर दूसरा सामान खरीदने के लिए भी कर रहे हैं। बहुत से परिवारों का यह भी कहना था कि जितना पैसा दिया जा रहा है वह पर्याप्त नहीं हैं।
राशन से नकद भुगतान में व्यवस्था बदलने का अत्यधिक बुरा प्रभाव धनास इलाके में देखने को मिला। वहां फिरोज बेगम और उनके 8 बच्चे इस व्यवस्था परिवर्तन से बहुत मुश्किलों से जूझ रहे हैं। उन्हें अपने बच्चों की पढाई-लिखाई में कटौती कर पैसे कमाने पर लगाने को मजबूर होना पड़ा है ताकि घर के सभी सदस्यों को पर्याप्त भोजन मिल सके। उन्होंने बताया कि जब राशन मिल रहा था तो उनके सारे बच्चे स्कूल जाते थे क्योंकि 50 किलो राशन सरकारी डीलर से मिल जाता था। लेकिन जब से इस व्यवस्था को बदल कर पैसे देने की व्यवस्था आई तब से उनके घर में भोजन की कमी हो गयी है। पिछले तीन महीनों से ज्यादा समय में सब्सिडी का पैसा एक बार भी नहीं आया। अब बच्चे स्कूल छोड़ अखबार के थैले बनाने लगे हैं क्योंकि उनके पिता की दिहाड़ी मजदूरी की कमाई उनके बड़े परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है।
सर्वेक्षण के दौरान 200 परिवारों के बीच जाकर बात करने से यह भी सामने आया कि 44.5 प्रतिशत परिवार राशन व्यवस्था को भ्रष्टाचार खत्म करने में सक्षम मानते थे । केवल 29.5 प्रतिशत परिवारों का कहना था कि नकद के जरिये भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त 40.5 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन्होंने अपने अकाउंट की जांच की और पाया की योजना के लागू होने के तीन महीने बाद भी उनकी सब्सिडी की रकम नहीं आई है। अपनी नाजुक आर्थिक स्थिति और राशन बंद होने के कारण 32 प्रतिशत परिवार अब बाहर से उधारी पर अनाज खरीदने पर मजबूर हो गये हैं। अधिकतर लोगों की राय थी कि सरकार को राशन की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए एवं बैंक खाते में पैसे डालने की व्यवस्था को तुरंत बंद कर फिर से राशन की दुकानों को खोलने का फैसला करना चाहिए।
(श्री अविनाश भारद्वाज रोज़ी रोटी अधिकार अभियान से जुड़े हैं एवं शिखा नेहरा बतौर शोधकर्ता
सेन्टर फॉर इक्विटी स्टडीज के साथ काम करती हैं। ये दोनों ही सर्वेक्षण दल में शामिल थे।)