काले हिरणों की मौत के जिम्मेवार परमाणु संयंत्र -प्रशासनिक अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज व सम्मन जारी
भारत सरकार ने गोरखपुर हरियाणा अणु विद्युत परियोजना के लिए 2010 से गांव गोरखपुर में 1313 एकड़ एवं गांव बड़ोपल में 185 एकड़ भूमि का अधिग्रहण प्रारम्भ किया।बड़ोपल गांव में अधिगृहित भूमि जो काले हिरणों का सदियों से प्राकृतिक आवास है।गत वर्ष 5 जुलाई से 14 जुलाई के दौरान में परमाणु संयंत्र कालोनी की बाड़बंदी के रूप में लगाई गई जाली कें कारण चंद ही दिनों में सात हिरण मौत का शिकार हुए। एनपीसीआईएल ने खम्भें बनाने की फैक्टरी भी कालेहिरणों के प्राकृतिक आवास के बीच लगाई जिससे कालेहिरणों में भगदड़ मची व असहज/खतरा महशूश किया। 2010 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा एनपीसीआईएल को जारी टीओआर में तथा बाद में आयोजित मंत्रालय की एक्सर्प एपरसल कमेटी की बैठकों में स्पष्ट रूप से वन्यजीवों की संरक्षण योजना बनाने को कहा लेकिन फरवरी 2013 में एनपीसीआईएल ने खम्भें बनाने की फैक्टरी भी कालेहिरणों के प्राकृतिक आवास के बीच लगाई जिसको हटाने के लिए व पर्यावरण मंजूरी मिलने से पहले हिरणों को ना खदेड़ने बारे जिला वन्य प्राणी अधिकारी व उपायुक्त को बिश्नोई समाज द्वारा शिकायत दी गई जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।
एनपीसीआईएल ने मंत्रालय के निर्देशोंनुसार कालेहिरणों के संरक्षण की कोई योजना नहीं बनाई बल्कि उन्हे खदेड़ कर मारने की योजना बनाई ताकि सर्वे टीम आने तक कोई मुदा ना रहे। एनपीसीआईएल ने जुलाई में बाड़बंदी शुरू कर दी जिससें पहले बिश्नोई समाज व वन्यजीव प्रेमियों ने ऐसा ना करने बारे लिखित अनुरोध किया लेकिन एनपीसीआईएल ने बाड़बंदी की जिससे सात हिरण मौत के मुंह में समा गए जिनमें दो मादाएं गर्भवती भी थीं। सात हिरणों की मौत के दौरान बिश्नोई समाज द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्युनल की शरण ली गई जिसके बाद 15 जुलाई 2013 को सभी संबंधित को नोटिस जारी हुए और एनपीसीआईएल को बाडबंदी हटानी पड़ी। लेकिन तब तक सात हिरण मारे जा चुके थे। हिरणों की मौत के लिए जिम्मेवार एनपीसीआईएल के खिलाफ शिकायत की गई लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। कई दिनों तक गांव बड़ोपल में बिश्नोई समाज के लोगों द्वारा धरना दिया गया लेकिन धरने की सुध भी किसी अधिकारी ने नहीं ली।
अंत में पर्यावरण एवं जीव रक्षा बिश्नोई सभा के सचिव विनोद कुमार कड़वासरा द्वारा द्वारा वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 55 के तहत दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हेतू 60 दिन का नोटिस दिया गया जिसकी अवधि फरवरी 2014 में पुरी हुई लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा कुरूक्षेत्र स्थित विशेष पर्यावरण की शरण ली गई जहां से अब आरोपियों के खिलाफ सम्मान जारी हुए हैं।
पर्यावरण एवं जीव रक्षा बिश्नोई सभा हरियाणा के उपप्रधान Dara Singh Dehru ने जानकारी देते हुए बताया कि कुरूक्षेत्र स्थित विशेष पर्यावरण अदालत के पीठाशीन अधिकारी हेमराज वर्मा ने गोरखपुर हरियाणा अणु विद्युत परियोजना के निदेशक टी. आर. अरोड़ा चीफ इंजीनियर संजय कुमार गुमास्ता ठेकेदार एम. के. शर्मा , फतेहाबाद के तत्कालीन डीसी साकेत कुमार, एसडीएम बलजीत सिंह, मुख्य वन्यजीव संरक्षक हरियाणा डॉ0 अमैन्दर कौर, मण्डलीय वन्य प्राणी अधिकारी शक्ति सिंह, जिला वन्य प्राणी अधिकारी द्वारका प्रसाद को सम्मन जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारिख 31 अक्तूबर 2014 दी है।बिश्नोई समाज की तरफ से गांव बड़ोपल निवासी विनोद कड़वासरा बिश्नोई ने गत वर्ष परमाणु संयंत्र कालोनी की बाड़बंदी के कारण मरे कालेहिरणों के लिए याचिका दायर की थी जिस पर विशेष अदालत ने संज्ञान लेते हुए वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 2 उपधारा 16, धारा 9 व धारा 51 के तहत सम्मन जारी किया है।
साल से अधिक समय बीतने के बाद हिरणों की मौत को न्याय की उम्मीद जगी।
क्या है सजा का प्रावघानः– वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 के तहत काला हिरण अनुसूचि एक का वन्यजीव है जिसका शिकार हरियाणा में प्रतिबंधित है तथा हरियाणा का राज्य पशु है। इस अपराध के तहत शिकार करने, शिकार में सहायक बनने पर सात साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है- एडवोकेट धर्मवीर पुनिया