नर्मदा जल-जंगल-जमीन हक सत्याग्रह : जल समाधि कुबूल पर नहीं छोड़ेंगे ज़मीन
30 जुलाई 2016, नर्मदा किनारे, मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में, सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में महात्मा गाँधी जी और कस्तूरबा, महादेव भाई देसाई की समाधि को गवाह रखकर एक ऐतिहासिक महारैली और सम्मेलन, देशभर के जनसंगठनों की एकता सामने ला रहा है। यह एकता है, विनाश और विकास के नाम पर लूट के खिलाफ। सही विकास में समता, सादगी और स्वावलंबन के मूल्य लाने के लिए ही नर्मदा घाटी का संघर्ष आज चोटीपर ले जाने की तैयारी है। सरदार सरोवर से गैर कानूनी, असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण डूब से टकराव लेने के लिए, 31 सालों से संघर्षरत नर्मदा घाटी की जनता फिर एक बार, नर्मदा जल, जंगल, ज़मीन हक सत्याग्रह शुरू कर चुकी है।
राजघाट पर महात्मा और कस्तूरबा गाँधी जी के समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित कर सत्याग्रह का हुआ आगाज़। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से आये डूब प्रभावित और शहादत तक डूब से टकराने का लिया संकल्प।
अरुण श्रीवास्तव जी ने नर्मदा घाटी में होने वाले विनाश को देखते हुए कहा कि जो सरकार पूंजीपतियों के पैसों पर सत्ता में आई हो उनसे लोगों के लिए जन्तान्त्रिक्क विकास की उम्मीद रखना बेकार है। वहीँ नर्मदा की महिला शक्ति को सराहते हुए आन्दोलन को पूर्ण समर्थन और इसके मांगों को ऊपर रखने का आश्वाशन दिया।
चिन्मय मिश्र जी ने नए युवाओं का आन्दोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने पर उम्मीद और संघर्ष का अनुभव किया और सरकार के रूख को लोकतंत्र के लिए सबसे विनाशकारी बताया।
बीजू कृष्णन, अखिल भारतीय किसान सभा, ने सरकार को किसान, मजदूर, आदिवासी विरोधी बतलाया और उनके द्वारा लाये गए विफल भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लोगों समुदायों की जीत करार दिया। इसके साथ ही नर्मदा घाटी में होने वाले विनाशकारी डूब के लिए गुजरात सरकार और मोदी सरकार के झूठे विनाशकारी विकास को खुली चुनौती दी।
वहीँ सुधीर वोम्बेडकेरे जी ने कहा कि हमे अपनी मांगों को गेट्स न लगाने, झा आयोग की रिपोर्ट पब्लिक करने और दोषियों को सजा देने से आगे बढ़ कर के बड़े बांधों को इसके सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ रहे बुरे प्रभावों के देखकर हटाने की मांग करनी चाहिए जैसा की आज अमेरिका कर रहा है।
अरुण श्रीवास्तव (जनरल सेक्रेटरी, जेडीयु), मेजर जनरल (रिटायर्ड) सुधीर वोम्बेडकेरे, डॉ सुनीलम, बी. आर. पाटिल (विधायक, कर्नाटक); कुमार प्रशांत (गाँधी शांति प्रतिष्ठान), वीजू कृष्णन (अखिल भारतीय किसान सभा), गौतम मोदी (एनटीयुआई), सवाई सिंह जी (राजस्थान समग्र सेवा संघ), विमलभाई (माटू जनसंगठन), राजेंद्र रवि (एनएपीएम), अशोक दुबे (रूपांकन, इंदौर), चिन्मय मिश्र (संपादक, सर्वोदय प्रेस सर्विस), अमूल्य निधि, प्रमोद बागड़ी (इंदौर समर्थक समूह), सुरेश एडिगा (एड, अमेरिका), कैलाश मीना (एनएपीएम, राजस्थान), भरत सिंह झाला (गुजरात), दीपक और रमेश जी (बिरसा, झारखण्ड), अरविन्द (झुग्गी झोपडी एकता मंच), विजय भाई (जन जागरण शक्ति संगठन, बिहार), जीकू भाई (नर्मदा असरग्रस्त संघर्ष समिति), राधिका (मजदूर किसान शक्ति संगठन), आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), माता दयाल और गंभीरा भाई (आल इंडिया यूनियन ऑफ़ फारेस्ट वर्किंग पीपल), स्टान्ली जॉनसन (डायनामिक एक्शन), डी. के. प्रजापति (हिन्द मजदूर किसान पंचायत), बिलाल खान (घर बचाओ घर बनाओ आन्दोलन), शिवम् कुमार (एनएपीएम, तमिलनाडु), देवकी (बरगी विस्थापित संघ), राजकुमार सिन्हा (चुटका संघर्ष समिति), बिरांची (चेतना श्रमिक संघ, ओडिशा), कर्णाटक सल्साबिल विद्यार्थी समूह, दिल्ली यूनिवर्सिटी और अन्य राज्यों के छात्र और युवा एवं अन्य ने नर्मदा सत्याग्रह का एक स्वर में समर्थन किया और सरकार के गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण डूब के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का एलान किया।
देशभर के 400 समर्थक, सशक्त जन आंदोलनों के साथियों को साथ लेकर सरदार सरोवर से हजारों परिवार, सैकड़ों गाँव और एक नगर के हजारों घर, खेत, सांस्कृतिक स्थल, लाखों पेड़, और ज़िन्दगी डूबाने के खिलाफ है यह संघर्ष। 31 सालों में अहिंसक, सत्याग्रही संघर्ष के चलते 14000 परिवारों को, इस एकमात्र बाँध के विस्थापितों को वैकल्पिक जमीन के साथ पुनर्वास मिला है पर समस्याओं से आज भी भरपूर है। अन्य हजारों परिवारों को जमीन और भूमिहीनों को वैकल्पिक आजीविका का मिलना बाकी है। कुल 45000 परिवारों का पुनर्वास आधा अधूरा हुआ या पूर्णतः बाकी होते हुए उन्हें कानून अनुसार उजाड़ना या डूबोना संभव नहीं है। 2013 के नए भूअधिग्रहण कानून की धारा 24(2) के तहत 18 याचिकाओं में डूबाने तथा उजाड़ने के खिलाफ इंदौर उच्च न्यायालय का आदेश होते हुए, शासन इन गाँवों की सुरक्षित जमीन, घरों को नहीं डूबा सकती। फिर भी 122 मीo से 139 मीo तक सरदार सरोवर बाँध का निर्माण पूरा किया है और गेट्स खड़े किये हैं, मानों फांसी का फंदा तैयार होकर गर्दन बाहर है।
मेधा पाटकर ने नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह के आरम्भ के साथ पानी बढ़ने के साथ राजघाट के किनारे ही शहादत तक डूब से टकराने का एलान किया। और कहा, भ्रष्टाचार एक कारण रहा है, मध्य प्रदेश के 192 गाँव (विशेषतः मैदानी) और एक नगर में आज भी पुनर्वास न होने का। जमीन के बदले पैसा देने का खेल, जमीन खरीदी में फर्जी रजिस्ट्रियां, पुनर्वास स्थलों के निर्माण कार्य में करोड़ों के भ्रष्टाचार से नौकरी गवाना यह सब हो जाने के बाद झा आयोग की रिपोर्ट को शासन ने हाईकोर्ट में क्यों खोलने नहीं दिया?
मo प्रo सरकार भी जानती है कि यह 1000 करोड़ से भी अधिक का भ्रष्टाचार है और इसमें शासकीय कर्मचारी अधिकारीयों की साथ-सहयोग से ही कुछ दलालों ने कमाई की है। फिर भी विस्थापितों को दोषी ठहराने आई मध्य प्रदेश शासन अब झा आयोग की रिपोर्ट पर भी टिपन्नी देकर कह रही है कि कोई अधिकारी दोषी नहीं है। कोई कारवाई होगी तो केवल विस्थापितों के खिलाफ और फिर से जांच करने की बाद रिपोर्ट पर स्वतंत्र, संपूर्ण प्रतिक्रिया आन्दोलन और कई अधिवक्ता बाद में प्रस्तुत करेंगे। किस तरह से लोगों के अंगूठे लेकर जमीन का हक छोड़ने मजबूर करते थे, दलालों को प्रोत्साहन देते थे। सत्य छुपाने की कोशिश हुई है, इसलिए शायद झा आयोग की रिपोर्ट भी कई बाते अलग प्रकार से रखती आयी लेकिन पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही हम प्रतिक्रिया दे सकते हैं। और देंगें जरुर, सत्य देर से सही सामने आता ही है और आएगा। जो देश जानेगा, वह निश्चित ही मानना होगा।