करछना पावर प्लांट के विरोध में भूमि रक्षा हेतु संघर्ष: जोर आजमाइश जारी
- पुलिस का फ्लैग मार्च: हवाई फायरिंग और मारपीट से भड़के किसान, अनशनकारियों को पीटा गया, पुलिस ने गांवों में घुसकर किसानों को पीटा।
- मिर्जापुर-इलाहाबाद राजमार्ग पर चक्का जाम।
- जे.पी. प्लांट के मैनेजर तथा डी.एम. ने दी किसानों को धमकी।
- किसानों का आर-पार संघर्ष का ऐलान।
- किसानों ने अधिग्रहीत भूमि पर कर डाली जुताई-बुआई।
- डी.एम. द्वारा लिखित समझौते को मानने से इंकार।
- किसानों ने बनाये सशस्त्र रक्षा दल।
- महिलाओं ने संभाला मोर्चा।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले की करछना तहसील के कचरी आदि गांवों में उ. प्र. सरकार और जे.पी. कंपनी की साजिश के खिलाफ स्थानीय किसान अपनी भूमि की रक्षा के लिए लगातार संघर्षरत हैं। एक तरफ इलाहाबाद प्रशासन अपने लिखित समझौते को मानने से इंकार कर चुका है तथा न्यायालय में लंबित वादों के फैसलों का भी इंतजार करने को तैयार नहीं है वहीं दूसरी तरफ स्थानीय किसान किसी भी कीमत पर अपनी भूमि छोड़ना नहीं चाहते। किसानों के ऊपर तमाम आपराधिक मुकदमे कायम करने, लाठी चार्ज, गोली चलाने, धमकियां देने तथा दलालों का इस्तेमाल करने के बाद भी मायावती सरकार जे.पी. कंपनी को पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन पर कब्जा नहीं दिलवा पा रही है। किसान जिला मुख्यालय, राज्य मुख्यालय तथा राष्ट्रीय राजधानी तक में अपने धरने-प्रदर्शन के जरिये अपनी मांगें दुहराते रहे हैं, किसान न्यायालय की शरण में भी गये परंतु मामला सुलझा नहीं। सरकार और किसानों के बीच जोर आजमाइश जारी है। विभिन्न दलों के नेता भी इस क्षेत्र के किसानों को संबोधित कर चुके हैं तथा साथ देने का वादा करते रहे हैं।
ऐसा लगता है कि इस जोर आजमाइश की अगली कड़ी के रूप में मायावती सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व ही जे.पी. कंपनी के पावर प्लांट की स्थापना कराने के लिए ज्यादा से ज्यादा दमन करने पर आमादा है। अतएव 29 अक्टूबर 2011 को पावर प्लांट परियोजना से प्रभावित सभी 8 गांवों में पुलिस की हथियारबंद फौज डी.एस.पी. जनक प्रसाद द्विवेदी की अगुआई में फ्लैगमार्च करने निकल पड़ी। संभवतया यह निर्णय पुलिस को इसलिए लेना पड़ा, क्योंकि लगभग एक हफ्ते से काम शुरू कराने पर आमादा प्रशासन किसानों के विरोध के चलते ऐसा नहीं कर पा रहा था। फ्लैग मार्च के दौरान आठों गांवों में किसानों को पुलिस अधिकारियों द्वारा धमकी दी गयी और गढ़वा, देवरी गांव में किसानों को पीटा भी। इसके बाद कचरी गांव जहां पर लगभग एक वर्ष से किसान अनशन कर रहे हैं फ्लैग मार्च करते हुए पुलिस बल पहुंचा।
अनशन स्थल पर मौजूदा लोगों की पिटाई के बाद कचरी गांव के घरों में घुसकर महिलाओं और बच्चों को भी पीटा गया। इस गांव की सोमारा देवी, राजकुमारी, राम मुकुट, दिलीप और धीरज समेत कई दर्जन लोगों को चोटें आयीं। गांव के लोग एकजुट होकर आगे बढ़े तो पुलिस को ‘शांति-व्यवस्था कायम करने तथा विकास विरोधियों’ को खदेड़ने के लिए हवाई फायर करना पड़ा।
पुलिस के फ्लैग मार्च के द्वारा कायम किये गये आतंक को धता बताते हुए पुलिस की निर्मम प्रताड़ना से पीड़ित गढ़वा, देवरी, कचरी, कचरा, देहली, भगेसर, कटका व मेढ़रा गांव के आक्रोशित लोग सड़क पर आ गये तथा मिर्जापुर-इलाहाबाद राजमार्ग का चक्का जाम कर दिया। ग्रामीण अपने परंपरागत हथियारों से लैस थे। ग्रामीणों के आक्रोश तथा एकजुटता को देखकर पुलिस वहां से भाग गयी।
भू.पू. सांसद धर्मराज पटेल, एस.पी. यमुनापार सर्वेश सिंह राणा और कार्यवाहक डी.एम. चन्द्रकला के मौके पर आने तथा वार्ता करने के बाद भी किसानों ने जाम नहीं खत्म किया। आंदोलनकारियों के नेता राज बहादुर पटेल ने कहा कि ‘‘प्रशासन अब जे.पी. कंपनी की दलाली करते हुए पुलिस की गुंडई के बल पर जे.पी. पावर प्लांट का निर्माण कराने पर आमादा है लेकिन ऐसा नहीं हो पायेगा। राज बहादुर ने मांग की कि पुलिस को फ्लैग मार्च का आदेश देने वाले अधिकारी तथा ग्रामीणों की पिटाई करने वाले पुलिस जनों के खिलाफ जब तक कार्यवाही नहीं की जायेगी यह संघर्ष चलता रहेगा।’’
करछना के किसानों के एक अन्य नेता रंग बली पटेल का कहना है कि ‘‘आज से (29 अक्टूबर से) 10 दिन पहले ही इलाहाबाद के सरकिट हाउस में जे.पी. कंपनी के एम.डी. की मौजूदगी में प्रशासन ने प्लांट का काम शुरू कराने के लिए दमन की इस रणनीति को अंतिम रूप दे दिया था। कंपनी के एम.डी. ने किसानों को धमकी भी दे डाली थी कि हर हाल मे ंपावर प्लांट बनकर रहेगा और किसी का मुआवजा भी नहीं बढ़ाया जायेगा। नेताओं का यह भी आरोप है कि कि डी.एम. अपने लिखित वादे से मुकर गया। 31 जनवरी को पुलिस कार्यवाही में मारे गये गुलाब विश्वकर्मा की पत्नी को पेंशन देने का वादा भी पूरा नहीं किया गया। आंदोलनकारियों पर कायम फर्जी मुकदमे भी वापस नहीं लिए गये। प्रशासन जे.पी. कंपनी के एम.डी. की उकसावे पूर्ण बयानों पर भी कार्यवाही करने को तैयार नहीं है और अब तो फ्लैग मार्च से भी इंकार कर रहा है।’’
आंदोलनकारियों ने इस बीच अपनी अपनी जमीनों की जुताई-बुआई करना शुरू कर दिया है तथा भूमि किसी भी हालत में खाली न करने का निर्णय लिया है। नवंबर में जिलाधिकारी से हुई वार्ता भी असफल हो गयी। नवंबर के पहले हफ्ते में एक ऐसा भी दौर आया जब प्रशासन ने करछना के स्कूलों-कालेजों को बंद करने एवं सड़कों तथा रेल लाइनों पर सतर्कता बढ़ाने का भी निर्णय किया था। डी.एम. आलोक कुमार ने एक बार फिर धमकी दी है कि ‘अब वार्ता नहीं बल्कि काम (पावर प्लांट का निर्माण) होगा’ लेकिन दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक तो काम शुरू नहीं हो पाया है और अब तो चुनाव की भी घोषणा हो गयी है। आंदोलनकारी आगामी रणनीति बनाने में लग गये हैं। कंपनी और सरकार की मिलीजुली ताकत और किसानों के बीच जोर आजमाइश भविष्य में जारी रहने की पूरी संभावना है। -राज बहादुर पटेल एवं रवीन्द्र कुमार सिंह