मोदी और सोनी सोढ़ी आज रायपुर में : स्मार्ट सिटी का शिलान्यास आदिवासियों की लाश पर ?
ज्ञात रहे की नयी रायपुर के लिए 27 गांवों की ज़मीनें ली गयीं थीं लेकिन सरकार अधिग्रहण के लिए तय हुई शर्तों पर अब तक केवल अगर-मगर ही करती रही। आख़िरकार, प्रभावित किसानों ने तय किया कि वे आंदोलन की राह पकड़ेंगे। ज़ाहिर है अगर ऐसा कुछ हुआ तो शासन की शान पर बट्टा लगेगा और सरकार की किरकिरी होगी। किसानों की सरगर्मी सूंघते ही सरकार फ़ौरन हरक़त में आयी और किसानों की आधी मांगें मान ली गयीं। तय हो गया कि हरियाणा की तरह इन किसानों को अगले दस साल तक प्रति एकड़ दस हज़ार रूपये का मुआवज़ा मिलेगा। सभी तरह की बसाहट का स्थाई पट्टा मिलेगा। सभी परिवार के बालिग सदस्यों को दो हज़ार वर्गफीट की अतिरिक्त ज़मीन भी मिलेगी।
इस समझौते से सरकार ने राहत की सांस ली कि चलो आफ़त टली। लेकिन अब सच सामने आ गया कि किसानों से किया गया मौखिक वायदा तो बस झूठ का पुलिंदा है, कि उनके साथ तो फ़रेब किया गया है। पता चला कि किसानों के साथ हुई उच्च स्तरीय बातचीत के लिखित विवरण में अगर-मगर की भरमार है और इंसाफ़ मिलने की राह बहुत टेढ़ी और कमज़ोर है। इससे किसानों और बौखला गये। नयी राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति ने सरकार की इस दोहरी नीति के ख़िलाफ़ किसान संघर्षरत है। नयी राजधानी के लिए किसानों की ज़मीनों की बलि चढ़ी और इंसाफ़ की गुहार करने पर उन्हें धमकियां मिलीं। यह अलग बात है कि तमाम धमकियां बेअसर रहीं। उलटे किसानों के तेवर और तीखे और तल्ख़ होते गये।