झारखण्ड : भू-हड़प अध्यादेश के विरोध में चले मोदी पर तीर
झारखण्ड के दुमका में 6 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास और दुमका विधान सभा के विधायक सह कल्याण मंत्री डॉ लुईस मरांडी पर आदिवासियों का परम्परिक स्वशासन व्यवस्था प्रशासनिक कोट “ मोड़े मांझी बैसी ” कर पुतले पर मांझी बाबओं (प्रधान), महिलओं और पुरूषो ने तीर मारकर, हशुवा-कैदा, डंडा, तलवार से वार कर और अंत में इन नेताओ के पुतले को जला कर कड़ा सामाजिक विरोध दर्ज की और सामाजिक फैसला सुनाया गया अगर किसी भी राजनितिक पार्टी के विधायक और सांसद मोड़े मांझी बैसी के इन मांगो का समर्थन नही करती है तो उसका और उसके पार्टी का क्षेत्र में सामाजिक बहिष्कार किया जायेगे.उसके बाद भी अगर मांगो को नहीं माना जाता है तो अंत में एक और संताल हुल और उलगुलान के लिए विवश हो जायेगे. मोड़े मांझी बैसी के दुवरा सभी राजनितिक पार्टी के विधायक,सांसद से यह भी पूछती है कि वोट मांगने के लिए वे गांव आते है लेकिन हम गरीबों को लुटने के लिए नियम बनाया जाता है तो हम ग्रामीणों को क्यों नही बताया जा रहा है. ग्रामीण महिला और पुरुष काफी गुस्से में थे.
मोड़े मांझी बैसी ने निम्नलिखित मांग की :
- सरकार भूमि अधिग्रहण बिल तुरंत वापस ले
- झारखण्ड के रघुवर सरकार दुवरा प्रस्तावित स्थानीय निति का आधार वर्ष 1995 का .”मोड़े मांझी बैसी” और ग्रामीण कड़ा विरोध करती है और 1932 तक के खतियान को ही मूल आधार मान कर स्थानीय निति
- जल्द बनाने का मांग करती है.उसके बनने के बाद ही कोई सरकारी बहाली हो और चतुर्थ और तृतीय पदों के साथ-साथ मूल रैयत (गैर आदिवासी और आदिवासी) को उच्च पदों पर भी आरक्षण मिले.
- अग्रेज़ जमाने में असम गए झारखंडि आदिवासी को असम का आदिवासी का दर्जा दिया जाय.
- सरकारी अस्पताल,शिक्षण संस्थानों आदि का निजीकरण बंद हो.
- सरकारी नौकरियो में अनुबंध प्रथा बंद कर स्थायीकारण कर उन्हें स्थायी नौकरी दिया जाय.
कोदोखिचा ग्राम, पंचायत बेहराबांक,प्रखण्ड दुमका के अन्तर्गत उल बगान मैदान में ग्रामीणों दुवारा भूमि अधिग्रहण बिल,झारखण्ड सरकार दुवरा गलत स्थानीय निति 1995 को आधार वर्ष बनाने का प्रस्ताव, अग्रेज़ जमाने में असम गए झारखंडि आदिवासी को असम का आदिवासी का दर्जा नहीं मिलना,सरकारी नौकरियों में अनुबंध प्रथा,सरकारी अस्पताल,शिक्षण आदि संस्थानों का निजीकरण करने आदि को लेकर विभिन्न गांव के ग्रामीण और मांझी बाबाओं ने सामाजिक और परम्परिक व्यवस्था के अन्तर्गत “ मोड़े मांझी बैसी ” का आयोजन किया.”मोड़े मांझी बैसी” कि शुरुवात देश के स्वतंत्रा सेनानी सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू के फोटो पर माल्यापर्ण कर किया गया.इसमें विपक्ष पार्टी सभी राजनितिक पार्टी और नेताओं को रखा गया.
मांझी बाबाओं और बुद्दिजीवी लोगों ने ग्रामीणों को इन सारे नियमों के कुप्रभावों को समझाया गया.कई घंटो के बहस के बाद मांझी बाबाओं,ग्रामीण और बुद्दिजीवी लोग इस नतीजे पर पहुचे कि मोदी सरकार दुवरा लाया गया भूमि अधिग्रहण बिल जन विरोधी बिल है,यह आजाद भारत में अंग्रेज ज़माने कि पुनरावृत्ति है,यह एक काला नियम है,यह आदिवासियों के साथ-साथ सभी गैर आदिवासियों के गरीबों,किसानों के हित में नहीं है.झारखण्ड के रघुवर दास सरकार दुवरा स्थानीय निति में वर्ष 1995 को आधार वर्ष बनाने का प्रस्ताव झारखण्ड के मूल रैयत गैर आदिवासी और आदिवासी के हित में नहीं है.इससे यहाँ के मूल रैयत(गैर आदिवासी और आदिवासी) सभी सम्प्रदाय के लोगों को हानि है,विशेष कर यहाँ के युवा,गरीब बेरोजगार के शिकार हो जायेगे,उनके नौकरी और रोजगार गैर झारखंडी अधिक लुट लेगे.मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण बिल हमारे जमीन को लुटेगी,हर संप्रदाय के किसान,गरीबों का शोषण करेगी और झारखण्ड के रघुवर दास सरकार दुवरा स्थानीय निति में वर्ष 1995 को आधार वर्ष बनाने का प्रस्ताव झारखण्ड को लुटेगी और यहाँ के मूल युवाओं को चाहे वे गैर आदिवासी है चाहे आदिवासी है को बेरोजगार करेगी,खासकर गरीबों को कभी नौकरी नहीं मिल पायेगी.मोड़े मांझी कि इस बैठक में यह भी चर्चा कि गयी कि अग्रेज़ जमाने में असम गए झारखंडि आदिवासी को असम में आदिवासी का दर्जा अब तक क्यों नहीं दिया गया है. .”मोड़े मांझी बैसी” झारखण्ड के रघुवर दास सरकार से यह जानना चाहती है कि अग्रेज ज़माने में असम गए आदिवासियों को असम में आदिवासी का दर्जा अभी तह नहीं मिला तो आप कैसे झारखण्ड का स्थानीय का आधार 1995 रखने कि बात करते है ?”मोड़े मांझी बैसी” के बैठक में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि झारखण्ड के रघुवर दास सरकार अनुबंध पर नौकरी देना बंद करे और झारखण्ड के मूल रैयतो(गैर आदिवासी और आदिवासी) को स्थायी नौकरी दे ताकि उसे कम मानदेय और शोषण का शिकार नहीं होना पड़े.इसके साथ साथ मोड़े मांझी के बैठक में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि सरकार अस्पताल,शिक्षण संस्थानों का निजीकरण बंद करे.सरकार के गलत नीतियों के विरोध में आदिवासी सामाजिक और परम्परिक व्यवस्था के अन्तर्गत .”मोड़े मांझी बैसी” दुवरा देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी,झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास और दुमका विधान सभा के विधायक सह कल्याण मंत्री डॉ लुईस मरांडी के पुतले पर मांझी बाबओं(प्रधान),महिलओं और पुरूषो ने तीर मारकर कड़ा सामाजिक विरोध दर्ज करती है
इस मोड़े मांझी में मांझी बाबओं(प्रधान),ग्रामीणों और बुद्दिजीवी ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिए कि किसी भी राजनितिक पार्टी के विधायक और सांसद मोड़े मांझी के इन मांगो का समर्थन नही करेगे तो उसका और उसके पार्टी का क्षेत्र में सामाजिक बहिष्कार किया जायेगे.उसके बाद भी अगर मांगो को नहीं माना जाता है तो अंत में एक और संताल हुल और उलगुलान के लिए विवश हो जायेगे.
इस .”मोड़े मांझी बैसी” में सोम मुर्मू,रोबिलाल सोरेन,राजकुमार मरांडी,सुनिराम हांसदा,शिवराम हांसदा,विलियम मरांडी,नोरेन मरांडी,रंजीत मरांडी,उर्मिला मरांडी,मुकेश मरांडी,राजू मरांडी,सोम सोरेन,राजकुमार मरांडी,रायसन टुडू,सलीम मरांडी,मंगल मुर्मू,बाबुराम मुर्मू,जयश्री टुडू,बाबुधन सोरेन,रामन मरांडी,सलेन्द्र मरांडी,शिवलाल टुडू,अभनेर मुर्मू,रुबिलाल हेम्ब्रोम,माइकल हेम्ब्रोम के साथ-साथ कोदो,बागडुबी,गुहिया,जुगीडीह,रानीडिनडह,दिघी बाहा टोला,दुन्दिया,कुकुरतोपा आदि गांव के मांझी बाबा(ग्राम प्रधान) और ग्रामीण महिला और पुरुष उपस्थिति थे.
साभार : सच्चीदानंद सोरेन की वाल से