भूमि अधिग्रहण, उदारीकरण-निजीकरण, मंहगाई-बेरोजगारी के खिलाफ कृषि एवं कृषि भूमि की रक्षा के लिए संसद पर किसानों-मजदूरों का प्रदर्शन
साम्यवादी विचारधारा के जनक कार्ल मार्क्स के जीवन से जुड़ी तारीख 14 मार्च को संसद मार्ग पर भारी पुलिसबल की तैनाती के बीच पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उ. प्र., बिहार, झारखण्ड, प. बंगाल, उड़ीसा, असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, गोवा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश समेत 22 राज्यों कि किसानों-मजदूरों-नवजवानों जिनकी तादाद लगभग 60 हजार थी, ने रामलीला मैदान से अपनी रैली निकालकर संसद मार्ग पर एक विशाल सभा करके अपना विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी एस.यू.सी.आई. (सी) की अगुवाई में प्रदर्शन के समय 375 लाख लोगों के द्वारा हस्ताक्षरित मांगपत्र की प्रतियां एक वाहन पर लादकर आगे-आगे चल रहे थे। पेश है जम्हूरी किसान सभा, पंजाब के अध्यक्ष डॉ. सतनाम सिंह अजनाला की रिपोर्ट-
प्रदर्शनकारी उदारीकरण- निजीकरण की नीतियों, सीधे विदेशी निवेश, भूमि अधिग्रहण तथा पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के विरोध में नारे लगा रहे थे। मनरेगा की मजदूरी दर जीवन-यापन लायक करने, बेरोजगारी खत्म करने, कृषि भूमि की रक्षा एवं कृषि क्षेत्र को विशेष महत्व देने की मांग कर रहे थे।
19 मार्च को पंजाब के लगभग 5000 किसानों एवं खेतिहर मजदूरों ने साझे तौर पर संसद मार्ग पर सभा करके पंजाब एवं केन्द्र सरकार की किसान-मजदूर विरोधी नीतियों- कारनामों की आलोचना करते हुए अपना विरोध दर्ज कराया। इस प्रदर्शन में हरियाणा राज्य के भी प्रदर्शनकारी शामिल हुए। पंजाब राज्य में कार्यरत करीब एक दर्जन किसान व ग्रामीण मजदूर संगठनों ने दिल्ली में संसद भवन के समक्ष एक संयुक्त रैली व प्रर्दशन का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में हजारों लोगों की भागीदारी हुई। उन्होंने बंगला साहब गुरूद्वारा से एक जुलूस निकाला जिसे संसद मार्ग थाना के पास बैरिकेड लगाकर रोक दिया गया।
सभी किसानों व ग्रामीण मजूदरों ने वहां अपनी मांगों के समर्थन में जोरदार नारे लगाये। अधिकांश प्रदर्शनकारी अपने-अपने संगठनों के बैनर व झंडों से लैस थे।
संसद मार्ग पर मंच लगाकर एक सभा भी आयोजित की गयी। इस सभा को करीब दो दर्जन वक्ताओं ने सम्बोधित किया। प्रमुख वक्ताओं में बीकेयू (एकता, दाकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह, जम्हूरी किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. सतनाम सिंह अजनाला, पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रूलदू सिंह, देहाती मजूदर सभा के महासचिव गुरूनाम सिंह दाउद, किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू, मजदूर मुक्ति मोर्चा के महासचिव भगवन्त सिंह समावाँ, बीकेयू, क्रांतिकारी के अध्यक्ष सुरजित सिंह फूल, पेण्डू मजदूर यूनियन के अध्यक्ष तरसेम पिटर, किरती किसान यूनियन के अध्यक्ष निर्भय सिंह धूदिके और पेण्डू मजदूर यूनियन के अध्यक्ष बलदेव सिंह रसूलपुर शामिल थे।
सभी वक्ताओं ने केन्द्र व राज्य सरकारों की किसान व ग्रामीण मजदूर विरोधी नीतियों की कड़े शब्दों में निन्दा की।
उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी ताकतों के प्रभाव में केन्द्र और राज्य सरकारें किसान व ग्रामीण मजदूर विरोधी नीतियों को लागू कर रही हैं। इन नीतियों के चलते देश की खेती पूरी तरह बरबाद हो गयी है और यह घाटे का पेशा बन गया है। यही कारण है कि सकल घरेलू उत्पादन में खेती का योगदान घटकर 12प्रतिशत तक हो गया है। किसान आर्थिक रूप से तबाह हो रहे हैं और उन पर कर्जे का बोझ बढ़ रहा है। कर्जे के दबाव में किसानों को आत्महत्या तक करनी पड़ रही है। ग्रामीण मजूदरों की आर्थिक हालत भी काफी खराब है। पूंजीवादी साम्राज्यवादी कृषि नीति के चलते उन्हें भी बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। जिन्हें खेती-किसानी में काम भी मिल रहा है उन्हें उचित मजदूरी नहीं दी जा रही है। अर्जुन सेन गुप्ता कमीशन आंकड़ों के मुताबिक करीब 85 करोड़ लोगों को प्रतिदिन 20 रुपये से भी कम पर गुजारा करना पड़ रहा है।
सरकार लगातार खाद, डीजल, रसोई गैस, कीटनाशक दवाओं व कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली अन्य छूटों को घटा रही है। लोग भूख से मर रहे हैं और गोदामों में अनाज सड़ रहे हैं। सरकार ने खाद्य सब्सिडी को भी कम कर दिया है। वक्ताओं ने मांग की कि कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली छूटों को बढ़ाया जाये और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए उचित नीतियां बनाई जाएं।
इसके अलावा उक्त वक्ताओं ने इस कार्यक्रम के जरिये जिन मांगों को उठाया वे इस प्रकार हैं: खेती किसानी के काम को कुशल काम का दर्जा दिया जाये; बासमती, आलू, प्याज समेत सभी कृषि उपजों के लिए लाभकारी मूल्य तय किया जाये और इसका आधार डॉ. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को बनाया जाये; किसानों और ग्रामीण मजदूरों के सभी प्रकार के कर्जों (सरकारी व निजी) को रद्द किया जाये और उन्हें तीन प्रतिशत सरल ब्याज की दर से ऋण मुहैय्या कराई जाये; सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत और व्यापक बनाया जाये और राशन की दुकानों में सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की जाये; मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म किया जाये और मजदूरों की मजदूरी कम से कम 250 रुपये प्रतिदिन तय की जाये; परिवार के सभी कार्य सक्षम लोगों के लिए गांवों में काम की व्यवस्था की जाये और मनरेगा योजना को खेती के काम-काज से जोड़ा जाये; एक लाख रुपया सलाना आमदनी वाले परिवार को भी बीपीएल के तहत लाने की व्यवस्था की जाये। कई वक्ताओं ने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास बिल को किसान विरोधी करार दिया और जोरदार शब्दों में मांग की कि इस बिल को वापस लिया जाये ताकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से खेती की जमीनों को बचाया जा सके। उन्होंने यह भी मांग की कि कर्ज व आर्थिक तबाही के चलते आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को कम से कम दस लाख रुपये मुआवजा दिया जाये और एक व्यक्ति को नौकरी दी जाये। वक्ताओं ने नई जल नीति को वापस करने की मांग की ताकि पानी जैसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन को आम लोगों के लिये बचाया जा सके।
साथ ही साथ उन्होंने मांग की कि प्राकृतिक अपदाओं से फसलों की होने वाली क्षति का पूरा मुआवजा दिया जाये।
भारत पाक सीमा पर स्थित खेतों की तारबन्दी से हुई क्षति के मुआवजे की भी मांग उन्होंने की।
सभा के दौरान किसानों और ग्रामीण मजदूरों के संगठनों की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर उक्त मांग पत्रों से सम्बन्धित एक ज्ञापन भी सुपुर्द किया। प्रधानमंत्री कार्यालय से लौटने के बाद प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने सरकारी पदाधिकारियों द्वारा दिये गये आश्वासनों से उपस्थित लोगों को अवगत कराया। अंत में उन्होंने किसानों और ग्रामीण मजदूरों को संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया। प्रदर्शनकारी कृषि का अलग से बजट बनाने, कृषि कार्य से जुड़े लोगों को कुशल श्रमिक माने जाने, कृषि की सब्सिडी बरकरार रखने और उसे और बढ़ाने, बी.पी.एल. के मापने के मापदण्ड की पुनः समीक्षा करके उसे व्यावहारिक बनाने, पंजाब के हजारों किसानों को कर्ज से उबारा जाय, मनी लेंडिंग में फंसे किसानों के साथ की गयी धोखाधड़ी से उन्हें उबारा जाय, मनरेगा के कार्य दिवस बढ़ाये जायँ तथा मजदूरी दर बढ़ायी जाय, मनी लेंडिंग के मामले में कमीशन एजेण्ट हटाये जायँ, प्रस्तावित मनी लेंडिंग एक्ट में किसानों के हित को प्राथमिकता दी जाय। रैली में मनरेगा तथा सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरोध में बातें उठाते हुए प्रस्तावित वाटर पालिसी 2012 (पंजाब राज्य) एवं प्रस्तावित भूमि-अर्जन, प्रनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन विधेयक (भारत सरकार) वापस लेने की मांग तेजी के साथ उठायी गयी।