मारुति, मीडिया और खाप पंचायत के बीच मजदूर: बदहाल भी बदनाम भी
मारूति सुजुकी के मानेसर कारखना में पिछले एक साल में मजदूरों ने तीन बार हड़तालें कीं। मारूति प्रबंधन, हरियाणा व केन्द्र सरकार ने मिल कर इस आन्दोलन को दबाने के लिए मजदूरों को छंटनी करने से लेकर, झूठे केस में फंसाने और यूनियन नेताओं को प्रलोभन देकर यूनियन तूड़वाने की कोशिश की। मारूति सुजुकी के मजदूर इस तरह की कार्रवाई को झेलते हुए अपनी एकता को बनाये रखे तथा स्थायी, अस्थायी व ठेका मजदूरों के रिश्तों को भूला कर पहले से और ज्यादा संगठित हुए। 18 जुलाई 2012 को एक सुपरवाइजर द्वारा एक मजदूर साथी को जातिसूचक गाली दी गई। जब उस मजदूर ने इसका विरोध किया तो उसे अभद्रता का आरोप लगाकर निलम्बित कर दिया गया। इस घटना की जानकारी होते ही मजदूरों में असंतोष फैल गया। मारूति सुजुकी वकर्स यूनियन के नेताओं ने इस घटना के समाधान के लिए प्रबंधन से वार्ता की और घटना की निष्पक्ष जांच कराने व मजदूर के निलम्बन पर रोक लगाने की मांग रखी। लेकिन प्रबंधन अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने मजदूर यूनियन की मांग को मानने से इन्कार कर दिया।
इस वार्ता के दौरान श्रम विभाग खुलकर मारूति सुजुकी प्रबंधन की हां में हां मिलाता रहा और मजदूर यूनियन पर ही दबाव बनाता रहा। लेकिन यूनियन के नेता इस दबाव को अस्वीकार करते हुए मजदूरों की जायज मांग रखते रहे। यह वार्ता लगभग तीन बजे तक चलती रही लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसी बीच मारूति सुजुकी के दूसरे शिफ्ट के मजदूर भी कम्पनी में पहुंच चुके थे और अपने काम में लग गये थे। वार्ता के दौरान ही मारूति प्रबंधन ने पूर्वनियोजित ढंग से अपने 150 बॉउन्सरों (गुण्डों) को बुला लिया जिससे माहौल पूरी तरह बिगड़ गया। मारूति प्रबंधन और उसके बॉउन्सरों (गुण्डों) के साथ मजदूरों की झड़प हुई जिसमें प्रबंधन के एक व्यक्ति की मौत हो गयी तथा सैकड़ों की संख्या में मजदूर तथा प्रबधंन के लोग घायल हुए। इस तरह मारूति प्रबंधन, श्रम विभाग व प्रशासन ने मिलकर शांतिपूर्वक चल रही वार्ता को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया कि इसका दोष मजदूरों पर मढ़ा जा सके।
मारूति सुजुकी के मजदूरों के शोषण में मैनेजमेंट के साथ-साथ बॉउन्सर व उनको सप्लाई करने वाले ठेकेदारों का भी हिस्सा होता है। जिन मकानों में मजदूर रहते हैं वे अधिकांश मकान गांव के सरपंचों या इन गुण्डों को होते थे जो मनमाने तरीके से मजदूरों की मेहनत की कमाई किराये के रूप में लेते थे। मारूति सुजुकी के प्रबंधन ने जब कम्पनी बंद करने की झूठी धमकी दी तो इन सबों को अपना हित भी मारूति सुजुकी के साथ दिखने लगा। मारूति सुजुकी के प्रबंधन ने साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति को अपनाते हुए वहां के स्थानीय लोगों को मजदूरों के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास कर रही है। जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन अभय सिंह की अध्यक्षता में 23 जुलाई को खाप पंचायत बुलायी गयी जिसमें विभिन्न दलों के स्थानीय बड़े नेताओ ने कम्पनी को हर संभव मदद करने की घोषणा की। इसके अलावा उन्होंने मजदूरों की 25 जुलाई की होंडा मोटरसाईकल एण्ड स्कूटर्स इण्डिया लिमिटेड के सालाना मजदूर एकजुटता रैली को नहीं होने देने की घोषणा की। मारूति सुजुकी प्रबंधन मारूति सुजुकी वर्कर्स यूनियन की मान्यता रद्द करने की गैर कानूनी कोशिश में लग गयी है। हरियाणा सरकार ने मारूति सुजुकी की जांच के लिये केटीएस तुलसी को नियुक्त किया है। केटीएस तुलसी का कहना है कि इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के जांच का संबंध इस बात से नहीं कि हिंसा क्यों हुई, बल्कि एसआईटी दोषियों को सजा दिलाने का कोशिश करेगा। केन्द्रीय कारपोरेट मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि मारूति कार संयंत्र के उपद्रवियों को बख्शा नहीं जायेगा तथा इस घटना के पीछे जिम्मेदार सभी मजदूरों खोज चल रही है। यानी मजदूरों को मारूति सुजुकी प्रशासन के साथ-साथ, पुलिस प्रशासन, श्रम न्यायलय, कम्पनी के गुण्डों व गांव वालों का दमन भी झेलना पड़ेगा। पुलिस-प्रशासन को गिरफ्तार करने के लिए इतना ही काफी है कि आप मारूति सुजुकी के मजदूर हैं। जिसका उदाहरण 22 जुलाई (रविवार) को 4 मजदूरों की गिरफ्तारी से समझ सकते हैं कि पुलिस-प्रशासन व न्यायालय की मजदूरों की प्रति क्या भूमिका है। इन गिरफ्तार मजदूरों को न्यायालय ने 2 दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया। गिरफ्तार लोगों में झज्जर के नवीन व जींद के प्रदीप, घटना के दिन कंपनी से अवकाश पर थे। सिरसा के सुरेन्द्र को घायल अवस्था में स्ट्रेचर पर लाद कर न्यायलय में लाया गया और कहानी गढ़ी गई कि घटना के दिन सुरेन्द्र दीवार फांदता हुआ नीचे गिर गया था जिससे उसके पैर में फ्रैक्चर हो गया है। मारूति सुजुकी के मजदूरों को दोषी मान लिया गया है और उसके बाद जांच की बात की जा रही है।
गुडगांव के मजदूरों ने अपनी एकजुटता दिखाते हुए और खाप पंचायत के धमकी व धारा 144 के बावजदू 25 जुलाई, 2012 को होंडा कांड की सातवीं बरसी मनाई। इस आयोजन में हांेडा कम्पनी के साथ साथ हीरो होंडा, रिको, सुजुकी पावर ट्रेन, सुजुकी बाइक, हाईलेक्स, आमेक्स, हीरो मोटर कोर्प, मारूति कामगार यूनियन सहित बीस कम्पनियों के पदाधिकारी मौजूद थे। इन सभी यूनियन नेताओं ने मारूति सुजुकी कांड की निन्दा की और उच्चस्तरीय जांच की मांग की व मजदूरों को परेशान न करने की मांग रखी। मुख्यमंत्री से मांग कि की वे अपना वादा पूरा करें और श्रमिकों के दर्ज झूठे मामले को तत्काल निरस्त करें, श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन, ठेकेदारी प्रथा पर रोक, श्रमिकों के लिए आवासीय कॉलोनियां बनाने, श्रमिक आंदोलन में पुलिस हस्तक्षेप बंद करने, श्रमिक यूनियनों के विवाद शिघ्र निपटाने, ईएसआई, पीएफ सहित सभी सामाजिक सुरक्ष प्रदान करेन, श्रमिक अजित यादव की हत्या करने वालों के दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करने सहित अनेकों मुद्दों पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे।
मीडिया की भूमिका
मीडिया मारूति में हुई आगजनी और एक प्रबंधक की मृत्यु को ही लगातार छापती रही और दिखाती रही। उसके पीछे की घटना की और मजदूरों की जायज मांग को कभी भी छापने या दिखाने का प्रयास नहीं किया। एक तरह से वह इस घटना के लिए मजदूरों को ही दोषी साबित करने में लगी है जबकि सच्चाई इसके उलट है। मजदूर यूनियन ने लगातार वार्ता के द्वारा समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की और दोषी व्यक्तियों को सजा देने की मांग रखी। लेकिन प्रबंधन और प्रशासन ने उनकी मांगों को मानने से मना कर दिया। मीडिया द्वारा मारूति सुजुकी प्रबंधन हर समय हरियाणा व भारत के शासक वर्ग को एक तरह से धमकी देता रहा कि ऐसी घटना से भारत में निवेश पर असर पड़ेगा, ताकि मारूति सुजुकी पर किसी तरह की कार्रवाई न हो। मारूति सुजुकी प्रबंधन के हर बात को तत्परता के साथ अक्षरशः छापने व दिखाने वाली मीडिया मजदूरों और उनके समर्थन में किये जा रहे धरना-प्रदर्शनों को उतनी ही तत्परता से छिपाने में लगी रहती है। भारत के जनपक्षीय कही जाने वाली मीडिया का हाल है। आखिर यह मीडिया किसकी है?
पूंजीपति और उसकी चाकरी करने वाले भारत के शासक वर्ग मजदूरों द्वारा लड़कर प्राप्त किए गए अधिकारों को एक-एक करके छीनते जा रहे हैं। मजदूरों को यूनियन बनाने और हड़ताल करने का जो कानूनी अधिकार प्राप्त था उसको भी अघोषित रूप से समाप्त कर दिया गया है। शोषित-पीड़ित जनता शोषण और अपमान पूर्वक जीवन से छुटकारा पाने के लिए अपने आन्दोलन कर रही है। मजदूरों के अधिकारों को छीनने और दमन की प्रक्रिया वैश्वीकरण-नीजीकरण-उदारीकरण (नई आर्थिक नीति) लागू होने के बाद और तेज हो गई। जो तथाकथित कानून बचा भी है वह शोपीस बनकर फाईलों में दबा पड़ा है। इसकी झलक हम 2005 में होण्डा मोटरसाइकल एण्ड स्कूटर्स इण्डिया लिमिटेड में देखने को मिली जब मजदूर अपनी जायज मांगों को लेकर सचिवालय भवन पर प्रदर्शन कर मांग पत्र देने गये तो किस तरह प्रशासन और कम्पनी के गुण्डों द्वारा उनको मारा-पीटा गया। इस तरह भारत और एनसीआर दिल्ली के अन्दर मजदूरों की कई छोटी-बड़ी हड़तालें होती रही हैं जिनको प्रशासन और मालिक के गुण्डों द्वारा बर्बर दमन चलाकर दबा दिया जाता है। 2008 में ग्राजियानों तथा 2010 में निप्पॉन के मजदूरों द्वारा किये गये आन्दोलन पर क्रूर पुलिसिया दमन हुआ और उसमें से अधिकांश मजदूर आज भी जेलों में बंद हैं। निप्पॉन में आज 150 मजदूर ही स्थायी है सभी स्थायी मजदूरों को निकाल दिया गया यह भारतीय श्रम कानून का उल्लंघन है।
भारत अपने आंकड़ों में ऊंची विकास दर को दिखाकर यह कहा रहा है कि भारत दुनिया के महान देशों में से एक है और यह सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। लेकिन इस विकास मॉडल में महंगाई-बेरोजगारी ने आम जनता की नाक में दम कर रखा है। भारत के अलग-अलग राज्यों में पूंजीपतियों (देशी-विदेशी लूटेरों) को छूट देने की होड़ लगी हुई है जिसमें हरियाणा का नाम भी अव्वल नम्बर पर है। यहां पर ऐसा प्रशासन भी है जो उन्हें हर सुविधा मुहैया कराने के लिए तत्पर है- सस्ती जमीन, टैक्स की बचत, सस्ती बिजली और पानी (जबकि इसका बोझ आम आदमी से वसूला जाता है) और सबसे बड़ी चीज सस्ता श्रम। पूंजीपति वर्ग के लिए अपार मुनाफा कमाने की संभावना के कारण हरियाणा ‘शाइनिंग इण्डिया’ का मिसाल बना हुआ है। आज हरियाणा के भूअधिग्रहण मॉडल को ही भारत सरकार एक मॉडल के रूप में पेश करने पर उतारू है। लेकिन अब यह दुनिया भी चरमराने लगी है। हरियाणा में रेवाड़ी, गोरखपुर पॉवर प्लांट विरोधी आंदोलन फतेहाबाद, महेन्द्रगढ़, नवलगढ़ (राजस्थान) में किसान भूअधिग्रहण के खिलाफ लड़ रहे हैं। एक तरफ कमरतोड़ मेहनत करने वाली जनता दो जून की रोटी के जुगाड़ में दिन-रात काम करने के लिए मजबूर है वहीं दूसरी तरफ कुछ मुट्ठी भर लुटेरे इनके श्रम को लूट कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं। देशी-विदेशी पूंजीपतियों (लूटेरों) के लिए भारत आज एक चारागाह बना हुआ है और भारतीय शासक वर्ग उसके आगे नतमस्तक होकर उनकी हर नजायज मांग को पूरा करने के लिए वचनबद्ध है। जब देश के मजदूर-किसान व अन्य शोषित-उत्पीड़ित लोग अपने हक-अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं तो उनपर लाठियां व गोलियां चलाई जाती हैं और उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर जेलों में कैद किया जाता है।
सवाल यह है कि ये ऊंची विकास दर और हाईटेक मॉडल से किसका फायदा हो रहा है? जब कि भारत की जनता हर जगह पर सरकार की नीतियों का विरोध कर रही है क्योंकि इससे उनके जीविका के साधन खत्म हो रहे हैं बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसका लाभ पूंजीपति वर्ग ले रहा है। मारूति सुजुकी की लड़ाई भी इसी शोषण के खिलाफ है जहां पर ठेके मजदूरों को 5-6 हजार रु. पर काम करना पड़ता है और स्थायी मजदूर भी अगर किसी कारण वश 4 छुट्टी कर ले तो उसका वेतन भी आधा मिलता है। जब मजदूरों ने इसको एक वर्ग के रूप में आवाज उठाया तो वैश्वीकरण-निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों को लागू करने वाली शासक वर्ग भयभीत हो गई और मारूति सुजुकी के मजदूरों की मनोबल को तोड़ने के लिए सभी हथकंडे अपना रही है। केटीएस तुलसी का बयान हो या केन्द्रीय कारपोरेट मंत्री वीरप्पा मोइली का बयान और खाप पंचायतों का बयान ये सभी मजदूरों के मनोबल तोड़ने के लिए है। मारूति सुजुकी के मजदूर जिस तरह से अपने को संगठित कर के पिछले एक साल से लड़ाई लड़ रहे हैं और उनको जिस तरह से दूसरे कम्पनियों व समाज के विभिन्न तपकों का समर्थन मिल रहा है उससे यह लड़ाई और भी ज्यादा संगठित व मजबूत होगी।