संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हिमालय दिवस : हिमालय की जनता की पुकार, पंचेश्वर बांध में हमें क्यों डुंबो रही है सरकार ?



9 सितम्बर, हिमालय दिवस के मौके पर उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने पंचेश्वर बांध को रद्द करने की मांग करते हुए कहा है कि बिना सोचे समझे उत्तराखण्ड में अब तक 556 बांध बनाए गए जिनके दुष्परिणाम सबके सामने है। भारत के प्रधानमत्री और उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के नाम जिला अधिकारी, अल्मोड़ा को ज्ञापन देते हुए कहा है कि पुरानी गल्तियों को छुपा कर आप भारत-नेपाल की सीमा पर 315 मीटर ऊॅंचा विशालकाय पंचेश्वर बांध का निर्माण करने जा रहे है। जिसमें हमारे सैकड़ों गांवों को उजाड़ दिया जायेगा। यदि आप इस ओर ध्यान नहीं देंगे तो हम अपने हिमालय व हिमालयी समाज की रक्षा के लिये पूरी ताकत से आपकी जन विरोधी नीतियों का मुकाबला करेंगे। पेश है उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी का ज्ञापन; 

प्रतिष्ठा में,

माननीय प्रधानमत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली
माननीय मुख्यमत्री, उत्तराखण्ड सरकार देहरादून

द्वारा :  जिला अधिकारी अल्मोड़ा

विषय :  हिमालय दिवस पर हिमालय की जनता की पुकार, पंचेश्वर बांघ में हमें क्यो डुंबो रही है सरकार।
                                   
माननीय महोदय,

हिमालय दुनिया में प्रकृति की अद्भुत रचना है। यह उत्तरी व दक्षिणी धुवों के बाद दुनिया का सबसे बड़ा तीसरा वाटर टैंक है। अपनी जैव विविधता और धरती व धरती के भीतर चल रही हलचलों के कारण हिमालय संवेदनशील रचना मानी जाती है। भारत में जम्मू कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक फैला हिमालयी क्षेत्र देश के कुल भोगोलिक क्षेत्र का 16.3 प्रतिशत है जो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से देश व दुनिया को बचाने का प्रमुख उपक्रम हिमालय हमारी संस्कृति, अस्मिता का उद्गम व प्रमुख स्रोत है। इससे निकलने वाले झरने व नदियां देश व दुनिया में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास के आधार रहे है। हमारा मानना है कि प्रकृति की इस रचना को बनाये रखने, इसे सही तरीके से सहेजने, इसे पूंजीवादी लुटरों व माफिया की लूट से बचाना हमारा व हमारी सरकारों का युग धर्म है।

महोद्य, हिमालय हमारी चिंताओं, कौतुहल का हमेशा कारण रहा है। इस क्रम में कुछ वर्ष पूर्व 2012 में देहरादून में उत्तराखण्ड के सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने हिमालय दिवस की कल्पना की थी, जिससे प्रेरित होकर आज हमारी सरकारे भी 9 सितम्बर को हिमालय दिवस मनाने लगी है।

महोद्य जब हम लोग हिमालय दिवस की कल्पना कर रहे थे तब हमारे सामने हिमालय का वह समाज भी था जिसने अनेक कठिनाईयों को सह कर भी सदियों से इसकी रक्षा की । इसकी पूजा, अर्चना की, इसको देवताओं की तरह पूजा। पर आजादी के बाद हमारे हिमालय को पूंजीवादी मुनाफाखारों और उनके हितों के लिये काम करने वाली राजनीति व सरकारों की कुदृष्टि लग गयी है।

आप लोग इनता तो जानते ही होंगे कि जहां हम लोग रहते है। वह मध्य हिमालय का सबसे संवेदनशील हिस्सा हैं, जहां भूगर्भीय हलचलों के चलते भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार प्रतिदिन हिमालय 5 से.मी. ऊंचा हो रहा है, भूकम्प की दृष्टि से यह क्षेत्र अति संवेदनशील जोन-4 व जोन-5 का हिस्सा है। यहां के विकास, विकास के नाम पर लूट-खसोट करने वाले सत्ता केन्द्रों, राजनीतिज्ञों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जिस कारण आज पूरा हिमालय छिन्न-भिन्न व लहुलुहान है। यहां लगातार मानव जनित आपदायें हमारे समाज को लील रही है। धारचूला, मालपा, केदारनाथ, उत्तरकाशी से लेकर पूरा उत्तराखण्ड आज आप लोगों की सरकारों द्वारा की गयी जोर-जर्बदस्ती से ब्याकुल है, इसका नजारा पूरा देश व दुनिया भी देख रही है।

इसके बावजूद आप लोग बिना सोचे समझे इस उत्तराखण्ड में 556 बांध बनाने के साथ टिहरी जैसे विशालयकाय बाध बना रहे है। जिसके कारण सैकड़ो साल से विकसित हुई हमारी सभ्यता, संस्कृति व समाज बिखर रहा है। जिसका दंश आज भी हमारा क्षेत्र झेल रहा है, नये-नये गांव बांधो में समा रहे है। इन बांधो के निमार्ण में जो अरबों रूपया खर्च हो रहा है उसे राजनेताओं, ठेकेदार, बांध कम्पनियों के दलाल चील-कौवों की तरह हमारे उपेक्षित समाज को नोच कर मालामाल हो रहे हैं। क्या कभी आपने इस पर विचार किया?

मान्यवर, हमारा आप लोगों से अनुरोध है कि हिमालय दिवस पर हिमालय को लेकर आज तक जाने-अनजाने की गयी नीतिगत व अन्य गल्तियों से सबक लेकर हिमालय के सरक्षण, विकास और उसमें बसने वाले समाज के बारे संतुलित नीति निर्माण करे, जिसमें राजनैतिक हित लाभ से उपर उठ कर हिमालय व देश को बचाने की चिन्ता दिखाई पड़े जिसके द्वारा हमारी सरकारें अपने गल्तियों को स्वीकार करते हुए उन्हें दुरूस्त करने का साहस भी दिखातें। क्या आप लोग ऐसा कर सकते है।

मान्यवर, पिछले कुछ दिनों से आप लोग अपने तंत्र के माध्यम से हिमालय को बचाने की कसमें खा रहें, जबकि पुरानी गल्तियों को छुपा कर आप भारत-नेपाल की सीमा पर 315 मीटर ऊॅंचा विशालकाय पंचेश्वर बांध का निर्माण करने जा रहे है। हमारे सैकड़ों गांवों को उजाड़ रहे है। हमें आश्चर्य है कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर आप कांग्रेस की सभी नीतियों, विचारों, परियोजनाओं को बिना सोचे समझे क्यों लागू करना चाहते हैं। क्या हमारे पास ऊंर्जा के और बेहतर, कम हानिकारक विकल्प मौजूद नही है। आप हमें बड़ी-बड़ी कम्पनियां बनाकर सैकड़ो मील की झील, इस संवेदनशील हिमालय में बना कर हमारे क्षेत्र की वनस्पतियां, जीव जन्तुओं, कीट पतंगों, जंगलो, सैकड़ों वर्षो से विकसित हो रही संस्कृति, सामाजिक सम्बन्धों को डुबाने पर तुल गये हैं।
क्या लोकतंत्र में यह जरूरी नही है कि आपके पूंजीवादी विकास के नाम पर उजड़ने वाले लोगों से इस परियोजना के बारे में सहमती लेने का प्रयास होता।

मान्यवर, पंचेश्वर बांध को लेकर अभी हाल में जो कथित जनसुनवाईयां हुई है उसमें आप लोगों के इरादे सामने आ चुके हैं। आपकी सरकार व प्रशासन के कामकाज में कितनी ईमानदारी है, उसे लोग समझ चुके हैं। आपके विधायक, पार्टी नेताओं ने इन जनसुनवाई में जो दबंगई की उसे भी सबने देखा है। कुल मिला कर स्थितियां निराशाजनक व एक आक्रोश पैदा करने वाली हैं।

इसके बावजूद भी हम आपसे अनुरोध करना चाहते है कि यदि आप या आपकी सरकारों में और आपके राजनैतिक दलों में हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिये यहां बसने वाले समाज की जरा भी चिंता है तो पंचेश्वर बांध निर्माण का इरादा छोड़ दें। जनपक्षीय विशेषज्ञों, वैज्ञानिाकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर, हिमालय के संरक्षण व विकास की नई ईबारत लिखने का साहस दिखायें और नदियों को मुक्त बहने दें और उसके बहाव के साथ, बिजली पैदा कर हमारे गांवों व समाज को समृद्व करने की योजना बनायें। हिमालय को लेकर अब तक की गयी गल्तियां से सबक लें, हिमालय व उसके समाज की रक्षा के लिये सामने आयें।

इस उम्मीद के साथ कि यदि आप इस ओर ध्यान नहीं देंगे तो हम अपने हिमालय व हिमालयी समाज की रक्षा के लिये पूरी ताकत से आपकी जन विरोधी नीतियों का मुकाबला करेंगे। आशा है आप वक्त की नजाकत को समझेंगे।

सधन्यवाद।
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
             

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