प्रधानमंत्री जी, इन आदिवासियों की कुर्बानी क्यों नहीं दिखती जो पिछले तीस सालों से अपने डूबे घर-जमीन का पुनर्वास मांग रहे हैं ?
9 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले में अपने एकदिवसीय दौरे के दौरान आजादी के 70 वर्ष पूरे होने पर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम‘70 साल आजादी- जरा याद करो कुर्बानी’की शुरूआत करेंगे। इसी अलीराजपुर जिले से लगभग 70 किमी दूर बडवानी जिला एवम् तहसील के खारीया भादल गांव की जमीन में 7 अगस्त से डूब आने लगी है। खारीया भादल म.प्र. के बडवानी तहसील के 7 वनग्रामों में से एक है।
पिछले 30 सालों से पुनर्वास की लड़ाई लड़ रहे नर्मदा डूब क्षेत्र के किसानों और आदिवासियों को अभी तक उचित पुनर्वास नहीं मिला है जबकि प्रशासन की तरफ से सरदार सरोवर गेट बंद करने के संकेत आ गए हैं। गेट बंद हो जाने का मतलब हजारों परिवारों के लिए जीवित जलसमाधि होगी। प्रशासन के इस आदेश के विरुद्ध तथा पुनर्वास की मांग को लेकर बड़वानी के राजघाट पर 30 जुलाई से ही अनिश्चितकालीन जल हक सत्याग्रह चल रहा है।
क्या वजह है कि देश को आजादी के शहीदों की कुर्बानी याद दिलाने चले नरेंद्र मोदी के कानों तक, नर्मदा डूब क्षेत्र के इतने करीब पहुंच जाने के बावजूद, इन जीते जागते किसानों तथा आदिवासियों की पुकार नहीं पहुंच पा रही है। वजह स्पष्ट है सरदार सरोवर बांध के पानी का लाभ अडानी तथा कोका कोला कंपनी को मिलना है जिसके प्रति नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता जगजाहिर है।
ऐसे समय में, जब देश भर के मजदूर-किसान-आदिवासी नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल के शिकार होकर बदहाली के कगार पर पहुंचे हुए हैं, प्रधानंत्री का आजादी के शहीदों को याद करना न सिर्फ एक ढकोसला तथा चुनावी स्टंट है बल्कि एक समतामूलक आजाद भारत का सपना लेकर शहीद हुए इन क्रांतिकारियों का घोर अपमान भी है।
दुनिया भर में विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाए जा रहे 9 अगस्त के दिन ही अलीराजपुर से 70 किमी. दूर बढ़वानी के किसान तथा आदिवासी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अनशन की शुरुआत करेंगे और वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी झाबरा के करेटी हैलीपैड पर उतरकर शहीद चंद्रशेखर का माल्यार्पण करेंगे। जो कि एक प्रहसन से कम नहीं होगा।