दो बार विस्थापित चिल्कादांड के संघर्ष की दास्तान
चिल्कादांड उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के शक्तिनगर थाणे में पड़ने वाले उन 5 गावों का एक सामूहिक नाम है, जिन्हें पहली बार 1960 में रिहंद डैम बनाने के लिए और फिर 1979 में एन टी पी सी के शक्तिनगर परियोजना के कारण विस्थापित होना पडा है. दो बार विस्थापन का दर्द झेल चुके लगभग 30 हज़ार की यह आबादी 1984 से ही एन सी एल कोयला खनन के विस्तार के खिलाफ आंदोलनरत है. हाल में, यहाँ मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर आंदोलन फिर से तेज हुआ है. पहले से ही राष्ट्र के विकास के नाम पर 2 बार छले जा चुके लोगों ने “उत्पीडन प्रतिरोध समिति” के परचम-तले जबरदस्त आन्दोलन की शुरुआत की है. पेश है लोकविद्या आश्रम की एक रिपोर्ट:
नार्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और नैशनल थर्मल पावर कारपोरशन के द्वारा पिछले 25 वर्षों से जारी उत्पीडन के खिलाफ स्थानीय जनता ने प्रतिरोध का बिगुल फूंक दिया है. 30 अगस्त 2012 दिन बृहस्पतिवार की शाम चिल्कादांड, निमिया दंड, दियापहरी और रानीबाड़ी के 300 से ज्यादा लोगो ने निमियादांड स्थित बरगद के नीचे 5 बजे से एक सभा की जिसमे एक उत्पीडन प्रतिरोध समिति का गठन किया गया. वर्षों से किसी सांगठनिक पहल के अभाव में स्थानीय जनता में दबा आक्रोश सभा के दौरान थोड़ी थोड़ी देर पर उठने वाले नारों के माध्यम से झलक रहा था और ये नारे इस बात का आभास दिला रहे थे की चिल्कादांड के निवासी सन 85 के उस आन्दोलन की यादें अपने दिलों में संजोय बैठे हैं जब इसी एन टी पी सी से लड़ कर उन्होंने वो जमीन हासिल की थी जिस पर पिछले 25 वर्षो से वे रह रहे हैं और इन २५ वर्षों में एन सी एल और एन टी पी सी के धीरे धीरे होते विस्तार ने लड़ कर छिनी गयी इस जमीन को एक ऐसे क्षेत्र में तब्दील कर दिया है जहां मानव जिन्दगिया तो दूर, कीड़े मकौड़े भी स्वेच्छा से जिन्दा रहना कबूल न करें.
बताते चलें की चिल्कादांड उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के शक्तिनगर थाणे में पड़ने वाले उन 5 गावों का एक सामूहिक नाम है, जिन्हें पहली बार 1960 में रिहंद डैम बनाने के लिए और फिर 1979 में एन टी पी सी के शक्तिनगर परियोजना के कारण विस्थापित होना पडा है. दो बार विस्थापन का दर्द झेल चुके लगभग 30 हज़ार की इस आबादी को 1984 में एक बार फिर से विस्थापित करने की कोशिश की गयी थी जब एन सी एल को कोयला खनन का ठेका दिया गया था. पहले से ही राष्ट्र के विकास के नाम पर 2 बार छले जा चुके लोगों ने तीसरी बार विस्थापन के खिलाप जबरदस्त आन्दोलन किया, और अपनी जगह पर जमे रहे. आज चिल्कादंड एक तरफ एन सी एल की खदान से तो दूसरी ओर शक्तिनगर रेल स्टशन से बुरी तरह घेरा जा चूका है.
चिल्कादांड पुनः संगठित हो रहा है. इस बार मुद्दा विस्थापन का विरोध नहीं, एक बेहतर बसाहट है. दिन रात उडती कोयले की धुल, कोयला ले कर 24 घंटे आते जाते बड़े बड़े डम्फर, ब्लास्टिंग से उड़ कर गिरते बड़े बड़े पत्थर, खान से रोजाना निकलती मिटटी से बनते पहाड़ जिनकी रेडियो धर्मिता स्वयं में एक जांच का विषय है, यह सब मिल कर चिल्कादांड को जोखिम और रोगों की हृदयस्थली बनाते हैं. 30 अगस्त को हुई बैठक का मुख्य एजेंडा एक ऐसा संगठन बनाने का था, जिसके तहत उठने वाली आवाज सभी ग्रामवासियों की हो, न की किसी समूह अथवा समुदाय विशेष की.
नयी और बेहतर जगह पर बसाहट के सवाल को उठाते हुए सर्वप्रथम श्री नर्मदा जी ने कहा की कम्पनी का काम रोके बगैर उसे अपनी बात सुनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. उन्होंने कम्पनी का काम रोकने की रणनीति का जिक्र करते हुए कहा की मुख्य गेट से इनकी आवाजाही जब तक बंद न की जाये, बात नहीं बनेगी. उनकी इस बात से वहाँ बैठे सभी आयु वर्ग के लोग सहमत हुए. स्थानीय श्री रहमत अली ने आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं में कटीबध्हता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा की क्षणिक जोश में आकर कोई निर्णय लेने से लड़ाई का नुकसान होता है. निमियादांड के श्री सूरज जी ने कहा की सरकार पर छोड़ देने से कोई काम पूरा नहीं होता. सरकार एक पत्थर होता है जिसे तराशने का काम जनता को ही करना पड़ता है.
30 हज़ार से भी ज्यादा आबादी के बेहतर बसाहट के मुद्दे को समर्थन देने के लिए लोकविद्या जन आन्दोलन की तरफ से अवधेश, बबलू, एकता और रवि शेखर इस बैठक में उपस्थित थे. अपना वक्तव्य रखते हुए रवि शेखर ने कहा की इन पूंजीपतियों के खिलाफ सन 85 में में शुरू हुई इस लड़ाई की दूसरी पारी को आगे बढाने के लिए चिल्कादांड की नयी पीढ़ी को कुर्बानी देनी पड़ेगी. दुसरे राज्यों में जनता द्वारा सफलतापूर्वक लड़ी गयी लड़ाइयों का उदाहरण पेश करते हुए रवि ने कहा की संघर्ष से जुड़े साथियों को अपना वर्ग और अपने हितैषियों को पहचानना होगा. उन्होंने आगे कहा की लोकविद्या आधारित जीवन यापन करने वाले सभी समाजो की दशा दिशा को समझा जाये तो इन सभी में एकता के अनेको बिंदु तलाशे जा सकते हैं, और लड़ाई को मजबूत बनाया जा सकता है. अवधेश ने नौजवानों से यह अपील की आज के बैठक के उपरान्त वे जरूर स्वेच्छा से एक संगठन बनाएं और इसके मार्फ़त तथा बुजुर्गों की सलाह पर आन्दोलन को मजबूत करें. उन्होंने उपस्थित सभी युवाओं के समक्ष यह प्रस्ताव दिया कि अगर युवा लड़के लड़कियां चाहें तो लोकविद्या आश्रम सबके लिए लोकविद्या विचार के माध्यम से एक नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का आयोजन कर सकता है. इस प्रस्ताव को हाथों हाथ लेते हुए नारों के साथ युवाओं ने अपनी सहमती दी. लोकविद्या आश्रम की तरफ से बोलते हुए एकता ने कहा की चिल्कादांड को बचाने की पिछली लड़ाई में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा. उन्हें फिर से बाहर निकलने की आवश्यकता है, अन्यथा आधी आबादी की अनुपस्थिति में किसी भी तरह की सफलता की अपेक्षा करना स्वयं और आन्दोलन के साथ बेईमानी है.
चिल्कादांड के युवाओं के तरफ से बोलते हुए हीरालाल, संतोष, राजेश, विजय, धर्मराज, जयप्रकाश, राहुल कुमार, आशुतोष, जोहर अली आदि ने यह आश्वासन दिया कि इस आन्दोलन में सभी 5 गावों के युवा अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रहने देंगे. अपने वरिष्ठों से उन्होंने यह मांग की कि वे युवाओं का मार्गदर्शन करते रहे, तो बसाहट की इस लड़ाई में जीत चिल्कादांड की होकर रहेगी.
अंत में चिल्कादांड के ग्राम प्रधान जी के आह्वान पर लगभग 20 लडको ने स्वेच्छा से अपने नाम और फोन न. नोट कराया, ताकि आगे तय होने वाली रणनीति में इन्हें शामिल किया जा सके. सभा की अध्यक्षता कर रहे श्री लक्ष्मण गिरी ने लोकविद्या आश्रम कार्यकर्ताओं के द्वारा चिल्कादांड की लड़ाई को संगठित किये जाने की पहल का स्वागत करते हुए आश्रम से इन युवाओं के मार्गदर्शन की अपील की.
अध्यक्ष जी के इस अपील पर श्री अवधेश ने 12 सितम्बर 2012 को उन सभी युवाओं की बैठक लोकविद्या आश्रम पर बुलाई गई है.