संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad
.

भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन

राजनीतिक दलों ने पोस्को हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की

ओडिशा में राजनीतिक दलों ने परादीप के पास पास्को इस्पात संयंत्र स्थल पर हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत के लिए…

सरकार, माफिया, कंपनी और ठेकेदारों का गठजोड़: पोस्को विरोधी आंदोलनकारियों पर…

14 दिसंबर, 2011 को दोपहर के लगभग 1.30 बजे 500 से ज्यादा हथियारबंद गुंडे माफिया डान बापी के नेतृत्व में पारादीप…

सर्वे टीम को वापस किया आदिवासी महिलाओं की एकजुटता ने

पश्चिम सिंहभूम (झारखण्ड) जिले के नोआमण्डी ग्राम पंचायत क्षेत्र के गांव से सरकारी सर्वे टीम को गांव की आदिवासी महिलाओं ने 30 जुलाई 2011 को वापस खदेड़ दिया। हुआ यूं कि गांव में कुछ सर्वे (भूमि का सर्वे) का काम करने के लिए एक सरकारी सर्वे टीम आ टपकी.... इस पंचायत के आसपास के क्षेत्रों में जिंदल-भूषण जैसी कम्पनियां सरकार की मदद से भूमि कब्जाने…
और पढ़े...

भूमि अधिग्रहण, उदारीकरण-निजीकरण, मंहगाई-बेरोजगारी के खिलाफ कृषि एवं कृषि भूमि की…

साम्यवादी विचारधारा के जनक कार्ल मार्क्स के जीवन से जुड़ी तारीख 14 मार्च को संसद मार्ग पर भारी पुलिसबल की तैनाती…

खेत में काम कर रहे आंदोलनकारी किसान को पुलिस ने गोली मारी

ओडिसा के जगतसिंहपुर जिले के धिंकिया गांव में 2 मार्च को ओडिसा पुलिस खेत में काम कर रहे एक किसान के पैर में गोली…

12 गांवों की पंचायतों के किसानों ने जल, जंगल, जमीन तथा आजीविका बचाने के लिए कसी कमर

हिमाचल प्रदेश में एक तरफ जहां बड़े बांध, माइक्रो हाइड्रो पॉवर प्लांट के खिलाफ स्थानीय लोग संघर्षरत हैं तथा भाखड़ा बांध से प्रभावित विस्थापित आज तक पुनर्वास की लड़ाई लड़ रहे हैं वहीं इस बीच हिमाचल प्रदेश में धौलाधार सेंचुरी का मुद्दा गरमा रहा है। 1999 में बैजनाथ की 12 पंचायतों के क्षेत्र को धौलाधार सेंचुरी क्षेत्र में शामिल किया गया था। 2006…
और पढ़े...

झारखंड के सारंडा जंगल में आदिवासियों पर पुलिसिया जुल्म: एक सच्ची तस्वीर

10 अक्टूबर, 2011 को झारखंड मानव अधिकार आन्दोलन द्वारा तैयार सारंडा का शाब्दिक अर्थ सात सौ छोटी पहाड़ियों वाला…

सरकार एवं जे0 पी0 कम्पनी के खिलाफ ‘आवाज उठाओगे तो भुगतोगे’

कानून का मखौल इस तरह उड़ाया जा रहा है कि लगता ही नहीं कि यहां कानून का राज कायम है। कहने को तो तमाम अधिकार लोगों को दिये गये हैं परंतु जब इनका उपयोग आप शासन-प्रशासन या कारपोरेट घरानों की मनमर्जी के खिलाफ करने के लिए आगे बढ़ते हैं तब समझ में आता है कि हम ‘लोकतंत्र’ में नहीं बल्कि ‘कारपोरेट तन्त्र’ में जीवित रहने को विवश किये जा रहे हैं और हमारी…
और पढ़े...