नवलगढ़ के किसान आंदोलन में विभिन्न ताकतों की भूमिका पर रपट
तीन मुनाफ़ाख़ोर बनाम हज़ारों लोग: जंग जारी है
लोग लड़ रहे हैं अपनी जमीनें बचाने की लड़ाई
सरकारी शह पर सीमेण्ट कारखाने आमादा हैं लोगों को उजाड़ने के लिए
- एक आदमी बैंक में लाख रुपये जमा कराने जा रहा हो, कुछ लम्पट बदमाशों को पता चल गया और उन्होंने योजना बना ली कि इससे रुपये छीनने हैं, चाहे कोई उपाय किया जाये। क्या यह उचित है ?
- एक सुन्दर लड़की रास्ते जा रही है कुछ लम्पट बदमाश उसके शील भंग करने के लिए उतारू होकर कोई भी उपाय करने को तैयार हैं। क्या यह न्यायोचित है ?
- और सबसे बड़ी बात है उपरोक्त के साथ पुलिस और न्याय व्यवस्था भी आंख बन्द कर ले तो क्या यह अच्छी बात है ? आम लोगों को नहीं पता पर भुक्तभोगी इसे अच्छी तरह जानते हैं।
ये बात जमीन के लिए भी उतनी ही सच है जितनी उपरोक्त बातों के लिए खिरोड़, मूनवाड़ी, बेरी, तारपुरा, बसावा, खोजावास, टौंकछिलरी, भोजनगर, सुरजनपुरा, डालाणा, भूरियो की ढाणी, परसरामपुरा, देवगाँव, गोइड़ा, कालेरावणां की ढाणी, खेदड़ां की ढाणी, खेसवां की ढाणी, चौढाणी, महंत की ढाणी व भाखरिया की ढाणी के लिए।
इस क्षेत्र की जमीन पर तीन व्यापारिक घरानों की नजर पड़ी, क्योंकि इस जमीन के नीचे चूना पत्थर दबा पड़ा है इससे सीमेंट बनाने के लिए कारखाने लगाये जायेंगे।
यहां घनश्यामदास बिड़ला का पोता कुमार मंगलम बिड़ला, ग्रासिम इन्डस्ट्रीज का मालिक, अल्ट्राटेक सीमेन्ट सात करोड़ टन सालाना की दर से चालीस साल तक उत्पादन करेगा।
यही हाल लांडणूं डीडवाना के बांगड़ घराने का है वह चालीस साल तक श्री सीमेन्ट का उत्पादन करेगा।
यही हाल आई.सी.एल. जिसके बारे में अफवाहें हैं कि इसका अधिकतम शेयर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करूणानिधि का है। इण्डिया सीमेंट लिमिटेड के अधिकारी अभी यहां पहुंचे नहीं हैं पर बिड़ला व बांगड़ परिवार के कारिंदों ने यहां दो साल से दस्तक दे रखी है और ये साम-दाम-दण्ड-भेद अपना कर उपरोक्त गाँवों की लगभग 72 हजार बीघा जमीन किसानों से छीनना चाहते हैं।
जिन्होंने जमीन बेची हैं (अभी तक चार हजार बीघा) वे ज्यादातर भविष्य की अंधेरी सोच वाले लोग हैं। उन्हें पता ही नहीं कि करोड़ों रुपये बीघा की जमीन लाखों के भाव क्यों? दूसरा इन्होंने यह नहीं जानना चाहा कि सीमेन्ट तो 40 साल ही बनेगी, इसके बाद यह जमीन किसकी होगी? 40 साल बाद जब पत्थर खत्म हो जायेगा तो कंपनी वालो इसका क्या करोगे? अगले समय में यह जमीन हमारी होनी चाहिये। आप खरीद क्यों रहे हैं ? आप 40 या 45 साल के लिये जमीन हमसे लीज पर क्यों नहीं लेते जैसे पंचायत समिति ने लीज पर दुकानें दे रखी हैं ? इसका सालाना लाभांश हमें दीजिए और जितनी चाहे उतनी जमीन काम में लो।
नेताओं-दलालों की हरकतें देखने के बाद क्षेत्र का किसान इस अधिग्रहण के खिलाफ स्वयं खड़ा हो गया है क्योंकि किसानों ने देख लिया है कि 50 हजार की आबादी जो विस्थापित होगी उसके ठिकाने के लिये इतनी जगह कहीं नहीं है। अतः जमीन अधिग्रहण के खिलाफ 225 दिन से धरना जारी है। इस धरने के कारण कम्पनियों के पालतू कुत्ते परेशान हैं। किसानों से कह रहे हैं कि जमीनें तो सरकार छीनेगी व फिर पैसे भी नहीं देगी।
तथ्यः
सीमेन्ट फैक्ट्रियों के बारे में कुछ तथ्यः-
अ). ग्रासिम इण्डस्ट्रीजः (अल्ट्राटेक सीमेन्ट बिड़ला)
जमीन की जरूरतः-
1. खनन प्रथम – 3461.2 हेक्टेयर
2. खनन द्वितीय- 1153.4 हेक्टेयर
3. सीमेन्ट व पावर प्लान्ट- 250 हेक्टेयर
4. रोड व रेल लिंक- 75 हेक्टेयर
इस तरह कुल- 4939.6 हेक्टेयर
5. पानी की खपत- 4000 क्युबिक मीटर प्रतिदिन
6. उत्पादन प्रतिवर्ष- 7 करोड़ मीट्रिक टन
7. उत्पादन का काल- 40 वर्ष
8. मैन पावर (काम करने वालों की जरूरत)- 700 आदमी
ब). श्री सीमेण्ट – बाँगड़
जमीन की जरूरत प्लांट के लिए- 730.24 हेक्टेयर
प्लांट एवं माइनिंग के लिए- 6572.16 बीघा
स). आई.सी.एल.
जमीन की जरूरत प्लांट के लिए 776.94 हेक्टेयर
प्लांट एवं माइनिंग के लिए- 6992.46 बीघा
जनप्रतिनिधियों की भूमिकायें–
1. एम.पी.
एम.पी. श्री शीशराम ओला हैं जो पिछली यूपीए सरकार में खान मंत्री थे उसी काल में माइनिंग मिनिस्टर के तौर पर इन कारखानों को माइनिंग की स्वीकृति जारी की। बहुत सालों से यह क्षेत्र शीशराम ओला का गढ़ रहा है, उसी के इनाम स्वरूप शीशराम ओला ने इन बीस गांवों व ढ़ांड़ियों को शानदार तोहफा दिया है।
2. एम.एल.ए.
पिछली एम.एल.ए. ने जो इस क्षेत्र में भारी बहुमत से जीती थीं, इस क्षेत्र के लोगों को बहुत आश्वस्त करके रखा कि जमीन नहीं जाने देंगे, मैं मुकदमा लडूंगी। ट्रिब्युनल में याचिका दायर कर जीतने का नाटक कर दिया और जब कंपनियों ने हाई कोर्ट में अपील कर दी तो उन्होंने वकील भी नहीं खड़ा किया, फिर कोर्टों में होता क्या है आप सब जानते हैं।
3. वर्तमान एम.एल.ए.
इस शख्स ने गला फाड़-फाड़ कर छाती में गोली खाने की कसम खाई थी कहा कि जमीन एक इंच भी नहीं जाने दूंगा और आज कह रहे हैं कि किसान एक नहीं
4. इनके अलावा लंबी-लंबी बातें करने वाले लोगों का कोई अता पता नहीं है। कोई कहता है कि कांग्रेसी आ गये, कोई कहता है कि यहां बीजेपी आ गयी, कोई कहता है कि बसपा आ गयी, कोई कहता है कम्युनिस्ट आ गयी इसलिये हम नहीं आयेंगे। रह गया अकेला किसान इस संघर्ष में उन सब का स्वागत करने को तैयार हैं जो भी उनकी जमीन बचाने में मदद करें।
दलालों की भूमिकाः
इस क्षेत्र में ग्रासिम व श्री सीमेंट कंपनियों के दलाल सक्रिय हैं। वे इस घृणित स्तर पर उतर आये हैं जिसको एक हरियाणवी गीत के बोल ही परिभाषित कर सकते हैं वह बोल हैं- ‘‘कुनबा पड़ो भाड़ में , जीजा दोनों मौज मनावोंगे।’’
माफिया-
यहां पर सारे माफिया किसानों के खिलाफ सक्रिय हैं। भू-माफिया, खान माफिया और शराब माफिया। इन सारे माफियाओं के राजनीतिक माफिया से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।
कानून की खुली धज्जियां उड़ रही हैं–
कानून है कि एस.टी. की जमीन का किसी भी गैर एस.टी. के नाम हस्तांतरण नहीं हो सकता है। इस क्षेत्र में खुले आम एस.सी., एस.टी. की जमीनों की बिक्री हुई है, तो क्या ये मजाक नहीं है कानून का?
पर्यावरण के सरोकार–
- नवलगढ़ झुन्झुनू जिले का सबसे बड़ी आबादी वाला कस्बा है जिसकी आबादी करीब डेढ़ लाख है। इसकी दूरी ग्रासिम सीमेन्ट प्लांट से 6 किमी है।
- एक ड्राई रिवर है जो 4 किमी है जिस के सहारे लोहार्गल जैसा पवित्र स्थल है जिस पर करोड़ों लोग मेले पर आते हैं। इनकी सुरम्य पहाड़ियों में पेड़, फूल, जड़ी-बूंटियां और पहाड़ी लोगों का बसर होता है।
- उत्तर-पश्चिम हवाओं के कारण चिराण उदयपुरवाटी, डहर छापोली तक का इलाका कारखानों की राख व जहरीली गैसों के असर में आने वाला है।
- उपरोक्त पर्यावरणीय प्रभावों से नवलगढ़ से लोहार्गल चिराणा तक, कारखानों की शुरूआत के 2 वर्ष के भीतर करीब-करीब सभी घरों में श्वांस रोगी, करीब 5 में से एक घर में टीबी मरीज, करीब 50 में एक घर में कैंसर रोगी व 100 घरों में एक घर में असाध्य रोगी होंगे।
उपरोक्त क्रम में 15 व 20 किमी रेडियस के क्षेत्र में उसी अनुपात में रोगी होंगे। पेड़ पौधे भी सूख जायेंगे और लम्बे अन्तराल से कायम सूर्यकुण्ड झरना भी सूख जायेगा।
खतरों से अनजान नवलगढ़ के वासी-
उपरोक्त प्रभावों का खतरनाक असर सबसे ज्यादा घनी आबादी पर सबसे ज्यादा होगा जिसमें नवलगढ़ कस्बा है। आज इस कस्बे के लोग आने वाले संकट से नावाफिक हैं अतः किसानों के धरने को तटस्थ होकर देख रहे हैं लेकिन यही बात एक दिन इनके गले की हड्डी बनेगी इसका इन्हें अहसास नहीं है।
पानी का भविष्य-
एक तरफ सरकार इस इलाके को पानी की कमी के नाते डार्क जोन घेाषित कर रही है दूसरी तरफ अकेले ग्रासिम 4000 क्यूबिक मीटर पानी प्रति दिन इस्तेमाल करेगी तो बाकी दोनों इतना ही पानी बरतेंगी, फिर ऐसी स्थिति में उदयपुरवाटी चिराणा जो पहले से ही वर्षा पर निर्भर है, इससे बड़ा कस्बा नवलगढ़ और आस-पास के गांव भी पानी से वंचित हो जायेंगे। ऐसी सूरत में उपरोक्त माफियाओं की तरह से पानी माफिया भी पनपेगा जैसे वह के.सी.सी. (खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट) एरिया में 20 रुपये प्रति घड़ा पानी बेच रहे हैं, वह यहां भी हो जायेगा।
– श्रीचन्द सिंह डूडी, प्रान्तीय महासचिव, राजस्थान बिजली किसान यूनियन