शेरों के नाम पर विस्थापन
मध्य प्रदेश के श्योपुरी जिले में दस साल पहले एशियाई शेरों को बसाने के लिए 28 गांव के लोगों को जिन शेरों के नाम पर विस्थापित किया गया वहां आज तक शेर नहीं लाये गये। केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री की पहल के बावजूद गुजरात सरकार वहां अपने शेरों के बसाने से इंकार ही करती रही है।
दस साल पहले विस्थापन के समय 28 गांवों के हजारों लोगों को सभी सुविधाओं के साथ बसाने का वादा भी सिर्फ वादा ही रह गया है। यह हजारों लोग आज भी अपने आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं। न पानी है और न ही हो पाती है खेती। लोगों का कहना है- ‘‘हमें तो उजाड़ दिया, लेकिन शेर नहीं ला पाये।’’ लोग आज भी अपने पुराने गांव और जंगल को याद करके उदास हो जाते हैं। किसी भी तरह की सुविधा न होने की वजह से लोगों के जीने की स्थिति निम्न होती जा रही है। स्कूल न होने के चलते बच्चे अनपढ़ बैठे हुए हैं। जंगल में जीने के मजे से महरूम हैं यह लोग।
विस्थापितों की लड़ाई लड़ रहे विस्थापित संघर्ष समिति के अध्यक्ष रघुलाल जाटव कहते हैं- ‘‘दस साल पहले विस्थापन के समय अच्छी जमीन, पानी, अस्पताल, स्कूल की बात कही गयी थी लेकिन दस साल बाद भी आज वहां कुछ नहीं है, खेतों में जो थोड़े-बहुत गेहूं का उत्पादन हो रहा है बढ़ती गर्मी के चलते वह भी चौपट हो रहा है।
राशन व्यवस्था की इतनी बदतर हालत है कि महीने में एक ही बार राशन आता है जिसमें मिट्टी के तेल और गेहूं के लिए महिलाओं और बच्चों की राशन की दुकान पर लम्बी लाइन लग जाती है।
लोग खेती छोड़ मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते हैं लेकिन मजदूरी की भी स्थिति यह है कि लोग मनरेगा तक में मजदूरी नहीं करना चाहते, क्योंकि बैंकों से तीन महीने बाद मजदूरी मिलती है। इन दस सालों में अपने परिवार को चलाने के लिए इन गांवों से पलायन भी बढ़ा है।
लेकिन गौरतलब बात यह है कि जिन एशियाई शेरों को बसाने के चलते हजारों लोगों को विस्थापित किया गया वहां आज तक म. प्र. सरकार शेरों को नहीं बसा पायी है।