कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण: नियम, प्रक्रिया और भूमि स्वामियों के अधिकार
भारत में कोयला खनन जैसे औद्योगिक या सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा रहा है। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (RFCTLARR Act, 2013) ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान पेश किए हैं। यह खबर कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण, कंपनी द्वारा भूमि खरीद, भूमि स्वामियों की सहमति, सरफेस राइट्स, और मुआवजे से संबंधित नियमों को विस्तार से समझाती है, साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि सरकार किसी भूमि स्वामी को मुआवजा स्वीकार करने या सहमति देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
1. कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण: कानूनी ढांचा
भारत में भूमि अधिग्रहण मुख्य रूप से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत नियंत्रित होता है, जिसने पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को प्रतिस्थापित किया। यह कानून सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे कोयला खनन, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, औद्योगिक विकास, या शहरीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। कोयला खनन के संदर्भ में, कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम, 2015 भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कोयला ब्लॉकों के आवंटन और संबंधित भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करता है।
मुख्य प्रावधान:
सार्वजनिक उद्देश्य: भूमि अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे कोयला खनन, जो देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
सहमति की आवश्यकता: निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए 80% और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के लिए 70% प्रभावित परिवारों की सहमति आवश्यक है।
सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA): अधिग्रहण से पहले एक स्वतंत्र सामाजिक प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए, जिसमें प्रभावित लोगों की राय और परियोजना के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन शामिल हो।
मुआवजा: भूमि स्वामियों को बाजार मूल्य से चार गुना तक मुआवजा दिया जाता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। इसके अतिरिक्त, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए भी प्रावधान हैं।
2. कंपनी द्वारा भूमि खरीद
सरकार सीधे तौर पर भूमि अधिग्रहण करने के बजाय, कोयला खनन कंपनियों (जैसे कोल इंडिया लिमिटेड या निजी कंपनियां) को भूमि स्वामियों से सीधे खरीदने या पट्टे पर लेने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित नियमों के तहत होती है:
स्वैच्छिक खरीद: कंपनियां भूमि स्वामियों के साथ बाजार मूल्य पर सीधे सौदा कर सकती हैं। मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में, कंपनियों को 500 हेक्टेयर तक कृषि भूमि और 50 हेक्टेयर तक शहरी भूमि खरीदने की अनुमति है, बिना सरकारी अनुमति के।
पट्टा या सरफेस राइट्स: यदि भूमि स्वामी अपनी भूमि बेचना नहीं चाहते, तो कंपनी सरफेस राइट्स (सतही अधिकार) के तहत भूमि का उपयोग कर सकती है। इसमें भूमि स्वामी को मुआवजा या किराया देकर केवल सतह का उपयोग खनन के लिए किया जाता है, जबकि भूमि का स्वामित्व मालिक के पास रहता है। यह प्रक्रिया कोयला खनन में आम है, खासकर जहां भूमि स्वामी पूरी तरह से जमीन छोड़ना नहीं चाहते।
कानूनी प्रक्रिया: भूमि खरीद के लिए टाइटल डीड और एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेजों की जांच आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो कि भूमि पर कोई कानूनी विवाद न हो।
3. भूमि स्वामी की सहमति
RFCTLARR अधिनियम, 2013 ने भूमि स्वामियों की सहमति को अनिवार्य बनाया है, जिससे सरकार या कंपनी की मनमानी कम हो। निम्नलिखित बिंदु सहमति से संबंधित हैं:
सहमति का नियम: निजी परियोजनाओं के लिए 80% और PPP परियोजनाओं के लिए 70% प्रभावित परिवारों की सहमति जरूरी है। कोई जबरदस्ती नहीं: सरकार या कंपनी किसी भी भूमि स्वामी को सहमति देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। यह संवैधानिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 300A (निजी संपत्ति का अधिकार) के तहत संरक्षित है।
सार्वजनिक सुनवाई: सामाजिक प्रभाव आकलन के दौरान जनसुनवाई आयोजित की जाती है, जिसमें प्रभावित लोग अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं। कुछ राज्यों में जनसुनवाई की नोटिस अवधि को कम करने की कोशिश की गई है, जिसे कार्यकर्ताओं ने पारदर्शिता के खिलाफ माना है।
4. सरफेस राइट्स और कोयला खनन
सरफेस राइट्स का मतलब है कि कंपनी केवल भूमि की सतह का उपयोग खनन कार्यों के लिए करती है, जबकि भूमि का स्वामित्व मालिक के पास रहता है। कोयला खनन में यह प्रक्रिया आम है, क्योंकि खनन गतिविधियां सतह पर सीमित होती हैं।
प्रक्रिया: कंपनी और भूमि स्वामी के बीच एक समझौता होता है, जिसमें मुआवजा, किराया, या पुनर्वास की शर्तें शामिल होती हैं।
लाभ: यह भूमि स्वामियों को अपनी जमीन का स्वामित्व बनाए रखने की अनुमति देता है और कंपनी को खनन के लिए आवश्यक सतह का उपयोग करने की सुविधा देता है।
उदाहरण: कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) जैसी कंपनियां अक्सर सरफेस राइट्स के तहत भूमि का उपयोग करती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भूमि स्वामी पूर्ण अधिग्रहण के खिलाफ हैं।
5. मुआवजा और पुनर्वास
मुआवजा और पुनर्वास RFCTLARR अधिनियम, 2013 के प्रमुख स्तंभ हैं। निम्नलिखित प्रावधान लागू होते हैं:
मुआवजा राशि: ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में दो गुना मुआवजा दिया जाता है।
पुनर्वास और पुनर्स्थापन: प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक भूमि, आवास, या रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो।
मुआवजा स्वीकार करने की कोई बाध्यता नहीं: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, यदि सरकार ने मुआवजे की पेशकश की है, तो उसका दायित्व पूरा माना जाता है। लेकिन भूमि स्वामी को मुआवजा स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
कानूनी सुरक्षा: यदि कोई भूमि स्वामी मुआवजा या अधिग्रहण से असहमत है, तो वह अदालत में चुनौती दे सकता है।
6. सरकार द्वारा दबाव पर प्रतिबंध
भारतीय संविधान और RFCTLARR अधिनियम, 2013 यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार या कोई कंपनी भूमि स्वामियों पर अनुचित दबाव नहीं डाल सकती।
संवैधानिक अधिकार: अनुच्छेद 300A के तहत, किसी भी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से बिना उचित कानूनी प्रक्रिया और मुआवजे के वंचित नहीं किया जा सकता।
जबरदस्ती पर रोक: सरकार या कंपनी न तो सहमति देने के लिए और न ही मुआवजा स्वीकार करने के लिए दबाव डाल सकती है। यह सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह और SIA इकाइयां गठित की जाती हैं।
उदाहरण: बोकारो, झारखंड में कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीसीएल द्वारा कोयला खनन के लिए पेड़ काटने की योजना का स्थानीय ग्रामीणों ने विरोध किया, क्योंकि उनकी सहमति नहीं ली गई थी।
7. चुनौतियां और विवाद
सहमति की कमी: कई मामलों में, सरकार या कंपनियां पर्याप्त सहमति लिए बिना अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करती हैं, जिससे विरोध और मुकदमे बढ़ते हैं।
SIA की गुणवत्ता: कुछ राज्यों में सामाजिक प्रभाव आकलन की प्रक्रिया को कमजोर किया गया है, जिससे पारदर्शिता प्रभावित होती है।
जटिल प्रक्रिया: RFCTLARR अधिनियम की जटिल प्रक्रिया के कारण अधिग्रहण में 4-5 साल तक लग सकते हैं, जिससे परियोजनाओं में देरी होती है।
कोयला खदान के लिए भूमि अधिग्रहण एक संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें भूमि स्वामियों के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। RFCTLARR अधिनियम, 2013 और कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम, 2015 ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया है। भूमि स्वामियों की सहमति, उचित मुआवजा, और पुनर्वास के प्रावधान अनिवार्य हैं, और किसी को भी सहमति देने या मुआवजा स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कंपनियां सीधे भूमि खरीद या सरफेस राइट्स के माध्यम से खनन कार्य कर सकती हैं, लेकिन यह सब स्वैच्छिक और कानूनी रूप से होना चाहिए। भूमि स्वामियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और किसी भी अनुचित दबाव के खिलाफ कानूनी सहायता लेनी चाहिए।
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अमर चौहान की रिपोर्ट अमर खबर से साभार प्रकाशित