तमिलनाडु : स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुई हत्याओं की जांच के तीन साल बाद भी कोई गिरफ़्तारी नहीं
पुलिस कार्रवाई जिसने 22 मई, 2018 को 12 लोगों की जान ले ली थी और पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था, गोलीबारी की यह घटना तब घटी जब स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टर प्लांट के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण चल रहा था। कार्यवाई के अगले दिन एक और व्यक्ति की मौत हो गई थी जिससे कुल हताहतों की संख्या 13 हो गई थी। तीन साल के बाद भी किसी के खिलाफ मुक़दमा तक दर्ज नहीं किया गया है। पढ़िए न्यूजक्लिक से साभार नीलाबंरन ए का आलेख जिसका हिंदी अनुवाद महेश कुमार ने किया है;
22 मई, 2018 को तमिलनाडु के थूथुकुडी में पुलिस फायरिंग में 13 मजदूरों की उस वक़्त हत्या हो गई थी जब वे स्टरलाइट के स्मेल्टर प्लांट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, उनके मारे जाने के तीन साल बाद भी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अभी तक किसी एक भी पुलिसकर्मी को न तो गिरफ्तार कर पाई है और न ही किसी का नाम ही नहीं दर्ज़ किया है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अक्टूबर 2018 में एक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपनी जांच बंद कर दी थी, जो रिपोर्ट अभी भी गोपनीय है। एनएचआरसी द्वारा जांच बंद करने के बाद, मानवाधिकार संगठन, पीपुल्स वॉच ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 25 जून, 2021 को एक आदेश पारित किया, जिसमें एनएचआरसी को 2018 की जांच रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था।
अदालत ने राज्य सरकार को न्यायिक आयोग की अंतरिम रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया है। न्यायमूर्ति अरुणा जगदीशन आयोग ने 21 मई, 2021 को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी, ऐसा तब किया गया जब नई सरकार ने इसकी मांग की थी। राज्य सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज कुछ मामले वापस ले लिए हैं।
‘तीन साल के बाद भी किसी के भी खिलाफ मुक़दमा दर्ज नहीं किया गया’
पुलिस कार्रवाई ने 22 मई को 12 लोगों की जान ले ली थी जिससे पूरे देश में आक्रोश पैदा हो गया था, जबकि स्टरलाइट कंपनी के कॉपर स्मेल्टर प्लांट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन काफी शांतिपूर्ण था। अगले दिन एक और व्यक्ति की मौत हो गई, जिससे कुल हताहतों की संख्या 13 हो गई थी।
उक्त फायरिंग थूथुकुडी के नागरिकों द्वारा लंबे समय से किए जा रहे विरोध प्रदर्शन के सौवें दिन शांतिपूर्ण मार्च पर की गई थी। पुलिस फायरिंग से जुड़े सभी मामले मद्रास हाईकोर्ट ने अगस्त 2018 में सीबीआई को सौंपे दिए थे। तत्कालीन अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) सरकार ने गोलीबारी को एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया के रूप में उचित ठहराया था।
पुलिस फायरिंग के तीन साल बाद और सीबीआई जांच के दो साल और 10 महीने से अधिक समय के बाद भी मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। पीपुल्स वॉच के कार्यकारी निदेशक हेनरी टिफागने ने कहा, “सीबीआई ने 72 प्रदर्शनकारियों का नाम लिया है, जबकि पुलिस बल या जिला प्रशासन से किसी का भी नाम अब तक प्राथमिकी में दर्ज नहीं किया गया है।”
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने कहा: “यह कुछ हद तक चिंताजनक मामला है कि राज्य ने अपनी पुलिस के माध्यम से निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं और घटना के तीन साल बाद किसी पर भी कोई मामला दर्ज नहीं किया गया”।
अदालत ने कहा, “संवैधानिक सिद्धांतों से शासित सभ्य समाज में यह कोई शुभ संकेत नहीं है कि हम पीड़ितों के परिवारों के सामने केवल पैसा फेंक रहे है और पीड़ितों के परिवार के खिलाफ संभावित क्रूरता और अत्यधिक पुलिस कार्रवाई की घटना पर कोई कार्यवाई नहीं हुई है।”
‘न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद एनएचआरसी ने शुरू की थी जांच’
एनएचआरसी ने मामले का स्वत: संज्ञान लेने के बाद – 23 मई केस नंबर 907/22/41/2018 के रूप में एक शिकायत दर्ज़ की थी – पुलिस फायरिंग के एक दिन बाद इसने अपनी जांच को राज्य सरकार को नोटिस भेजने तक ही इसे सीमित कर दिया था।
टिफागने ने अपने हलफनामे में कहा है कि “एनएचआरसी ने मामले की गंभीर प्रकृति के बावजूद किसी भी अधिकारी को जांच के लिए नहीं भेजा। दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय ने एनएचआरसी को जांच महानिदेशक के नेतृत्व में मानवाधिकार (संरक्षण) अधिनियम 1993 की धारा 14 के तहत एक स्वतंत्र जांच करने के लिए उपयुक्त आदेश पारित किया था”।
29 मई, 2018 को, एनएचआरसी ने अपने महानिदेशक (जांच प्रभाग) को एक ऐसे अधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम नियुक्त करने का निर्देश दिया, जो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का न हो, जिसमें मामले की जांच के लिए पुलिस उपाधीक्षक और निरीक्षकों के रैंक के तीन या उससे अधिक अधिकारी शामिल हों।
अपनी जांच टीम भेजने के मामले में एनएचआरसी द्वारा बरती गई ढिलाई या देरी पर टिप्पणी करते हुए, टिफागने ने कहा, “जबकि आठ संयुक्त राष्ट्र विशेष प्रक्रियाएं आगे आईं और पुलिस की ज्यादती और अनुपातहीन हिंसा’ की कड़ी निंदा की, लेकिन माननीय एनएचआरसी ने इन बर्बर चेहरों की निंदा नहीं की जिन्होने बच्चों सहित निर्दोष और निहत्थे नागरिकों पर पुलिस की बर्बरता का कृत्य” को अंज़ाम दिया था।
एनएचआरसी ने जांच क्यों बंद की?
25 अक्टूबर 2018 को, एनएचआरसी ने खुद मामले का संज्ञान लेते हुए जांच बंद करने का आदेश दे दिया था। जांच दल की रिपोर्ट और उसके निष्कर्ष गोपनीय रहे और कथित तौर पर मामले को जल्दी से बंद कर दिया गया था।
“पीड़ितों को दिए गए मुआवजे और जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखने के बारे में राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और पुलिस ज्यादतियों की जांच के लिए बने न्यायिक आयोग के आधार पर, एनएचआरसी ने महसूस किया कि मामले में किसी भी किस्म के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। रिपोर्ट को रिकॉर्ड में ले लिया गया और जांच बंद कर दी गई,” उक्त बातें हल्फ़्नामे में दर्ज़ है।
हालांकि, पीपुल्स वॉच सहित स्टरलाइट के विरोध में प्रदर्शन करने वाले संगठनों ने आरोप लगाया है कि कई प्रदर्शनकारियों को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया, प्रताड़ित किया गया, स्थानीय समुदाय को डराने के लिए एक खुली प्राथमिकी जारी की गई और तमिलनाडु गुंडा अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया था।
यद्द्पि, एनएचआरसी, सितंबर 2019 में हुई एक खुली सुनवाई में मामले को फिर से खोलने पर विचार करने के लिए सहमत हो गई है, लेकिन अभी कोई प्रगति नहीं हुई है।
“एनएचआरसी ने कहा है कि मामले को बंद करने का आधार यह है कि पुलिस फायरिंग के पीड़ितों को मुआवजा दे दिया गया था। जिस मुआवजे का उल्लेख किया गया है, वह तमिलनाडु सरकार द्वारा दिया गया अनुग्रह भुगतान है न कि मुकम्मल मुआवजा है,” टिफागने ने कहा।
ब्रिटेन स्थित वेदांत समूह द्वारा जनता की गंभीर आशंकाओं के बावजूद, अपनी उत्पादन की क्षमता को दोगुना करने की योजना के खिलाफ 2018 में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए थे। 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने स्मेल्टर प्लांट से निकलने वाले अपशिष्टों के साथ भूजल, वायु और मिट्टी को प्रदूषित करने के लिए स्टरलाइट प्लांट पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था और आदेश में यह भी कहा गया था कि संयंत्र ने संचालन मानकों का भी उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा, “मेरी याचिका पर सुनवाई के बाद, अदालत ने एनएचआरसी को अपनी 2018 की जांच रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया था और न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को भी जमा करने के आदेश दिए थे।”
न्यायिक आयोग ने अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की
न्यायमूर्ति अरुणा जगतीसन आयोग ने काफी लंबी देरी के बाद 21 मई को राज्य सरकार को अपनी जांच की अंतरिम रिपोर्ट सौंपी। एनएचआरसी ने 2018 में, पुलिस फायरिंग के खिलाफ खुद मामले का संज्ञान लेते हुए और आयोग के गठन के बाद जांच को बंद कर दिया, लेकिन आयोग की धीमी प्रगति और जांच में हुई देरी के कारण सभी तरफ से आयोग की आलोचना हुई।
“समिति को शुरू में जांच रिपोर्ट जमा करने के लिए अगस्त 2018 तक यानि तीन महीने का समय दिया गया था। तत्कालीन अन्नाद्रमुक सरकार ने पिछले तीन वर्षों में आयोग की समयसीमा को चार बार बढ़ाना पड़ा – पहले तीन महीने, फिर नौ महीने, 14 महीने और 21 महीने। पिछले महीने जब मुख्यमंत्री कार्यालय ने आयोग से जांच रपट जमा करने को कहा तभी आयोग ने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी,” टिफागने ने कहा।
राज्य सरकार ने अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज कुछ मामलों को वापस ले लिया है, लेकिन टिफागने ने कहा कि “डीएमके सरकार पिछली सरकार की तरह धीमी गति से नहीं चल सकती है और उसे प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है”।
कोविड-19 के बढ़ते मामलों के कारण और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी होने के बाद मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन के लिए राज्य सरकार की मंजूरी से इस साल अप्रैल महीने में कॉपर स्मेल्टर प्लांट को फिर से खोल दिया गया है।