भोपाल गैस त्रासदी – जख्म अभी भरे नहीं हैं !
‘भोपाल गैस त्रासदी’ के 38 वें साल में, उसके प्रति सरकारों, सेठों और समाज की बेशर्म अनदेखी के अलावा हमें और क्या दिखाई देता है? 1984 की तीन दिसंबर के बाद पैदा हुई पीढ़ी इसे लेकर क्या सोचती है? क्या उसे अपनी पिछली पीढ़ी के कारनामों पर कोई कोफ्त नहीं होती? प्रस्तुत है, इन्हीं सवालों को उजागर करता युवा अस्मा खान का यह लेख;
पुराने शहर की तरफ कभी यूँ…
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