विकास के नाम पर भूमि की लूट
-विवेकानंद माथने
जमीन प्रकृति की देन है। उसके बिना सजीव सृष्टि के आस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। वह सारे सजीव सृष्टि के जीवन का आधार है। जमीन पर किसी की भी मिल्कियत नहीॆ हो सकती, समाज को केवल प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर उसके उपयोग का अधिकार है। जमीन, जल, वायु, प्रकाश, जंगल, जैव विविधता आदी सभी जीवन के आधार है, यही मनुष्य जाति की…
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