महाजनी संस्कृति, प्रेमचंद और वर्तमान
प्रेमचंद की 135वीं जयंती पर आदियोग का आलेख;
विकास के भागते पहिये से वह चमक पैदा हुई कि आजादी की आधी सदी गुजर जाने के बावजूद लालटेन-ढ़िबरी के युग में जीने को मजबूर ग़रीब-गुरबों और मेहनत-मशक़्क़त करनेवालों की आंखें चुंधिया गयीं, निगाहों के सामने घुप्प अंधेरा छा गया। मुठ्ठी भर जमात विकास की रोशनी को अपने हरम में बंधक बना कर रखने और उसका अंधेरा…
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