संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

भूअर्जन अध्यादेश और कॉरपोरेट राज के खिलाफ : अधिवेशन 14-15 मार्च 2015

भूअर्जन अध्यादेश और कॉरपोरेट राज के खिलाफ सम्मेलन

14-15 मार्च 2015

स्थान: तेतला गेस्ट हाउस, टाटा हाता रोड, पोटका , पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड।

साथियो,
जोहार !
नरेन्द्र मोदी की सरकार के बने हुए लगभग 8 महीने हो चुके हैं। जनता ने बहुत ही उम्मीदों के साथ भाजपा को बहुमत दिया कि यह सरकार जनता की भलाई देश की तरक्की के लिये काम करेगी जैसा कि आज तक किसी सरकार ने नहीं किया था। बहुत भरोसा था कि अच्छे दिन आयेंगे। अच्छे दिन तो आये भी हैं पर वह आदानी-अंबानी के लिए। अभी तक जितने पैकेज दिये गये हैं सबका लाभ इसी वर्ग को मिला है। इसके लिए कानून बदले जा रहे हैं, उसे तोडा़-मरोड़ा जा रहा है। इसी के लिये संसदीय परम्पराओं की अवहेलना कर अध्यादेश पर अध्यादेश लाये जा रहे हैं। इस मामले में नरेन्द्र मोदी इन्दिरा गांधी के ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं। इसी क्रम में दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भूअर्जन कानून में संशोधन का अध्यादेश लाया गया है। किसान और विस्थापन विरोधी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और उद्योगपतियों के संगठन इसके स्वागत में लगे हैं।

भूअर्जन के लिये अंग्रेजों द्वारा बनाये गये 1894 के औपनिवेशिक कानून को जनदबाव के चलते 2013 में संशोधित कर नया रूप दिया गया था और जिसमें कुछ जनपक्षधर प्रावधान जोड़े गये थे। यह ध्यान रखने की बात है कि अंग्रेजों द्वारा बनाये गये कानून में भी निजी कम्पनियों के लिए जमीन अधिग्रहण का कोई प्रावधान नहीं था जिसे आजाद भारत की सरकार ने 1984 में संशोधन कर जोड़ दिया था। इस प्रावधान को अमल में लाने के खिलाफ सिंगुर-नंदीग्राम से लेकर जिंदल-मित्तल – पोस्को तक विद्रोहों की कड़ी बन गयी। इस वजह से मजबूर होकर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने भूअर्जन कानून में संशोधन कर सार्वजनिक परियोजना के लिए तथा पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) परियोजनाओं हेतु 70 प्रतिशत जमीन उक्त परियोजना द्वारा स्वयं अर्जित करने अर्थात् खरीदने का प्रावधान जोड़ा और इसके लिये किसानों की सहमति अनिवार्य की गयी। परंतु मोदी सरकार द्वारा जारी अध्यादेश ने इस प्रावधान को समाप्त कर दिया है और कॉरपोरेट हित को संरक्षण देने का अपना इरादा खुले तौर पर जाहिर कर दिया है। इसी प्रकार अब परियोजना के पहले सामाजिक प्रभाव का आकलन करना, पर्यावरण अनापŸिा लेना जरूरी नहीं होगा। इसी तरह जिस उद्देश्य से जमीन लिया गया और उस उद्देश्य के लिए 5 वर्ष के अन्दर जमीन का उपयोग न हो तो उक्त जमीन किसानों को वापस कर देने या लैंड बैंक में जमा कर देने के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया गया है। इसका तात्पर्य है कि जमीन का उपयोग न करने की स्थिति में भी जमीन पर उक्त प्राधिकार का हक बना रहेगा। 2013 के कानून में आजीविका के लिए प्रभावित क्षेत्र के भूमिहीन लोगों को भी पुनर्वास पैकेज का लाभ मिलने का प्रावधान था, उसे भी खत्म कर दिया गया है।

बात सिर्फ भूअर्जन तक ही सीमित नहीं है। कॉरपोरेट की राह में जो भी रोड़े हैं उन्हें एक-एक कर हटाया जा रहा है। चाहे वह भूअर्जन कानून हो या श्रम कानून। भारत के मजदूरों ने सैंकड़ों बरसों के संघर्ष के बाद जो अधिकार हासिल किये थे उसको भी धीरे-धीरे नकारा जा रहा है। प्रधानमंत्री बड़े ही हास्यास्पद तरीके से दुनिया भर में सस्ते श्रम का ढिंढोरा पिट रहे हैं। सस्ते श्रम का सीधा मतलब है मजदूरों को कम वेतन। जो चीज अपयश की वजह हो सकती है उसे महिमामंडित किया जा रहा है और कॉरपोरेट वाह-वाह कर रहे हैं।

भूअर्जन कानून, श्रम कानून, कोयला ब्लॉक की नीलामी, लौह अयस्क एवं अन्य खनिजों की नीलामी संबंधी अध्यादेश सीधे तौर पर कॉरपोरेट राज कायम करने की कोशिश है। यह कोशिश भाजपा और कांग्रेस की ही नहीं है। यह वैश्विक नीतियों का परिणाम है जिसका संचालन विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुुद्रा कोष, विश्व व्यपार संगठन और साम्राज्यवादी देशों की चौकड़ी मिलकर करती है। इस कोशिश से देश की जनता को नुकसान उठाना पड़ेगा। लोग उजड़ेंगे, कामगारों की स्थिति असुरक्षित और अव्यवस्थित होगी। खनिजों को लूट लिया जायेगा। पर्यावरण तबाह होगा। परंतु कॉरपोरेट की तिजोरियां भरेंगी। और उन तिजोरियों में राजनेताओं की भी हिस्सेदारी होगी। कॉरपोरेट, राजनेता और कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया मिलकर चुनाव के वक्त ऐसा भावनात्मक माहौल बनायेंगे, ऐसा लुभावना संसार गढ़ेेंगे कि लोग सम्मोहित होकर अपने ही खिलाफ वोट करेंगे। इस साजिश को समझने और उसे नाकाम करने का वक्त आ गया है।

विस्थापन विरोधी एकता मंच लूट पर आधारित जनविरोधी विकास मॉडल के खिलाफ हमेशा संघर्शरत रहा है। इस बार इसी उद्देश्य से आगामी 14 – 15 मार्च को दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है जिसमें झारखंड तथा देश के अन्य हिस्सों के संघर्शरत संगठनों एवं आंदोलनों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। आप भी आयें।

निवेदक: विस्थापन विरोधी एकता मंच, कोल्हान प्रमंडल

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