संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

2 सितम्बर की अखिल भारतीय हड़ताल के साथ जुड़कर इसे सफल बनायें : भूमि अधिकार आंदोलन

भूमि अधिकार आन्दोलन, 2 सितम्बर 2016 को होने जा रही मजदूरों की अखिल भारतीय हड़ताल के साथ किसानों और ग्रामीण मजदूरों की ओर से समर्थन करता है और इस हड़ताल को ऐतिहासिक तौर पर सफलतम बनाने का आव्हान करता है. किसान व कृषि मज़दूर संगठनो एवम अन्य सामाजिक संगठनो के सदस्य व कार्यकर्त्ता अधिकतम जनसहयोग व भागीदारी के साथ हड़ताल को सफल बनाने के लिए अपना काम रोक कर संयुक्त प्रदर्शन, जूलूस, धरना, रास्ता रोको आयोजित करेंगे ताकि इसमें ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की भागीदारी तय हो.

सस्ता श्रम सुनिश्चित करने के लिए मजदूरों का व्यापक स्तर पर ठेकाकरण और प्राथमिक उत्पादों की कीमतों में गिरावट जिससे कि छोटे उत्पादकों को नुकसान पहुँच रहा है, ये दोनों ही इस विकास के नवउदारवादी मॉडल के अंतर्गत श्रमिक वर्गों के शोषण के मुख्य तरीके हैं. किसानों और ग्रामीण मजदूरों के सहयोग से भारतीय मजदूर वर्ग की ऐतिहासिक हड़ताल की सफलता विकास के नवउदारवादी मॉडल के विरुद्ध, जो मजदूरों के जीवन पर भयानक असर डालता है, एक मज़बूत और देशव्यापी ज़मीन तैयार करने और एक विश्वसनीय विकल्प बनाने को सुनिश्चित करेगी.

भूमि अधिकार आन्दोलन की समन्वय समिति कॉर्पोरेट्स के पक्ष की नीतियों के लिए मोदी सरकार की निंदा करती है. गहराता कृषि संकट, क़र्ज़ में डूबे किसानो की बढती आत्महत्याएँ और गावों से शहरों में बेतहाशा  पलायन मोदी सरकार की मजदूर और किसान विरोधी नीतियों के उदहारण हैं. यह सरकार देश भर में बड़े पैमाने पर जबरन भूमि अधिग्रहण और विस्थापन, कृषि में 100% विदेशी पूँजी निवेश और देश भर के कृषि बाज़ार को जोड़ कर किसानों की लूट को सुगम करने वाले ई प्लेटफार्म का समर्थन करती है.

भूमि अधिकार आन्दोलन, ऐतिहासिक अन्याय को दुरुस्त करने के मकसद से बने वन अधिकार क़ानून के दस साल पूरे होने पर 15 दिसम्बर, 2016 को वन अधिकार दिवस के रूप में मनायेगा. उस दिन दिल्ली में जंगल पर आश्रित समुदायों, आदिवासियों और पर्यावरण से सरोकार रखने वाले तमाम समुदायों की रैली आयोजित की जाएगी. इस सन्दर्भ में,  भूमि अधिकार आन्दोलन देश भर में सक्रिय आदिवासी आन्दोलनों, खनन विरोधी आन्दोलनों, और पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में काम कर रहे जन आन्दोलनों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक अक्टूबर 2016 में आयोजित करेगा ताकि समग्र और व्यापक आन्दोलन की संभानाओं पर विचार किया जा सके.
भूमि अधिकार आन्दोलन की समन्वय समिति की बैठक में  31 साल से जारी नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथ एकजुटता ज़ाहिर की और बिना सम्यक पुनर्वास व घाटी में सदियों से बसे लोगों को उनका पूरा दाय दिए बिना बाँध के गेट बंद करने की सरकार की अमानवीय मंशा की कड़े शब्दों में निंदा की और व्यापक जन आन्दोलन की चेतावनी दी. तीन दशकों से जारी इस आन्दोलन ने विकास के इस प्रारूप पर गंभीर सवाल उठाये हैं और बड़े बाँध की अवधारणा को कटघरे में खडा किया है. इस आन्दोलन से देश में प्रतिरोध की आवाज़ बनकर देश में जनतंत्र को मजबूत किया है. भूमि अधिकार आन्दोलन ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथियों की सभी मांगों का समर्थन किया.

जारीकर्ता
कॉमरेड हन्नन मुल्ला, मेधा पाटकर, अशोक चौधरी, रोमा, अनिल चौधरी, वीरेन्द्र विद्रोही, कॉमरेड सत्यवान, कॉमरेड कृष्णा प्रसाद, मधुरेश, श्वेता, संजीव, कॉमरेड वीजू कृष्णन 
 (भूमि अधिकार आन्दोलन की ओर से)                

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