संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

सिंगूर से मिली प्रेरणा, बस्तर से उठी आवाज : हमारी भी जमीनें वापस करो



31 अगस्त 2016 को दिए अपने एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई करीब 1000 एकड़ जमीन वापस किसानों को वापस दे देने का आदेश दिया है (देखें लिंकः http://www.sangharshsamvad.org/2016/08/blog-post_85.html)। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने देश भर में जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ रहे किसानों में एक नई जान फूंक दी है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करते हुए अब बस्तर के आदिवासियों ने भी अपनी जमीनें वापस करने की मांग की है जिस पर जबरन चल रहा टाटा प्लांट 28 अगस्त 2016 को बंद हो गया (देखें लिंकः http://www.sangharshsamvad.org/2016/08/11.html)। प्रस्तुत है बस्तर के आदिवासियों द्वारा की जा रही मांग पर डॉ लाखन सिंह की रिपोर्ट;

किसी कंपनी के लिए राज्य द्वारा भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के दायरे में नहीं आता : सुप्रीमकोर्ट

सिंगूर के मामले में सुप्रीमकोर्ट का एतिहासिक फैसला . सामाजिक संगठन के लोग हमेशा से यही कहते रहे है कि किसी सरकार द्वारा उधोग के लिये भूमि अधिग्रहण   सार्वजनिक हित कैसे हो सकता है .
विशुद्ध रूप से उधोगपति अपने हित और स्वार्थ के लिये राज्य जिला और पुलिस का एकतरफा स्तेमाल करके जरूरत से कई गुना जमीन पर काबिज़ हो जाते है ,जब भूमि मालिक इसके खिलाफ सरकार से अपील करता है जनहित का तर्क देकर यही सरकारें सामने आ जाती है .

सुप्रीमकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कर दिया है सार्वजनिक हित के नाम पर उधोगों के लिये जमीन का  अधिग्रहण नहीं किया जा सकता .कोर्ट ने न केवल दो महीने में जमीन किसानों को वापस करने का आदेश दिया बल्कि यह भी कहा कि किसानों से मुआवज़ा वापस नहीं लिया जा सकता क्योकि अपनी जमीन का  किसान उपयोग नहीं कर पा रहे थे।

लोहाडीगुडा में भी आदिवासियों को जमीन वापस की जायें

छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर में टाटा स्टील प्लांट के लिये 2500 हेक्टेयर जमीन विशुद्ध गैरकानूनी रूप से कब्जाई है, न प्रोपर ग्रामसभा हुई और न  जनसुनवाई ,अर्धसैनिक बलों के हस्तक्षेप और गुण्डागर्दी से जमीनों का अधिग्रहण किया गया, एसे भी हजारों आदिवासी थे जिनके पास जमीन ही नहीं थी उन्हें उनके गांव से खदेड़ दिया गया .

अब जब टाटा ने स्टील प्लांट  को न खोलने की औपचारिक घोषणा कर दी है तो प्रभावित आदिवासियों को तुरंत जमीन वापस की जायें और जौ लोग गांव छोडकर चले गये उन्हें वापस बसाया जायें.

टाटा के स्टील प्लांट के लिये लोहांडीगुडा इलाके में दस गांव के 1709  लोग प्रभावित हुये थे इनमें से ह1165  लोगों की जमीन अधिग्रहित की गई ,जिनकी जमीन नहीं गई या जिनके पास जमीन थी ही नहीं एसे परिवार भी उनके घरबार बर्बाद हो गये.

आदिवासी जमीन देने का लगातार विरोध करते रहे ,बड़े बड़े आंदोलन भी हुये ,सरकार ने कहा कि मुआवज़े के साथ परिवार के लोगों को नौकरी ,चिकित्सा और अन्य  जीने योग्य जरूरी  सुविधाएँ दी जायेंगी. ओर अब जबकि टाटा ग्यारह साल बाद बस्तर को छोडकर जा रहा है ,तो स्वाभाविक ही है कि आदिवासी अपनी जमीन की वापसी की म कर रहे है .

लेकिन सरकार किसी की सुनने को तैयार नहीं है लोग धरना प्रदर्शन भी कर रहे है ,हालात यह है कि अधिग्रहित जमीन पर कब्जा उधोग विभाग का है जिसकी मंशा कब्जा छोडने की  नहीं है।
प्रभावित आदिवासियों के राशन कार्ड तक नहीं बन रहे है .

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट है कि अधिग्रहित जमीन का उपयोग किसी और काम में नहीं किया जा सकता, तो सरकार के पास जमीन वापसी के अलावा कोई रास्ता नहीं है .

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