संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राष्ट्रीय अधिवेशन और प्रदर्शनी: कृषि संकट, पशु अर्थव्यवस्था पर हमला तथा दलित-अल्पसंख्यकों पर बढती हिंसा;20-21 मार्च 2018, नई दिल्ली

राष्ट्रीय अधिवेशन और प्रदर्शनी
कृषि संकट,पशु अर्थव्यवस्था पर हमला तथा दलित-अल्पसंख्यकों पर बढती हिंसा
20-21 मार्च 2018, कॉन्सटीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया,रफी मार्ग, नई दिल्ली
आप सभी आमंत्रित हैं!
दोस्तों,
वर्तमान समय में भारत के उपर कृषि संकट तथा हिंदुत्व नामक दो काले बादल मंडरा रहे हैं| जो देश की बहुलांश मेहनतकश आबादी के जीवन को और ज्यादा संकट में ढकेल रहे हैं। देश में हाल में हुए व्यापक किसान आंदोलन इस बात का द्योतक हैं कि किसान संगठित होकर विरोध कर रहे हैं | गौ संरक्षण के नाम पर दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा दलित और अल्पसंख्यक समुदायों पर किए जा रहे हमले ने इस स्थिति को और भी शोचनीय बना दिया है। इन हमलों ने पशु अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। कई क्षेत्रों में लोग गौ-पालन से डर रहे हैं, पशु-मेलों में कमी आई है – जिसकी वजह से पशु बाज़ार में गंभीर गिरावट आई है | इससे पशुपालन और खेती-किसानी से जुड़े समुदायों के बचे आय के स्रोत भी कम हो गए हैं |
कई सदियों से हिमालय से लेकर दक्षिणी क्षेत्रों के पहाड़ों में कई घुमंतु जातियों में, चाहे वह किसी भी धर्म के हों, पशुपालन जीवन का पर्याय रहा है | यह समुदाय गौ-रक्षा के नाम पर बढ़ते इन हमलों से डर कर अपना परंपरागत पेशा छोड़कर शहरों की तरफ पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं। शहरों में जड़ों से उखड़े लोग भीख मांगने पर मजबूर हो रहे हैं। यह एक ऐतिहासिक परिघटना है क्योंकि यह वह समुदाय हैं जिन्होंने बड़ी से बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए अपना वजूद बचाए रखा लेकिन मौजूद स्थिति भयावह है क्योंकि अब सवाल उनके और उनके परिवार के जीवन की सुरक्षा का है जो जिनपर ऐसी ताकतें हमला कर रहीं हैं जिनके खिलाफ प्रशासन किसी भी तरह की कार्यवाई करने को इच्छुक नहीं है।
राजस्थान, हरयाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में लगातार बढ़ रही हिंसा की घटनाओं पर राज्य और तंत्र  ने अपना मुंह फेर लिया है | इनमे से अधिकाँश राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है | इस हिंसा पर पर कोई कार्यवाही की जगह उनके नेताओं ने हिन्दू संस्कृति और हिंदुत्व के नाम पर मीडिया या अन्य माध्यमों से भद्दी बयानबाज़ी ही की है, जिससे इस हिंसा को और शह मिली है | हिंदुत्व समूहों के इस फैलाये सम्प्रयादायिक माहौल और बर्बर हिंसा से हर जगह के किसान भी डर रहे हैं – और कोई समझ नहीं पा रहा कि इस्तेमाल में नहीं आने वाले गाय-बैल का वो क्या करें, या अगर वो पशु बीमार या बूढ़े हो जाएँ तो क्या किया जाए क्योंकि हिंदुत्ववादी संगठन स्थिति को सांप्रदायिक रंग देते हुए इन पर बर्बर हमले कर रहे हैं। गांवो में आवारा पशु किसानों की फसलें चौपट कर रहे हैं। समाज एक बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है| बढ़ते हुए मुफ्त के इन्टरनेट और वॉट्सऐप से कई बार इन घटनाओं को और हवा मिलती है, जो धीरे धीरे अब रोज़ की बात लगने लगी है |
इन स्थितियों में बढ़ती सांप्रदायिकता और खेती पर बढ़ते संकट के बीच की कड़ी को नज़रंदाज़ करना मुश्किल है | दबंग जातियों और धार्मिकतावादी समूहों द्वारा दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों को आतंकित करना उनकी ज़मीन और घरों को हड़पने का भी तरीका है | इसकी एक बानगी मुज़फ्फरनगर में दंगो में देखने को मिली जहां दंगों के बाद कई परिवार अपने घरों को लौट नहीं पाए या लोग अपने गाँव-खेती की ज़मीन को सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर हो गए | दलित और अल्पसंख्यक समुदायों पर बढ़ते हमलों से हर धर्म और जाति से बने हुए कृषि समुदाय में भी बदलाव हो रहे हैं , खास कर उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में| यह देश के जनतांत्रिक तथा संवैधानिक ढांचे के लिए एक बड़ा खतरा है।
हिंदुत्व के खिलाफ तथा न्याय पक्ष संघर्षों को इस मुद्दे के सांप्रदायिक पक्ष के साथ-साथ इससे जुड़े कृषि संकट पर भी उतना ही गौर करना होगा। भूमि अधिकार आंदोलन ने, जो करीब 200 संघर्षरत किसान तथा खेत मजदूर संगठनों का एक साझा मंच है, 2015 से ही किसानों, दलितों, आदिवासियों तथा अल्पसंख्यकों के हकों के संघर्षों में भागीदारी की है। जमीन के मुद्दों तथा कृषि संकट पर साझे संघर्ष से लेकर अलवर, भरतपुर, राजसमंद तथा अन्य कई जगहों पर हो रहे दलितों तथा अल्पसंख्यकों पर हमलों के खिलाफ संघर्षों में हिस्सेदारी तक भूमि अधिकार आंदोलन एक न्यायपूर्ण बराबरी के समाज के लिए संकल्पबद्ध है।
इस सामजिक-राजनैतिक सन्दर्भ में हम आपको 20-21 मार्च2018 को दो-दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में आमंत्रित करते हैं | दिल्ली में कॉन्सटीट्यूशन कल्ब ऑफ इंडिया में हो रहे इस अधिवेशन में किसान संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि, शैक्षानिक संस्थान के लोग और हिंसा से पीड़ित परिवार शिरकत करेंगे | अधिवेशन के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं को उभारते हुए एक प्रदर्शनी भी होगी जिसमे चित्र-चलचित्र के इस्तेमाल से मुद्दे पर समझ बनाई जाएगी |
हम आपसे इसमें  सहभागिता की अपेक्षा करते हैं और आशा करते हैं की आप इस अधिवेशन में दोनों दिन के लिए आ पाएंगे |
                                                                                                                     भूमि अधिकार आन्दोलन 
जन अधिकार जन एकता आन्दोलन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन), अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन, लोक संघर्ष मोर्चा, जनसंघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, अखिल भारतीय किसान महासभा, अखिल भारतीय खेतिहर मजदूर यूनियन, किसान संघर्ष समिति, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, इन्साफ, दिल्ली समर्थक समूह, किसान मंच, भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक असली, माइंस, मिनरल्स और पीपल और अन्य
              किसी और जानकारी के लिएbhumiadhikarandolan@yahoo.com पर या ३६, रविशंकर शुक्ल लेन, कस्तूरबा गाँधी मार्ग, नई दिल्ली पर संपर्क करें.
                                                                                            संपर्क : 09447125209, 09958797409

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