छत्तीसगढ़ : सिर्फ दस साल में 356 गांवों का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा, यही है सरकार का विकास
छत्तीसगढ़ के रायगढ जिले में मोदी सरकार ने अगले 10 साल में 125 मिलियन टन प्रतिवर्ष कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा है। सरकार के इस लक्ष्य से रायगढ जिले के 356 गांवों का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा। हजारों आदिवासियों का विस्थापन होगा और यह सब किया जा रहा है “विकास” के लिए । पढ़े मुनादी से साभार यह रिपोर्ट;
जी हां! सरकार ने अगले 10 साल में जिले से 125 मिलियन टन प्रतिवर्ष कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा है। सरकार का कहना है कि इससे जिले के विकास के लिए सैकड़ो करोड़ की आय होगी, यह ठीक है लेकिन इस विकास के लिए कई गांवों का विनाश भी होना सुनिश्चित हो गया है।
सरकार की तरफ से योजना की तैयारी चल रही है। मास्टर प्लान के तहत जिले के 356 गांव का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा। रही बात ग्रामीणों के पुनर्वास की तो ये सिर्फ कहने की बातें हैं कि उन्हें पुनर्वास योजना के तहत मकान दिया जाएगा। सरकार अगले 2018 से 2028 के दौरान जिले में कई कोयला खदानों को लाने की तैयारी कर रही है। ये कहना गलत नहीं होगा कि अब रायगढ को औद्योगिक जिले के साथ कोल जिला का भी दर्जा मिल जाएगा। इस योजना के तहत जिले के उन गांवों को निशाने पर रखा गया है जहां जमीन के नीचे बेशुमार कोयला दफन हैं। जैसा की पहले से ही देखा जा रहा है कि तमनार ब्लाॅक में सर्वाधिक कोयले का भण्डारण है। तमनार के अलावा लैलूंगा और धरमजयगढ के कुछ गांवों को भी कोयले के लिए खाली कराया जाएगा। अगले दस साल के भीतर जिले में कोयला उत्पादन का लक्ष्य 125 मिलियन टन प्रति वर्ष निर्धारित किया गया है। यानी योजना शुरू होने के बाद जिले में केवल कोयला का ही साम्राज्य स्थापित होगा। दूसरी ओर सरकार ने अभी तक पूर्व के भू प्रभावितों को राहत देने के लिए कोई ठोस पहल शुरू नहीं की है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के हजारों परिवार बेघर होंगे जिन्हें रहने के लिए दर दर की ठोकरें खानी पडेगी।
तमनार से धरमजयगढ के सफर में केवल सडक ही सडक
इस योजना को तमनार, धरमजयगढ और लैलूंगा ब्लाॅक में शुरू करने की तैयारी चल रही है। इन्हीं तीन ब्लाॅकों में सर्वाधिक कोयले का भण्डारण है। तमनार से धरमजयगढ तक सफर करने के दौरान सैकडों गांव बीच में पडते हैं। लेकिन अगले दस सालों में शायद ही उन गांवों का अस्तित्व रहे।
कौन सुनेगा भूस्वामियों की व्यथा
कोयला खनन के लिए ज्यादातर निजी कंपनियों से करार हो रही है। हालांकि कुछ खदानों का काम सरकार भी देखेगी। लेकिन सबसे बडी बात तो ये है कि चाहे कोयला का खनन कोई भी करे, लेकिन भूप्रभावितों की पुनर्वास व्यवस्था पर सभी मौन रहते हैं। जिले में अभी तक जितने भी खदानें चालू हुई हैं। किसी भी भू प्रभावित का विस्थापन नहीं हो सका है।
आठ कोयला खदानों में चल रहा काम
जिले में पहले एक दर्जन से अधिक कोयला खदानें संचालित हो रहीं थीं। लेकिन केंद्र सरकार के आदेष पर 4 खदान बंद हैं। चालू खदानों में अभी एसईसीएल के 7, हिण्डाल्को का 1 और अंबुजा का 1 कोयला खदान चालू है।