नया भू-अधिग्रहण कानून: आमूलचूल बदलाव या यथास्थिति
गुजरी एक मई को नयी दिल्ली में एक विशेष बैठक में, भू अर्जन व पुनर्वास के मुद्दे पर लाए जा रहे नए कानून के परिप्रेक्ष में यह यह प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित किया गया की :-
- जब की 1884 का साम्राज्यवादी, शासकीय सम्प्रभुतावादी, भू अर्जन कानून में बुनियादी बदलाव लाना ही नहीं, उसे ख़ारिज करने की भी हम बेहद ज़रूरत मानते हैं,
प्रस्तावित भूमि-अधिग्रहण कनून पर 1 मई को दिल्ली के भारतीय सामाजिक संस्थान में हुई बैठक में चर्चा के बाद यह प्रस्ताव सामने आया है जिसे हम आपसे साझा कर रहे हैं. कृपया भूमि-अधिग्रहण बिल से संबंधित अपने सुझाव napmindia@napm-india.org / napmindia@gmail.com.पर भेजें.
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मधुरेश – 09818905316
- जब की देशभर, कोने कोने में, पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्र में आज जल, जंगल, जमीन, खनिज, मछली आदि पर जन अधिकार और विकास नियोजन में जनता की प्राथमिक सहभागिता के लिए सशक्त जन संघर्ष, आंदोलन ज़रुरी है,
- जब की इसी परिप्रेक्ष में एक नयी राष्ट्रीय नीति एवं बिल लाने की कोशिश केंद्र सरकारों से 1998, 2001, 2003, 2007 से आज तक जारी है और अब ग्रामीण विकास मंत्रालय, केंद्र सरकार से नया बिल पर “सहमति हो गयी” हो गई है कहते हुए राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के साथ संवाद से लेकर लोकसभा, राज्य सभा के सामने रखा जा रहा है
तब हम सब यह आग्रह रखते हैं की:-
- कोई भी नया कानून, ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों पर लोगों का अधिकार और इनका समान न्यायपूर्ण बटवारा लाने की दिशा में ही ज़रुरी है|
- इस नए बिल में सार्वजनिक हित की परिभाषा के साथ कुछ मुद्दे 1894 से भी बद्दतर है और लोक विरोधी है| सार्वजनिक हित की परियोजना में निजी उद्योग, परियोजना को लाने की बात हम धिक्कारते हैं|
- हम मानते है की ज़मीन और संसाधनों पर ग्राम सभा / शहरों में बस्ती सभा का अधिकार और उनकी सहमती के बिना कोई शासकीय या निजी परियोजना न हो|
- खेती की ज़मीन गैर खेती के लिए हस्तांतरित करने पर रोक हो|
- ज़मीन का बटवारा जो बसे हैं उनकी आजीविका, आवास का अधिकार मानकर (जैसा की आज के कई कानूनों में प्रस्तावित प्रावधान है) उन्ही को सही जीवनयापन/ आवास के लिए दी जाये. उनका पहला अधिकार न्यूनतम ज़रूरत पूर्ति के लिए माना जाये|
- सार्वजनिक सम्पदा (common property rights) पर समाज / समुदाय का मालिकाना हक बरक़रार रहे और उनके किसी भी अप्रियोजना के लिए हो रहे / होने वाले उपयोग के बारे में उनकी सहमति बुनियादी शर्त मानी जाये |
- निजी परियोजना के या पी पी पी के लिए कोई जबरन भू अर्जन शासन के द्वारा न हो|
- पुनर्वास की परिभाषा तथा आर्थिक, सामाजिक विकल्प देकर पुनर्स्थापना ही हो इसीलिए केवल नगद पैसा ही नहीं, वैकल्पिक जीवन यापन के साधन के साथ पुनर्स्थापन की शर्त हर शासकीय या निजी परियोजना में हो|
- आज लाये जा रहे विधेयक में केवल नगद मुवावजा देकर अधिकतर विस्थापन की योजना है जिसे हम नकारते हैं|
- यह बिल स्थायी समिति – लोक सभा के अहवाल में खेती की ज़मीन अर्जित न करने की सिफारिश स्पष्ट होते हुए भी उसे सम्मिलित नहीं करना आदि को हम नकारते हैं| आज अन्न – सुरक्षा के ज़रुरी है की खेती की बर्वादी रोकी जाये |
- यह नया कानून केवल तीन राष्ट्रीय कानूनों के लिए ही लागू करना (Defence, Cantonment, SEZ ), धोखाधड़ी है, देश के राज्य एवं राष्ट्रीय दोनों स्तर के सभी कानून जिनके तहत भू अर्जन होना है, उन्हें सम्मिलित करके ही लाया जाए.
- शहरों के लिए हम अलग से कानून की मांग करते है.
- विकल्प्-आकलन के आधार् पर न्योनतम या शून्य विस्थापन ही किया जाए
- आपात्कालीन प्रावधान सिर्फ़् अपरिहार्य स्थितियों में लागू होना चाहिए.
- पुनर्स्थापन और् पुनर्वास के अन्तर्गत प्रति परिवार् एक् वैकल्पिक
जीविका-स्रोत का भी प्रावधान होना चाहिये, जिसे सारे विस्थापित् लोगों पर्
और् पहले विस्थापित् हओ चुके लोगोन् पर् भॆ लागू किया जाना चाहिए