न्यायालय भी कह रहे हैं भूमि की लूट हो रही है, कानून को अंगूठा दिखाया जा रहा है
जल, जंगल, जमीन, खनिजों की लूट के खिलाफ तथा अपने जीवन-जीविका-अस्तित्व की रक्षा के लिए चलने वाले तमाम जन संघर्ष तो हमेशा भूमि की लूट के सवाल को उठाते रहे हैं परंतु इसके अलावा समय-समय पर सरकार द्वारा गठित किये गये आयोग, कमेटियां, जांच कमेटियां तथा सुप्रीम कोर्ट के रिपोर्टियर यह कहते रहे हैं कि भूमि कानूनों की अवहेलना करते हुए या इनका दुरूपयोग करते हुए ‘बड़े खिलाड़ियों’ के हित में किसानों की भूमि का बलात् हरण किया जाता है। कर्नाटक के खनिज घोटालों के पर्दाफाश ने खनिज माफियाओं-राजनेताओं-कारपोरेट के नापाक गठजोड़ को बेनकाब किया है। परंतु हाल में उ. प्र., राजस्थान तथा कर्नाटक राज्यों के भूमि घोटालों तथा कानूनों की अवहेलना एवं दुरूपयोग के मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं :-
ग्रेटर नोएडा की 176 हैक्टेयर जमीन का अधिग्रहण सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया
उ.प्र. सरकार ने जनहित के नाम पर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया: सुप्रीम कोर्ट
6 जुलाई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा की जमीन के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की एक खंडपीठ ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर दस लाख रुपए का जुर्माना ठोंक दिया। साथ ही प्राधिकरण को हिदायत दी कि किसानों की 176 हेक्टेयर जमीन उन्हे वापस दे दी जाए। यह जमीन प्राधिकरण ने निजी क्षेत्र के बिल्डरों को सौंप दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डरों को जमीन नियमों का खुला उल्लंघन कर के दी है। जमीन का अधिग्रहण करते वक्त उसका मकसद और बताया गया था। यहां तक कि औद्योगिक जमीन के भू-उपयोग की रिहाइषी में बदलने की मंजूरी से पहले ही प्राधिकरण ने यह जमीन बिल्डरों को थमा दी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकारते हुए कहा था कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने जमीन का अधिग्रहण करने के लिए जिस आपात प्रावधान का इस्तेमाल किया था वह पूरी तरह आंखों में धूल झोंकने की सत्ता की कवायद थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक व आम्रपाली जैसे बिल्डरों ने चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के इस 31 मई के आदेश में गुलिस्तां गांव में किए गए जमीन के अधिग्रहण को रद्द कर दिया गया था। भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 17 के तहत आपात प्रावधान का इस्तेमाल कर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने किसानों को एतराज करने के उनके मौलिक और कानूनी अधिकार से भी वंचित कर दिया था। इसी पर हाई कोर्ट को गुस्सा आया था। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी आंख में धूल झोंकने वाली कार्रवाई माना। हालांकि प्राधिकरण के वकील ने दलील दी थी कि जमीन का अधिग्रहण 2021 के औद्योगिक मास्टर प्लान का हिस्सा था।
फिर से आबंटित नहीं की जा सकती अधिग्रहीत भूमिः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक उपयोग के मकसद से अधिग्रहित की गई भूमि को दूसरे लाभार्थियों को फिर से आबंटित नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह फैसला जयपुर शहर से जुड़े और करीब दो दशक से ज्यादा चले एक भूमि विवाद में दिया है। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की एक पीठ ने इस मामले में राजस्थान हाई कोर्ट को फटकार लगाई कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले के बावजूद उसने आबंटन को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले फैसला दिया था कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत भूमि अधिग्रहण अधिकारी को भूमि आबंटन का अधिकार नहीं है। यह सिर्फ दावा करने वालों को आर्थिक मुआवजे की मंजूरी दे सकता है।
अदालत ने खेद जताया कि 552 बीघा जमीन के आबंटन के लिए शहरी विकास मंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल की अनुशंसाओं का सरकार और हाई कोर्ट ने कुछ निहित स्वार्थों के लिए गलत अर्थ निकाला और वास्तविकता यह है कि कोई वैधानिक मंजूरी नहीं ली गई। जजों ने कहा कि यह राज्य के संबंधित राजनीतिकों का उस बात को वैध बनाने का प्रयास था जिसे इस अदालत ने अवैध घोषित कर दिया है। विवाद राजस्थान इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के 13 मई 1960 को भोजपुरा और चक सुदर्शनपुरा गांव की 552 बीघा जमीन के अधिग्रहण से संबंधित है। इसमें राज्य विधानसभा के एक भवन सहित जयपुर शहर के नियोजित विकास की बात शामिल थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हापुड़ में भूमि अधिग्रहण गैर कानूनी करार
24 अगस्त, 2011, नई दिल्ली। विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण की मायावती सरकार की कार्यवाही को उस समय एक और झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने हापुड़ में चमड़ा उद्योग के लिए भूमि का अधिग्रहण निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और एचएल दत्त की खंडपीठ ने देवेंद्र त्यागी और कुछ अन्य किसानों की याचिका पर भूमि अधिग्रहण निरस्त करते हुए इस संबंध में 2006 में जारी अधिसूचना रद्द कर दी। हापुड़-पिलुआ विकास प्राधिकरण द्वारा हापुड़ में चमड़ा नगर विकसित करने के लिए चिटोली, सबली और इमतोरी गांवों में भूमि अधिग्रहण के लिए भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 17 के तहत जुलाई 2006 में अधिसूचना जारी की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने लगायी कर्नाटक में 2 और जिलों में खनन पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में बेलारी के अलावा टुमकुर और चित्रदुर्गा जिलों में खनन पर रोक लगा दी है। 19 अगस्त को कोर्ट ने निजी खनन कंपनियों और सरकार को मामले पर नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने ये फैसला सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लिया है। रिपोर्ट में टुमकुर और चित्रदुर्गा जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन जारी होने की बात सामने आई थी।
हालांकि पहले से ही टुमकुर और चित्रदुर्गा जिलों से निकले आयरन ओर को कंपनियां इस्तेमाल कर सकती हैं। कोर्ट ने कंपनियों को कितनी आयरन ओर की जरूरत है ये बताने को कहा है। 2 सितंबर को कोर्ट फैसला करेगा कि आयरन ओर का कितना स्टॉक इस्तेमाल किया जा सकता है।
फ्लैटों के खरीददार ब्याज समेत धन वापसी के पात्रः सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 12 जुलाई 2011। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि जिन खरीदारों ने विवादास्पद नोएडा आवासीय परियोजना में निवेश किया था, वे बिल्डरों से अपने पूरे धन को ब्याज सहित वापस पाने के पात्र होंगे।
न्यायाधीश जी एस सिंघवी और ए के गांगुली की खंडपीठ ने यह व्यवस्था दी। न्यायालय ने कहा कि खरीदारों को अपना धन उचित ब्याज दर के साथ वापस मिलना चाहिए। अगर बिल्डर पूर्व भुगतान से इन्कार करते हैं तो वे उचित कानूनी उपचार लेने को आजाद होंगे। इस आदेश का फायदा 6000 से अधिक लोगों को मिलेगा, जिन्होंने ग्रेटर नोएडा में आम्रपाली और अन्य प्रमुख बिल्डरों के आवासी परिसरों में फ्लैट बुक करवाए थे। इसी खंडपीठ ने छह जुलाई को ग्रेटर नोएडा भूमि के अधिग्रहण को खारिज कर दिया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नोएडा भूमि अधिग्रहण मामले में सरकार से किया जवाब तलब
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को सुनवाई के लिए एक बड़ी पीठ के पास भेजते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 25 जुलाई 2011 को कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को इस बात का जवाब देना होगा कि जब क्षेत्र में काम शुरू करने में उसे सालों लग गए तो फिर क्यों वह बार-बार आपात प्रावधान लागू कर भूमि अधिग्रहण करती रही।
भूमि अधिग्रहण के करीब एक दर्जन गांवों में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तीन हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले सैकड़ों किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अमिताभ लाला और न्यायमूर्ति अशोक श्रीवास्तव की पीठ ने कहा- हम देखते हैं कि राज्य सरकार ने क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए बार-बार आपात प्रावधान का इस्तेमाल किया। अदालत यह जानना चाहेगा कि ऐसा करने के पीछे क्या वजह रही। अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा- क्यों राज्य सरकार को अधिग्रहित भूमि पर काम शुरू करने में महीनों, कभी कभी सालों लग जाते हैं, जबकि वह आपात स्थिति बताकर भूमि का अधिग्रण करती है और भूमि मालिकों को आपत्ति उठाने का मौका तक नहीं दिया जाता।
इसके अलावा, अदालत ने भूमि इस्तेमाल के उद्देश्य में बदलाव पर भी राज्य सरकार से जवाब मांगा है। औद्योगिक विकास के उद्देश्य से किसानों की भूमि का अधिग्रहण करने के बाद भूमि की प्रकृति बदलकर उसे बिल्डरों को क्यों सौंप दिया जाता है। अदालत ने कहा- राज्य सरकार को मामले की अगली सुनवाई के दौरान इन दो बिंदुओं पर संतोशजनक जवाब देना होगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा के दो गांवों के भूमि अधिग्रहण को रद्द किया
मायावती सरकार को और एक झटका देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा में दो गांवों में करीब 600हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण 18 जुलाई 2011 को रद्द कर दिया। किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्मि सुनील अंबावानी और न्यायमूर्ति एसएस तिवारी की खंडपीठ ने गौतमबुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील के अंतर्गत पटवारी और देवला गांवों में 589.13 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया।
राज्य सरकार ने मार्च 2008 और मई 2008 में अधिसूचना के जरिए इस भूमि का अधिग्रहण किया था। इसका उद्देश्य दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में रिहाइषी इमारतों का निर्माण करना था। हाई कोर्ट के इस आदेश से एक पखवाड़े पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाके के शाहबेरी गांव में राज्य सरकार की ओर से किए गए 156 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि प्राधिकरण लोक हित के नाम पर बिल्डरों को आगे बढ़ा रहा है।
आदेश दो गांवों के सौ से अधिक किसानों की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया। इन किसानों ने भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अदालत ने इस साल 12 मई को ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में 150 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण रद्द कर दिया था, वहीं 13 मई को सूरजपुर परगना गांव में 73 एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी रद्द कर दिया था।
शाहबेरी गांव में भूमि अधिग्रहण रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति पर उसे फटकार लगाई थी।