जबरन भूमि अधिग्रहण, कॉर्पोरेट लूट और सीएनटी-एसपीटी संशोधन अधिनियम के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान : देश भर के जनसंघर्षों ने रांची में लिया संकल्प
राँची, झारखण्ड | 30 जून 2017 : थियोलॉजिकल हॉल, गोस्नर मिशन कम्पाउंड, रांची में भूमि अधिकार आंदोलन के नेतृत्व में चल रहा दो दिवसीय जनसंघर्षों का राष्ट्रीय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। देश के 12 राज्यों से आए 400 से भी ज्यादा जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने सम्मिलित स्वर में जबरन भूमि अधिग्रहण, कॉर्पोरेट लूट और सीएनटी-एसपीटी संशोधन अधिनियम के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान किया।
सम्मेलन के अंतिम दिन के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा (केनिंग लेन) से हन्नान मोल्लाह ने कहा कि भूमि अधिकार आंदोलन न सिर्फ जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई को भी आगे बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि जल-जंगल-जमीन के खिलाफ लड़ाई केंद्र और राज्य दोनों ही स्तरों पर तेज की जाएगी। राज्यों में भूमि अधिकार आंदोलन के नेतृत्व में विभिन्न जनसंघर्षों के साथ समन्वय स्थापित करने की कोशिश करेगा और इस समन्वय के दौरान दो दिवसीय सम्मेलन में हुई चर्चाओं को अपने-अपने क्षेत्रों में लोगों के बीच लेकर जाएंगे।
अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन से रोमा मलिक ने कहा कि आज जनांदोलनों के साथियों के सामने परिस्थितियां संकटपूर्ण है। शासक वर्ग किसी भी तरह के विरोध के स्वर को बर्दाश्त नहीं कर रहा है। ऐसे में जरूरत है कि एक क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दों पर लड़ रहे जनसंघर्ष आपस में एकता तथा समन्वय स्थापित करें तभी वह शासक वर्ग की दमनकारी नीतियों का मुकाबला कर पाएंगे। हमारी लड़ाई सिर्फ मुद्दों की नहीं है बल्कि वर्गीय लड़ाई है और हमें इस लड़ाई को आगे इंकलाब तक लेकर जाना है।
अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर सभा के सत्यवान ने कहा कि जिस तरह से पूंजीपति वर्ग जबरन किसानों की जमीनें अधिग्रहित कर रहे हैं और उसे विकास का नाम देते हैं उसी प्रकार जनता को एकजुट होकर इन पूंजीपतियों के विशालकाय भवनों पर कब्जा करके वहां खेती करनी होगी। और वही देश का असल विकास होगा। इस लड़ाई में महिलाओं की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि जहां एक तरफ पुरूष साथी मुआवजे पर आकर समझौता करने के लिए तैयार हो जाते हैं वहीं महिलाएँ लड़ाई को अंतिम दम तक लड़ने का जज्बा रखती हैं। उन्होंने कहा कि बिना महिलाओं की अगुवाई के हम इस लड़ाई को मुक्कमल अंजाम तक नहीं पहुंचा पाएंगे।
जनसंघर्षों की भविष्य की रणनीति पर सम्मेलन में 30 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें भूमि सुधार, बीजों पर किसानों का हक, जल तथा प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय का हक, स्थानीय स्वशासी संस्थाओं की विकास नियोजन में भूमिका, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि के निजीकरण पर रोक, सांप्रदायिक तथा फासीवादी राजनीति का प्रतिरोध, दलित तथा आदिवासियों के साथ अन्याय का खात्मा, आंदोलनकारियों पर लगाए गए फर्जी केसों को वापस लेने, एएफएसपीए (AFSPA) को रद्द करने तथा संवेदनशील क्षेत्रों में सैन्यीकरण खत्म कर शांति बहाल करने जैसे अन्य मुद्दों पर प्रस्ताव रखा गया। इन प्रस्तावों को सम्मेलन ने सर्वसम्मति से पारित किया।
सम्मेलन के बाद सीएनटी-एसपीटी संशोधन अधिनियम के खिलाफ रैली का आयोजन किया गया। दोपहर 1 बजे बिरसा चौक से शुरू हुई रैली हिनू, डोरंडा, ऐजी मोड़, राजेंद्र चौक होते हुए गोस्सनर कोलेज मैदान में आकर सभा में बदल गई। सभा को डॉ. सुनीलम, हनान मुल्ला, बिनोद सिंह, कुमार चन्द्र मार्डी, राजेंद्र गोप, सत्याबन, रोमा मलिक आदि ने संबोधित किया। सभा का संचालन दयामनी बारला ने किया।
भूमि अधिकार आंदोलन द्वारा केंद्र और राज्यों में लड़ाई को तेज करने के लिए आगामी कार्यक्रमों की घोषणा की गई जो निम्न हैं-
- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा नई दिल्ली के नीति आयोग के समक्ष 3 जुलाई, 2017 को बुलाए गए धरने में भागीदारी और समर्थन
- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा मंदसौर से नई दिल्ली तक 6 जुलाई 2017 से शुरू होने वाली किसान मुक्ति यात्रा में भागीदारी और समर्थन
- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और अन्य मंचों के सहयोग से भूमि अधिकार आंदोलन का 18 जुलाई को जंतर-मंतर पर किसान मार्च
- भविष्य की कार्रवाइयों की कार्यदिशा तय करने हेतु एकजुटता के विस्तार के लिए सभी किसान संगठनों और सामाजिक संगठनों का अखिल भारतीय सम्मेलन तथा चार साझा मांगों के साथ प्रधानमंत्री को सौंपा जाने वाला ज्ञापन 1. एमएस स्वामिनाथन आयेाग की सिफारिशों के आधार पर सभी फसलों के लिए एमएसपी को उत्पादन लागत के 50 फीसदी ऊपर तय किया जाए और खरीद केंद्रों की गारंटी दी जाए। 2. किसानों की समग्र कर्जमाफी। 3. मवेशी बाजार में मवेशियों की बिक्री पर लगे प्रतिबंध से संबंधित केंद्र सरकार की किसान-विरोधी अधिसूचना को वापस लिया जाए। 4. कृषि के साथ मनरेगा को जोड़ते हुए उसका समग्र क्रियान्वयन। 5. सभी सीमांत और 60 वर्ष से ऊपर किसान एवं कृषि मजदूरों को 5000 मासिक पेंशन दी जाए.
- भूमि अधिकार आंदोलन द्वारा सभी राज्यों में संयुक्त सम्मेलन आयोजित किए जायेंगे और राज्य स्तरीय समन्वय समितियों का अगले तीन माह में गठन किया जायेगा.
- 9 अगस्त 2017 को सभी जिलों में विशाल किसान रैलियां आयोजित किए जायेंगे.
- नर्मदा घाटी से बिना मुआवजे, बिना सम्पूर्ण पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यवस्था किए 40,000 से अधिक परिवारों को हटाए जाने के खिलाफ़ मजदूरों-किसानों का एक व्यापक गठबंधन के द्वारा प्रतिरोध किया जायेगा। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथियों से चर्चा कर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का अयोजन किया जायेगा.
- 8. 7 जुलाई को राष्ट्रीय स्तर पर गाय के नाम पर जारी सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ देश व्यापी प्रतिरोध किया जायेगा. हत्या के जिमेदारों पर कठोर कार्यवाही की जाए तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में इन घटनाओं की जाँच करवाई जाये तथा प्रभावित परवारों को 1 करोड़ का मुआवजा दिया जाए. इसके विरोध में भूमि अधिकार आंदोलन मजदूर संगठन, किसान, छात्र संगठनों के साथ मिल कर अभियान शुरू करेंगा.
- भूमि अधिकार आंदोलन के समन्वय को बेहतर करते हुए किसान संघर्ष के समर्थन में अभियान सामग्री का प्रकाशन करना.
- सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक को हर हाल में रद्द करवाने के लिए झारखण्ड भूमि अधिकार आंदोलन के समर्थन में देशव्यापी प्रदर्शन किया जायेगा. झारखण्ड सरकार विधानसभा सत्र में सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक रद्द नहीं करती है तो भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले संसद का घेराव किया जायेगा.
- भूमि अधिकार आंदोलन के नेतृत्व में सांसदों का एक जाँच दल सहारनपुर में दलित हिंसा के शिकार परिवारों से मिलने जायेगा.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :
दयामनी बारला 9431108634
प्रफुल्ल लिंडा 7763074746
अरविंद अंजुम 9431113667