जैतापुर न्यक्लियर पॉवर प्लांट : कथा विकास की या विनाश की ?
महाराष्ट्र के रत्नागिरी शहर से 60 किमी. दूर स्थित जैतापुर गांव में विश्व की सबसे बड़ी परियोजना सन् 2005 में न्यूक्लियर पॉवर पार्क नाम से प्रस्तावित की गई। गांव वालों को पहले समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है ? कुछ समय बात उन्हें यह बात समझ आई कि यह परियोजना किस तरह का विनाश अपने साथ लेकर आई है। तब से ही इस परियोजाना के खिलाफ जैतापुर के निवासी संघर्षरत है। इस संघर्ष की शुरुआत से ही यहां के मछुआरे -किसान विभिन्न तरीको से राज्य दमन के शिकार हो रहे हैं। पढ़िए विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट का पहला भाग;
यूं तो रत्नागिरी अपनी अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता, जैव-विविधता, आल्फांसो आम के लिए दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से कोंकण का यह खूबसूरत जिला प्रस्तावित ‘जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट’ और उसके विरोध में जारी जनांदोलन से सुर्खियों में है। रत्नागिरी शहर से जैतापुर की दूरी साठ किलोमीटर है। ऊंची पहाड़ियों, घुमावदार सड़कें और उसके दोनों तरफ आल्फांसो और काजू के अनगिनत हरे-भरे बाग-बागीचे अंतहीन सुकून का एहसास करा रही थी। देश और दुनिया में जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट भले चर्चा में हो, लेकिन यहां आने के बाद पता चला कि राजापुर तहसील में जहां न्यूक्लियर प्लांट प्रस्तावित है, वहां जैतापुर गांव की एक इंच जमीन भी नहीं गई है। ऐसा ही एक दूसरा आश्चर्य साखरी नाटे गांव पहुंचकर हुआ। यहां भी प्लांट और टाउनशिप के लिए कोई जमीन नहीं ली गई है, लेकिन अणु ऊर्जा प्रकल्प का सर्वाधिक विरोध इसी गांव में हो रहा है।
दोपहर करीब बारह बजे मैं अपने एक साथी पत्रकार के साथ साखरी नाटे चौराहे पर पहुंचा। गांव जाने के क्रम में ‘शहीद तबरेज सायेकर चौक’ पर नजर पड़ी। 18 अप्रैल 2011 को इसी जगह जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर पुलिस ने अंधाधुंध बरसाईं, जिसमें तबरेज नामक एक शख्स की मौत हो गई और दर्जनों लोग जख्मी हो गए। ‘साखरी नाटे’ विशुद्ध मछुआरों की बस्ती है। यहां की कुल आबादी दस हजार है, जिनमें ज्यादातर लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं। वैसे तो न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में इस गांव की कोई जमीन नहीं गई है, लेकिन प्रस्तावित प्लांट से सबसे ज्यादा असुरक्षित इसी गांव के निवासी हैं। दरअसल स्थानीय मछुआरों की चिंता भी वाजिब है, क्योंकि अरब सागर की खाड़ी में बसे इस गांव के मछआरे मछली पकड़ने समुद्र में जाते हैं, लेकिन प्लांट बनने के बाद उन्हें दस किलोमीटर के दायरे में जाने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। इस प्रतिबंध का विपरीत असर यहां के छोटे मछुआरों पर पड़ेगा, क्योंकि छोटे नाव से वे गहरे समुद्र में नहीं जा सकते और बड़े नाव खरीदने के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं है।
गांव में हमारी मुलाकात ‘महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति’ के उपाध्यक्ष अमजद बोरकर से हुई। अमजद प्रस्तावित जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट पर चिंता जाहिर करते हुए, इसे कोंकण का शाप बताते हैं। बकौल अमजद ‘साखरी नाटे’ में मत्सय उत्पादन का सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक का है। यहां के मछुआरे कई पीढ़ियों से इस व्यवसाय से जुड़े हैं। ऐसे में जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट बनने से न सिर्फ मछुआरे, बल्कि हजारों काश्तकारों की जीविका खतरे में पड़ जाएगी। उनके मुताबिक, परमाणु उर्जा विभाग की दलील है कि जैतापुर में प्रस्तावित न्यूक्लियर पॉवर प्लांट पूरी तरह सुरक्षित है और इससे स्थानीय लोगों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन इस बात की गारंटी तो रूस के चेर्नोविल और जापान के फुकुशिमा परमाणु हादसे से पहले भी दिए गए थे।
जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट से प्रतिदिन 5,200 लीटर गर्म पानी समुद्र में छोड़ा जाएगा। जाहिर है उस पानी में परमाणु कचरे भी मौजूद होंगे, जिसका असर मछलियों एवं अन्य समुद्री जीवों समेत मानवीय स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। समुद्री मछलियां एक निश्चित अनुकूल तापमान में रहती हैं। समुद्री जल के तापमान में अचानक वृद्धि होने से न सिर्फ मछलियों के प्रजनन पर असर होगा, बल्कि संभव है कि पांपलेट, सुरमई, सार्डिल और बांगड़ा जैसी स्थानीय स्वादिष्ट मछलियां यहां से पलायन कर जाए।
दरअसल ‘साखरी नाटे’ के मछुआरों की समस्याएं यहीं पर खत्म नहीं होती। बल्कि कई ऐसी दूसरी दिक्कतें इस न्यूक्लियर पॉवर प्लांट से जुड़ीं हैं, जिसका मुकम्मल जवाब परमाणु ऊर्जा विभाग और सरकार के पास नहीं है। मसलन, न्यूक्लियर पॉवर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) सुरक्षा के मद्देनजर प्लांट एरिया के दस किलोमीटर के दायरे को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करेगा। नतीजतन इस दायरे में मछुआरों और उनकी नौकाओं को आने की अनुमति नहीं होगी। इन नियमों का उल्लंघन करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है। ऐसे में यहां के मछुआरों की हालत कमोबेश वैसी हो जाएगी, जिस तरह समुद्री सीमा रेखा के उल्लंघन के आरोप में भारतीय मछुआरों को पाकिस्तान और श्रीलंका की जेलों में बंद रहना पड़ता है।
रत्नागिरी में मछली पैकेजिंग फैक्ट्री में काम करने वाले फकीर मोहम्मद हमजा एनपीसीआईएल के इन नियमों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहते हैं,‘ राजापुर तहसील में 30 किलोमीटर अरब सागरीय खाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की गहराई कम होने की वजह से साखरी नाटे के मछुआरे छोटी नौकाओं के सहारे मछली मारने का काम करते हैं। ऐसे में दस किलोमीटर क्षेत्र को प्रतिबंधित किए जाने से यहां के हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे। क्योंकि उनके पास बड़ी नौका खरीदने के लिए लाखों रुपये नहीं हैं। जबकि, सरकार बेरोजगार होने वाले मछुआरों को नौका खरीदने के लिए कोई सहायता राशि देने वाली नहीं है। हमजा के मुताबिक, राज्य सरकार जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट को कोंकण का विकास कहकर अपनी पीठ थपथपा रही है। हकीकत में यह तरक्की नहीं, बल्कि कोंकण की बर्बादी का फ्रांस के साथ करार है।
गौरतलब है कि जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट फ्रांस की विवादास्पद कंपनी अरेवा (अब ईडीएफ) के सहयोग से बनने वाली है। प्रस्तावित 9900 मेगावाट की यह परमाणु परियोजना विश्व के सबसे बड़े प्रोजेक्ट में शुमार है। इस प्लांट के लिए राजापुर तहसील के पांच गांवों में 938 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई हैं। इनमें सर्वाधिक 690 हेक्टेयर जमीन अकेले माड़बन गांव की है। इसके अलावा, मिठगवाणे में 102 हेक्टेयर, निवेली में 72.61, करेल में 70.68 और वरिलवाड़ा में 1.91 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है। भूमि अधिग्रहण का सर्वाधिक विरोध माडबन में हो रहा है। हालांकि, इस गांव में करीब नब्बे फीसद लोगों ने जमीन का मुआवजा ले लिया है, मुआवजा नहीं लेने वाले वैसे छोटे किसान हैं, जो किसी भी हालत में अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहते।
चार एकड़ जमीन के काश्तकार विजय गवानकर माडबन के उन्हीं लोगों में से एक हैं। न्यूक्लियर प्लांट की जद में उनकी सारी जमीनें चली गई हैं। अधिग्रहण से पहले विजय अपनी जमीन पर धान और सब्जी की खेती करते थे। वर्ष 2013 में आखिरी बार उन्होंने अपनी जमीन पर खेती की थी। उसके बाद न्यूक्लियर पॉवर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और रत्नागिरी जिला प्रशासन ने विजय और माड़बन के बाकी किसानों को खेती करने से मना कर दिया। माड़बन गांव में विजय समेत करीब डेढ़ सौ किसानों ने कोई मुआवजा नहीं लिया है। विजय बताते हैं, ‘यह उनकी पुश्तैनी जमीन है और खेती उनकी जीविका का एकमात्र साधन है। जमीन बेचकर इस दुनिया में कोई किसान संपन्न नहीं हुआ है। गांव में कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने लालचवश मुआवजा तो ले लिया, लेकिन अब उनके पास न तो पैसे बचे हैं और न ही जमीन। वरिलवाड़ा गांव निवासी प्रेमानंद तिबड़कर के पास पांच एकड़ जमीन है। उनका कहना है कि अणु ऊर्जा प्रकल्प बनने से आज नहीं तो कल लोगों को गांव छोड़ना ही पड़ेगा। सरकार लाख दावा करे, लेकिन रेडिएशन के दुष्प्रभाव से कोई कब तक सुरक्षित रहेगा ?
मिठगवाणे निवासी मनोज बालकृष्ण लिंगायत की 12 एकड़ जमीन उनकी मर्जी के खिलाफ अधिग्रहीत कर ली गई है। लेकिन उसने भी अपनी जमीन का कोई मुआवजा नहीं लिया है। उसे यकीन है कि परमाणु प्रकल्प के खिलाफ जारी आंदोलन का व्यापक असर होगा और एक दिन वह अपनी जमीन पर पहले की तरह खेती कर सकेगा। उसके मुताबिक, जिन बड़े किसानों ने मुआवजा लिया है, उनमें ज्यादातर लोगों का रिश्ता गांव से नहीं है। वे मुंबई, पुणे या विदेशों में रहते हैं। इसलिए उन्हें अपनी जमीन से भला क्यों मोह होगा! ऐसे लोगों के लिए न्यूक्लियर पॉवर प्लांट एक लॉटरी की तरह साबित हुआ और उन्होंने स्थानीय किसानों के हितों की परवाह किए बगैर जमीनें बेच दीं और करोड़ों रुपये का मुआवजा ले लिया। निवेली गांव के किसान संदेश करनगूटकर कहते हैं, न्यूक्लियर पॉवर प्लांट से स्थानीय लोगों को कितना रोजगार मिलेगा यह कोई नहीं जानता, लेकिन फलोत्पादन और मछली व्यवसाय जैसे परंपरागत पेशे पर इसका बुरा असर पड़ेगा। वैसे तो रत्नागिरी जिले में बिजली की कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर इससे अधित बिजली चाहिए तो जैतापुर में सौर और पवन चक्की जैसे वैकल्पिक ऊर्जा संयंत्र लगाने चाहिए। अगर यहां के युवाओं को रोजगार देना है, तो बिना जोखिम वाले कल-कारखाने लगाना चाहिए।
जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले किसानों को फिलहाल 22.50 लाख प्रति हेक्टेयर मुआवजा देने का प्रावधान है। जबकि शुरूआत में किसानों को महज 70 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा देने की बात कही गई थी। वर्ष 2009 में हुए जबरदस्त किसान आंदोलन की वजह से सरकार ने मुआवजा राशि में कई गुना वृद्धि कर दी। राजापुर तहसील के उप विभागीय अधिकारी (एसडीएम) सुशांत खांडेकर ने इस संवाददाता को बताया कि बढ़ाए गए मुआवजा राशि से किसानों को काफी फायदा पहुंचा और शायद यही वजह है कि इलाके में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जारी आंदोलन लगभग थम सा गया है। उनके अनुसार, न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में राजापुर तहसील की पांच गांवों क्रमशः माडबन, मिठगवाणे, निवेली, करेल और वरिलवाड़ा में 2,336 किसानों की 938 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है।
साभार : समकालीन तीसरी दुनिया
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