श्री श्री यमुना विवाद : नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूलन के इतिहास में ऐसी दबंगई पहली बार
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूलन (एनजीटी) के आदेश की अवमानना करना इस देश में कोई नई परिघटना नहीं है। अब तक न जाने कितने शासन-प्रशासन से लेकर निजी कंपनियों के उदाहरण हैं जहां एनजीटी के आदेशों की अवहेलना की गई है या फिर उनके पालन में कोताही बरती गई है। किंतु मार्च 2016 में श्री श्री रविशंकर द्वारा किए गए विश्व सांस्कृतिक उत्सव ने सारी हदें तोड़ दीं। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूलन के इतिहास में चोरी और सीनाजोरी की ऐसी दबंग मिसाल शायद ही कोई और हो। श्री श्री रविशंकर शायद पहले ऐसे आरोपी हैं जिन्होंने आदेश की अवमानना किए जाने पर एनजीटी के दण्डित किए जाने की शक्ति को भी चुनौती दे डाली। श्री श्री रविशंकर के फाउंडेशन पर एनजीटी ने 5 करोड़ का जुर्माना लगाया था जिसका 25 लाख जमा करके बाकी राशि को कार्यक्रम के बाद जमा करने का फाउंडेशन ने वायदा किया था। 25 मई को हुई सुनवाई में एनजीटी द्वारा बाकी राशि के संबंध में पूछताछ पर फाउंडेशन ने बैंक गांरटी के रूप में जुर्माना अदा करने की बात की जिसको न केवल एनजीटी ने नामंजूर कर दिया बल्कि ऐसे अप्रामाणिक आवेदन के उपर भी 5000 रु. का जुर्माना लगा दिया। एनजीटी के इस फैसले को अन्यायपूर्ण बताते हुए फाउंडेशन ने उसे सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती देने की बात कही है। पेश है श्री श्री रविशंकर की दबंगई पर यह महत्वपूर्ण आलेख;
विश्व सांस्कृतिक उत्सव ( 11-13 मार्च, 2016 ) के आयोजक ने की है। हालांकि हरित पंचाट ने यह स्पष्ट किया कि आदेश की अवमानना होने पर दण्डित करने के हरित पंचाट को भी वही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे किसी दूसरे सिविल कोर्ट हो, कितु चुनौती देकर आयोजक के वकील ने यह संदेश देने की कोशिश तो की ही कि वह आदेश की अवमानना करे भी तो हरित पंचाट उसका कुछ नहीं बिगाङ सकता।
हरित पंचाट के इतिहास में यह पहला ऐसा मामला है। ढाई महीने ने बाद इसने मुझे फिर मजबूर किया है कि मैं यमुना नदी पर विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आयोजक की कारगुजारियां फिर पाठकों के सामने रखूं।
यमुना बनाम श्री श्री
आर्ट ऑफ लिविंग प्रमुख श्री श्री रविशंकर जी की अगुवई में दिल्ली की यमुना पर हुए विश्व सांस्कृतिक उत्सव की याद आपको होगी ही। उत्सव के स्थान चयन और उससे यमुना नदी पारिस्थितिकी को हुए नुकसान पर यमुना जिये अभियान के मनोज मिश्र द्वारा मामले को हरित पंचाट में ले जाने की याद भी आपको होगी। ’व्यक्ति विकास केन्द्र’, आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन की सहयोगी संस्था है। विश्व सांस्कृतिक उत्सव के लिए यमुना भूमि का उपयोग करने की अनुमति का आवेदन ’व्यक्ति विकास केन्द्र’ ने किया था। इस नाते वही उत्सव का औपचारिक आयोजक ’व्यक्ति विकास केन्द्र’ ही था।
तीन आदेश
याद कीजिए कि विश्व सांस्कृतिक उत्सव मामले में राष्ट्रीय हरित पंचाट ने नौ मार्च, 2016 को एक आदेश जारी किया था। आदेश में अन्य के अलावा तीन बातें मुख्य थी :
पहला, हरित पंचाट ने हुए परिस्थितिकीय नुकसान के लिए आयोजक और उसे आयोजन की अनुमति देने वाले दिल्ली विकास प्राधिकरण..दोनो को दोषी माना था। कहा था कि आयोजक, आयोजन शुरु होने से पहले यानी 11 मार्च, 2016 की शाम से पहले पांच करोङ की राशि रुपये दिल्ली विकास प्राधिकरण के पास जमा करे। हरित पंचाट ने यह राशि, यमुना को हुए पारिस्थितिकीय नुकसान की भरपाई की अग्रिम राशि के तौर तय की थी।
दूसरा, हरित पंचाट की प्रधान समिति आयोजन के मौके का मुआइना कर चार सप्ताह के भीतर कुल नुकसान के आर्थिक आकलन की रिपोर्ट पंचाट के समक्ष पेश करे। इस पर पंचाट तय करेगा कि उसमें से कितना भुगतान उत्सव के आयोजक को करना है और कितना दिल्ली विकास प्राधिकरण को।
तीसरे तथ्य के तौर पर पंचाट पीठ ने कहा था कि नदी शुद्धिकरण के लिए लाये गये एंजाइम की कोई प्रमाणिकता नहीं है, लिहाजा उसे यमुना में न डाला जाये।
तीन अवमानना
यह सीनाजोरी नहीं, तो और क्या है कि आयोजकों ने सुनिश्चित किया कि उक्त तीनों मुख्य आदेशों की पालना न होने पाये। जानिए कि कैसे ?
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- कार्यक्रम संपन्न होते ही आयोजकों ने एंजाइम के ड्रम वहीं यमुना में उङेल दिए। मीडिया में उसकी तसवीरें छपी।
- आयोजक-व्यक्ति विकास केन्द्र ने कहा कि उसके पास इतनी बङी धनराशि नकद नहीं है। उसने आयोजन से पूर्व तय पांच करोङ में से मात्र 25 लाख रुपये जमा किए और शेष को जमा करने के लिए वक्त मांगा। पंचाट ने तीन सप्ताह का और वक्त दिया और आयोजक ने ऐसा करने का स्वीकारनामा दिया, किंतु समय समाप्ति की अंतिम तारीख (एक अप्रैल, 2016) को वह पलट गया। एक अप्रैल को पंचाट को दिए आवेदन में आयोजक ने कहा कि नकद की जगह उसे 4.75 करोङ बैंक गारंटी जमा करने की अनुमति दी जाये। पंचाट ने इससे इंकार किया। इस इंकार को भी लगभग दो महीने होने को हैं, किंतु विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आयोजक ने अभी तक एक धेला नहीं जमा किया है।यह हरित पंचाट के आदेश की अवमानना है। आयोजक द्वारा आदेश की अवनमानना को लेकर याची ने पंचाट में दो शिकायतें दर्ज की। आयोजक ने कोई लिखित जवाब पेश नहीं किया। वकील ने टालू रवैया अपनाया। उसने कहा कि दो शिकायतों में एक का जवाब तैयार है; एक का अभी तैयार करना है।
गौर कीजिए कि प्रतिक्रिया में हरित पंचाट ने कहा जरूर कि ’अपनी बैंक गारंटी अपने पास रखो’; 25 मई की सुनवाई के बाद उसने तीन दिन के भीतर जवाब जमा करने को भी कहा; लेकिन मालूम नहीं किस दबाव में पंचाट अपनी अवमाना सहती रही ? पंचाट की इस सहनशक्ति को उसकी कमजोरी समझ कर ही आयोजक के वकील ने हरित पंचाट पीठ से सवाल किया कि क्या उसके आदेश की आवमानना पर कार्रवाई करने का उसे कोई अधिकार है ?
31 मई का समाचार है कि हरित पंचाट ने बैंक गांरटी तथा जगह को जैव विविधता पार्क के रूप में विकसित करने की अनुमति आयोजक को देने से पुनः इंकार कर दिया है। बैंक गारंटी की अनुमति की अर्जी देने की एवज में रुपये पांच हजार का जुर्माना लगाया है और एक सप्ताह के भीतर अग्रिम मुआवजा राशि का बकाया जमा करने को कहा है।
उत्तराखण्ड की कोसी नदी में गंदगी निपटान की कार्ययोजना नहीं सौंपे जाने से नाराज राष्ट्रीय हरित पंचाट के अध्यक्ष श्री स्वतंत्र कुमार की पीठ ने एक बयान दिया – ’’ पंचाट के आदेशों को क्रियान्वित करना पर्यावरण न्याय का तत्व है और लोग, खासकर अधिकारी, जो निर्देशों का पालन नहीं करत, वे न सिर्फ अवज्ञा के जिम्मेदार है, बल्कि प्रदूषण करने और क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी की गिरावट के लिए भी जिम्मेदार हैं।’’ यह बयान एक आईना जरूर है, लेकिन आदेश की अवमानना करने वाले यदि अवमानना को दंडित करने की शक्ति को ही चुनौती देने लग जायें, तो यह आईना कितना कारगर होगा ? स्वयं पंचाट के लिए विचारणीय प्रश्न आज यही है। - नौ मार्च के आदेश के अनुसार, हरित पंचाट की प्रधान समिति को आयोजन से चार सप्ताह के भीतर उत्सव से यमुना की परिस्थितिकी को हुए नुकसान का आकलन पेश करना था। एक अपैल, 2016 को दिए आवेदन में आयोजक ने पंचाट से अनुरोध किया नुकसान का आकलन करने वाली समिति का सहयोग करने की उसे भी अनुमति दी जाये। उसके बाद आयोजक द्वारा पंचाट की प्रधान समिति को यह कहकर मौका मुआइना करने से रोका गया कि उसने आयोजन स्थल को अधिकारिक तौर पर दिल्ली विकास प्राधिकरण को नहीं सौंपा है। आयोजक के वकील ने अपने ताजा बयान में कहा है कि उन्होने यमुना का कोई नुकसान नहीं किया। उलटा उन्होने तो ज़मीन को पहले से बेहतर स्थिति में
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जमीन नहीं लौटाने का पेच
दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति विकास केन्द्र को दिए अनुमति पत्र के अनुसार भूमि का आवंटन किया गया है। यह आंवटन कितनी अवधि का है ? इसकी अस्पष्टता में आयोजन के ढाई महीने बाद भी आयोजन स्थल को औपचारिक तौर पर दिल्ली विकास प्राधिकरण को सौंपने का पेच छिपा है। यदि जमीन अब तक नहीं लौटाई, तो दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कार्रवाई क्यों नहीं की ? वह क्यों चुप रहा ? क्या इसमें उसकी भी कुछ शह है ? क्या वह आगे चलकर रखरखाव के नाम पर वह यह ज़मीन लंबी लीज अवधि के लिए आयोजक को आवंटित करने के फेर में है ? आयोजक ने अदालत से जमीन को जैव विविधता पार्क के रूप में विकसित करने की अनुमति चाही थी। आगे वह उसके रखरखाव की जिम्मेदारी लेने के नाम पर अपना कब्जा बनाये रखने की जुगत लगाती। आयोजक का व्यवहार हरित पंचाट को विश्वसनीय नहीं लगा। उसने मना कर दिखा।
जमीन न लौटाने के पीछे पेच यह भी हो सकता है कि बारिश आने के बाद नुकसान का सही आकलन करना मुश्किल हो जायेगा। गर्मी में छुटिट्यां हो जायेंगी। मामला अगस्त तक खिसक जायेगा। सत्य आगे पता चलेगा। 25 मई की आदेशानुसार, फिलहाल हरित पंचाट ने भारत सरकार के जलसंसाधन सचिव श्री शशिशेखर की अध्यक्षता वाली अपनी प्रधान समिति को कहा है कि वह अगले दो सप्ताह के भीतर (सात जून, 2016) यमुना पारिस्थितिकी को हुए नुकसान की आर्थिक आकलन रिपोर्ट जमा करे। गर्मी की छुट्टियों में पंचाट बंद रहता है; लिहाजा, सुनवाई की अगली तारीख चार जुलाई, 2016 तय की गई है।
नकदी चुकाने में अक्षमता के सच की जांच
इस प्रकरण का सबसे बङा सच वह झूठ है, जो आयोजक ने इतनी बङी रकम नकद देने में असमर्थता के रूप में हरित पंचाट के समक्ष रखा। ’द कारवां’ द्वारा की गई एक जांच इस झूठ का सच सामने रखती है।
आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन, दुनिया के 155 देशों में अपनी शाखायें बताता है। ’द कारवां’ के मुताबिक, संयुक्त राज्य अमेरिका, यू के और नीदरलैंड…इन तीन देशों में ही श्री श्री की प्रमुखता में 234 करोङ रुपये की संपत्ति तथा 81 करोङ रुपये आय का पता चला है। आय के मुख्य स्त्रोत क्रमशः पाठ्यक्रम व आयोजनों में ली जाने वाली फीस तथा नकदी व गैर नकदी रूप में प्राप्त सहयोग राशि दर्शाई गई है। ’द कारवां’ की उक्त रिपोर्ट आर्ट ऑफ लिविंग (अमेरिका), आर्ट ऑफ लिविंग (यू के ), वेद विज्ञान महा विद्यापीठ (अमेरिका), शंकर यूरोप होल्डिंग बी वी (नीदरलैंड), शंकर यूरोप बी वी (नीदरलैंड) तथा आर्ट ऑफ लिविंग हेल्थ एण्ड एजुकेशन ट्रस्ट के वर्ष 2013 अथवा 2014 के खातों पर आधारित हैं।
एक अन्य जानकारी के मुताबिक पिछले नौ वर्षों में आर्ट ऑफ लिविंग के चार प्रमुख ट्रस्टों को 331.55 करोङ रुपये की धनराशि विदेशों से सहयोग के रूप में प्राप्त हुई है। बकौल ’द कारवां’, 5.54 करोङ रुपये की विदेशी सहयोग राशि तो श्री श्री से संबद्ध श्री श्री सम्बद्ध अकेले इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज़ को मार्च 31,2016 की पहली तिमाही में ही प्राप्त हुई .मार्च 31,2016 की पहली तिमाही में ही प्राप्त हुए हैं।
’द कारवां’ द्वारा जारी जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि स्विस व्यावसायिक रजिस्ट्रार ने स्विस में श्री श्री रविशंकर से संबद्ध दो संस्थाओं और एक कंपनी के खातों के संबंध में ’द कारवां’ का आवेदन स्वीकार नहीं किया। जाहिर है कि जब कभी श्री श्री से संबद्ध समस्त संगठनों/कंपनियों का लेखा-जोखा सामने आयेगा, तो संपत्ति और आय का आंकङा कम नहीं होगा। यह मजहबी आकाओं के व्यावसायीकरण का दौर हैं। इस दौर में श्री श्री समूह की आय का अधिक होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन आय होते हुए भी असमर्थता का रोना रोना पर्यावरणीय न्याय और व्यक्तिगत नैतिकता की दृष्टि से क्या सचमुच अच्छी बात है ?
सीनाजोरी का दूसरा नमूना ’नॉलेज ऑफ टेम्पल’
विश्व सांस्कृतिक उत्सव के आयोजक का यह रवैया स्पष्ट करता है कि पर्यावरण और पर्यावरण को न्याय देने के लिए स्थापित राष्ट्रीय हरित पंचाट को लेकर उनकी मंशा क्या है ? आर्ट ऑफ लिविंग की मंशा की स्पष्टता कोलकोता के दलदली क्षेत्र में मनाही के बावजूद बनाई ’टैम्पल ऑफ नॉलेज’ नामक 8,000 वर्ग फीट 60 फीट ऊंची नई इमारत से भी स्पष्ट होती है। हालांकि मनाही के बावजूद वहां बनी यह अकेली इमारत नहीं है, लेकिन अपने आकार और पर्यावरण की चिंता करने के श्री श्री के दावे के कारण यह इमारत एक मिसाल जरूर है।
गौर कीजिए कि करीमपुर में यह इमारत आर्ट ऑफ लिविंग से संबद्ध ’वेद धर्म संस्थान ट्रस्ट’ की है। इमारत से संबद्ध सदस्य इसे पुराना बताते हैं। स्थानीय जानकारों के मुताबिक इमारत का निर्माण जुलाई-अगस्त, 2015 के मध्य शुरु हुआ। ’कार्बन डेटिंग’ की जांच सत्य बताती है। ईस्ट कलकत्ता वेटलैंड मैनेजमेंट अथॉरिटी ने अगस्त और सितम्बर, 2015 में ट्रस्ट को क्रमशः ’कारण बताओ’ और फिर ’निर्माण बंद करो’ नोटिस भी जारी किए।
स्थानीय पर्यावरण संगठन ’पब्लिक’ की बोनानी कक्कङ कहती हैं कि निर्माण उसके बावजूद जारी रहा और पूरा हुआ। बोनानी वेटलैंड अथॉरिटी की सदस्य भी हैं; कहती हैं कि वर्ष 1993 में पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट के निर्देश तथा वेटलैंड अथॉरिटी की वर्ष 2005 की अधिसूचना के मुताबिक वेटलैंड का न तो भू-उपयोग बदला जा सकता है और न ही उसमें कोई नया निर्माण किया जा सकता है। उन्होने इस आधार पर गत् चार मार्च को अथॉरिटी में ’टैम्पल ऑफ नॉलेज’ इमारत का मामला उठाने की कोशिश भी की, लेकिन निर्माण रोकने के लिए अथॉरिटी की पहल नोटिस के आगे नहीं बढ़ी।
यह न्यायप्रियता है या जिद्दप्रियता ?
कारण कुछ भी हो, लेकिन चोरी पर सीनाजोरी के उक्त प्रतिबिम्ब शांति, प्रेम और भारतीय संस्कृति के उस बिम्ब से तो कतई मेल नहीं खाते, जिसके लिए आज तक दुनिया श्री श्री रविशंकर जी और आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन को जानती रही है।
यदि श्री श्री लातूर जाकर एक नदी की पुनर्जीवन के लिए जनता के प्रयास पर अपना नाम लिखाने के लिए एक करोङ रुपये का सहयोग दे सकते हैं, तो फिर यमुना को खुद किए नुकसान के लिए पांच करोङ क्यों नहीं ?
यह श्री श्री की पर्यावरण न्यायप्रियता है या दिखावप्रियता या फिर जिद्दप्रियता ? पाठक तय करें।