चेन्नई। 16 सितंबर 2015। आज भारतीय न्यायालय ने ग्रीनपीस को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अनुचित कार्यवायी से पांचवी बार सुरक्षा दिया है। मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश एम एम सुन्दरेश ने ग्रीनपीस को अंतरिम राहत देते हुए ग्रीनपीस के एफसीआरए को रद्द किये जाने के निर्णय पर आठ हफ्ते तक की रोक लगा दी है। उन्होंने संस्था के वकील को गृह मंत्रालय को नोटिस भेजने का आदेश भी दिया है।
ग्रीनपीस की सह कार्यकारी निदेशक विनुता गोपाल ने कहा, “हमें पूरा विश्वास है कि हम कानूनी रूप से सही हैं और हम अदालत में साबित कर सकते हैं कि गृह मंत्रालय बिना किसी औचित्य के हमारे खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। यह चौथी बार है जब हमें कानून का सहारा लेना पड़ रहा है। इससे पहले भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकारी नीति पर सवाल उठाने के हमारे अधिकार का समर्थन किया है। आज मद्रास हाईकोर्ट के इस निर्णय से भारतीय न्याय व्यवस्था की प्रतिबद्धता पर हमारा विश्वास और बढ़ा है।”
ग्रीनपीस ने मद्रास हाईकोर्ट को यह भी सूचित किया कि वह दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे अपने अस्थायी एफसीआरए निलंबन के केस को वापस ले रहा है क्योंकि गृह मंत्रालय द्वारा जारी एफसीआरए के सेक्शन 14 के निलंबन आदेश की जगह उसी के द्वारा एफसीआरए के सेक्शन 13(2) के तहत एफसीआरए रद्द करने का आदेश जारी किया है।
2 सितंबर को गृह मंत्रालय द्वारा जारी नोटिस में ग्रीनपीस पर लगाए गए आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए विनुता ने कहा, “गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस को चुप कराने के लिये लगातार कई प्रयास किये हैं, लेकिन हमारे पास सभी आरोपों का साफ और स्पष्ट जवाब है और हम इन्हें बार-बार दुहराने के लिये तैयार हैं। गृह मंत्रालय ने मनमाने ढंग से एफसीआरए कानून की व्याख्या करके हमारे खिलाफ एक काल्पनिक मामला बनाया और हम पर राष्ट्र हित के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है।”
विनुता का कहना है, “अलग-अलग न्यायालय ने गृह मंत्रालय को याद दिलाया है कि वो अपने संकीर्ण नजरिए से राष्ट्रीय हित की परिभाषा तय नहीं कर सकते। उन्हें हमारे खिलाफ इस तरह के दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, भले ही उनके पास असहमति को दबाने की ताकत क्यों न हो। हमें अपनी आय का लगभग 70 प्रतिशत भारतीय समर्थकों से मिलता है, लेकिन यह हमारे लिये सिद्धांत का मामला है।
विनुता पूछती हैं, “स्वच्छ पानी, साफ हवा और टिकाऊ बिजली के लिये चलाये जा रहे अभियान को देश के खिलाफ कैसे बताया जा सकता है? वास्तव में हमें न्यायालय से यह मांग करनी पड़ रही है कि वह हमारे मौलिक अधिकार सुरक्षित करें ताकि हम अपने जन-संचालित अभियान जारी रख सकें – एक बेहतर भारत के निर्माण के लिये।”