संसाधन और स्वशासन : जन वनाधिकार सम्मेलन में वनाधिकार जन घोषणा पत्र का मसौदा जारी
रायपुर 29 अक्टूबर 2018 । संसाधन और स्वशासन : जनता की आवाज पर दो दिविसय जन वनाधिकार सम्मेलन का आयोजन गोंडवाना भवन, रायपुर में किया गया। कार्यक्रम में जन घोषणा पत्र का मसौदा तैयार करके 29 अक्टूबर को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा हुई। पेश है वनाधिकार का जन-घोषणा पत्र (मसौदा);
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन-निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 (वनाधिकार संशोधित नियम 2012 सहपठित) और पंचायत उपबंधों का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996 का अविलम्ब, न्यायपूर्ण व उत्तरदायी तरीके से क्रियान्वयन
*सन्दर्भ*-
छत्तीसगढ़ प्रदेश में संपन्न होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा भाग लेने के लिए मतदाताओं से अपने अपने पक्ष में वोट देने की अपील की जाती है. सभी प्रत्याशी वोट प्राप्त करने के लिए स्वयं व अपनी पार्टी को जनता के मुद्दों को हल करने एवं बेहतर शासन देने के लिए योग्य बताते है. ऐसे में, हम, जन-वनाधिकार सम्मेलन के अवसर पर वनाधिकार से जुड़े मुद्दे पर एकमत विभिन्न संगठन एवं समूह,राजनैतिक दलों एवं उनके प्रतिनिधियों के विचारार्थ “वनाधिकार का जन-घोषणा पत्र’ जारी करते हैं.
प्रदेश के 13 जिले पूर्ण व 6 आंशिक रूप से भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित एवं आदिवासी-जन व वन-क्षेत्र बहुल है. परन्तु, अब तक इस क्षेत्र के निवासी अपने मौलिक हकों व सम्मानपूर्ण जीवन से वंचित है. इस समुदायों पर पिछले 150 वर्षों में हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने एवं वन क्षेत्रों में व्यापक भूमि-सुधार और लोकतान्त्रिक अभिशासन लागू करने के उद्देश्य से ‘*अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन-निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006*’ बनाया गया. प्रदेश में वर्ष 2008 से लागू इस कानून ने सदियों से वंचित आदिवासियों के बीच उम्मीद की किरण जगाई, कि वन व वनभूमि पर आश्रित समुदाय को पीढ़ियों से चले आ रहे अन्याय से मुक्ति मिलेगी. परन्तु, इस कानून के लागू होने के एक दशक बाद भी लंबित पड़े अधिकारों का न मिलना, पूरे समाज और सामाजिक आंदोलनों के लिए रोष का विषय है.
इस दरमियान, लोग बहुत से आवेदन, ग्राम सभा के प्रस्ताव, और सरकारी विभागों के चक्कर लगा कर विवश हो चुके है. अतः, इस जन वनाधिकार सम्मेलन में तैयार बनाधिकार के जन-घोषणा पत्र के माध्यम से वनाधिकारों के दावेदार अपनी न्यायपूर्ण मांगों (मुद्दों)पर तुरंत समुचित कारवाई करने की मांग करते (संकल्पित) है.
वनाधिकार जन घोषणा-पत्र की प्रमुख मांगे
- प्रदेश में वन-अभिशासन (forest governance) का लोकतांत्रिकरण करने ग्राम सभा को सामुदायिक वनाधिकारों की मान्यता दी जाये.(मान्यता दे कर सक्षम बनाएं)
- वन-निर्भर समुदायों व आदिवासी समाज पर हुए ऐतिहासिक अन्याय को विधानसभा में शपथ-ग्रहण के साथ स्वीकार करें, और उसके खात्मे का वचन दे.
- ग्रामसभाओं को सशक्त, सक्षम व स्वायत्त बनाने का वचन दिया जाये. (ग्राम सभा की गठन संचालन नियम को सरकारी मुक्त कर ग्रामवासियों की स्वत निर्णय को सन्मान दें तथा हर गांव में महिला सभा गठन की नियम बनाये)
- प्रदेश में वन-भूमि सहित व्यापक भूमि-सुधार का प्लान/खाका पेश करें
- छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी द्वन्द ख़त्म करने का विश्वास दिलाये. (द्वंद खत्म करने के लिए हाथी के हैबिटैट को चिन्हित कर “नो गो” क्षेत्र घोषणा करें।
- प्रदेश के ‘टाइगर रिज़र्व’ सहित अन्य वन्यप्राणी अभ्यारण्य व राष्ट्रीय उद्यानों से शून्य विस्थापन प्रतिबद्ध करे.
- प्रदेश के वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाते समय वन विभाग द्वारा की गई गैर कानूनी तरीके को सुधार कर कानूनी प्रावधानों से पुनः करवाने का वादा करे.
- प्रदेश में अति कमज़ोर आदिम समूहों(P V T G) के वसाहत अधिकार (habitat rights) को प्राथमिकता दे कर मिशन मोड से किया जाये।
- वनोपज का बेहतर मूल्य दिलाने सहित, वन-आश्रित समुदायों की वनोपज-आधारित आजीविका को मजबूत करने का भरोसा दिलाये.
- ग्राम सभा को लघु वनोपज पर मालिकाना हक्क (तेंदूपत्ता सोसाइटी भंग कर), महाराष्ट्र के तर्ज़ पर ग्रामसभा को टी.पी इशू करने की अधिकार
वनोपज को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून में शामिल कर लाभकारी दाम सुनिश्चित किया जाएगा और इस दाम के नीचे की कोई भी खरीदी गैर कानूनी होगी। - सामुदायिक वन-क्षेत्र की ग्रामसभाओं को वनोपज व्यापार की बाधा ख़त्म करने (TP की अनिवार्यता आदि) का वादा करें.
- प्रदेश के सभी 85 अनुसूचित ब्लाक में विशेष अभियान चला कर सभी पात्र परिवारों और ग्राम सभाओ को 6 महीने में वनाधिकार दिलाना तय करें.
- प्रदेश के अति पिछड़े व कमज़ोर आदिवासियों की पहचान कायम रखते हुए, उनके वनाधिकारों की मान्यता दिलाएं.
- प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय वन नीति’ और कैम्पा कानून व नियम के वन-अधिकार विरोधी प्रावधानों तथा खास तौर पर ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकार (सहमति की अनिवार्यता) की हनन को ख़ारिज करवाने का प्रण करे.
- ‘न्यूनतम खनिज दोहन की नीति’ अपनाने का वादा करो, और सामुदायिक वन-क्षेत्र में खनिज दोहन के पहले ग्रामसभा की सहमति की अनिवार्यता को मानते हुए कोई भी डायवर्शन ‘अपवाद’ स्वरूप ही हो.
- प्रदेश के जिलों में खान एवं खनिज ( विकास एवं विनियम) अधिनियम के तहत गठित जिला खनिज न्यास (DMF) को ग्रामसभाओं के प्रति जवाबदेह बनाओ और DMF में एकत्रित किये जा रहे खनिज रायल्टी का निश्चित भाग ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संवर्धन/प्रबंधन के लिए प्रदान किये जाने का नियम बनाने की वादा करें;
- अनुसूचित क्षेत्रों में गौण एवं प्रमुख खनिजों की रायल्टी सीधे ग्राम सभाओं को हस्तांतरित करने का वादा करो
- अनुसूचित इलाकों में किसी भी विकास कार्यो के लिए ग्रामसभा की लिखित, (दबाव)मुक्त, पूर्व, सूचित सहमति लेना अनिवार्य किये जाने का आश्वासन दो.
संशोधन एवं सुझाव के लिए जारी
प्रारूप लेखन- विजेंद्र अजनबी
*वनाधिकार जन घोषणा-पत्र का केन्द्रीय विषय*-