संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

गुजरात : पेप्सिको विवाद और कांट्रेक्ट फार्मिंग

-गिरिश मालवीय

नील की खेती याद है आपको!, 1917 का चंपारण आंदोलन जिसने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गाँधी बना दिया था वह नील की खेती से ही जुड़ा हुआ आंदोलन था, बिहार में अंग्रेजी सरकार किसानों से जबर्दस्ती नील की खेती करने को बाध्य करती थी ……….अब गोरे अंग्रेज चले गए और अब काले अंग्रेजों का शासन आ गया है अब स्वतंत्र भारत मे मोदी सरकार नील की खेती कराने जैसे ही योजना बना रही है पर शब्द थोड़ा सॉफ्ट है ‘कांट्रेक्ट फार्मिंग’

मोदी सरकार मॉडल संविदा खेती और सेवाएं अधिनियम-2018 को लागू करने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं…… कांट्रैक्ट खेती (ठेके पर खेती कानून) के मॉडल कानून को मोदी सरकार अपनी हरी झंडी दे चुकी है, जिसमें प्रायोजकों के पंजीकरण, अनुबंध की रिकॉर्डिंग, विवाद निपटान तंत्र के लिए प्रावधान किए गए हैं। अरुण जेटली इसके सबसे बड़े समर्थक हैं

पेप्सिको कम्पनी से जुड़ा ताजा विवाद इस कानून की विसंगतियों को समझने का बहुत अच्छा उदाहरण है आपने बहुराष्ट्रीय कम्पनी पेप्सिको का सबसे लोकप्रिय प्रोडक्ट पेप्सी पी ही होगी लेकिन पेप्सी ब्रांड के अलावा यह कम्पनी क्वेकर ओट्स, गेटोरेड, फ्रिटो ले, सोबे, नेकेड, ट्रॉपिकाना, कोपेल्ला, माउंटेन ड्यू, मिरिंडा और 7 अप जैसे दूसरे ब्रांड की भी मालिक है। इसका एक अन्य मशहूर प्रोडक्ट है Lay’s चिप्स……

इस चिप्स में जो आलू इस्तेमाल होता है आलू की इस किस्म का पेटेंट पेप्सिको ने अपने नाम पर करवा रखा है, पेप्सिको का दावा है कि अपने ब्रांड के चिप्स के निर्माण के लिये वह स्पेशल आलू इस्तेमाल करती है, इसलिए ऐसे आलुओं पर केवल उसका ही अधिकार है.

अब पेप्सिको कम्पनी भारत के किसानो से वह स्पेशल आलू उगाने के लिए कांट्रेक्ट करती है बीज भी वह देती है और फसल भी वही खरीदती है यह एक तरह की औद्योगिक कृषि ही है,…. मोदी सरकार पेप्सिको जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हित संवर्द्धन को तत्पर ऐसी ही फसलों को कवर देने के लिए यह कानून लायी है जिसे मॉडल संविदा खेती और सेवाएं अधिनियम-2018 कहा जा रहा है.

बहुत सी राज्य सरकार इस तरह के कानून प्रावधान लागू कर चुकी है इन प्रावधानों के उल्लंघन का एक मामला जब सामने आया तब इस पूरे खेल से पर्दा हटा है यह केस बेहद महत्वपूर्ण है यह केस हमे बताता है कि आखिर यह गुजरात मॉडल क्या है जिसकी इतनी बड़ाई की जाती है क्योंकि यह पहला केस गुजरात का ही है

पिछले दिनों ही पेप्सिको ने गुजरात के तीन किसानों पर मुकदमा दायर किया है। पेप्सिको का आरोप है कि यह किसान अवैध रूप से आलू की एक किस्‍म जो कि पेप्‍स‍िको के साथ रजिस्‍टर है उसे उगा और बेच रहे थे। कंपनी का दावा है कि आलू की इस किस्‍म से वो लेस ब्रैंड के चिप्‍स बनाती है और इसे उगाने का उसके पास एकल अधिकार है।

पेप्सिको कंपनी के मुताबिक, बिना लाइसेंस के इन आलू को उगाने के लिये गुजरात के तीन किसानों ने वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। ऐसे में पता चलते ही आलू के नमूने एकत्र किए गये और इन-हाउस प्रयोगशाला के साथ-साथ डीएनए विश्लेषण के लिए शिमला स्थित आईसीएआर और केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान में सत्यापन के लिए भेजे। परिणामों से पता चला कि गुजरात के यह किसान पंजीकृत आलू बेच रहे थे।

कंपनी की शिकायत और आलू की किस्‍म के पंजीकरण को देखते हुए वाणिज्यिक अदालत ने पिछले सप्‍ताह तीनों किसान, छबिलभाई पटेल, विनोद पटेल और हरिभाई पटेल को दोषी पाया है और उनके द्वारा 26 अप्रैल तक आलू उगाने और बेचने पर रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने तीनों किसान से जवाब भी मांगा है जवाब आने के बाद उन पर ओर कड़ी कार्यवाही की जा सकती है उन पर इतना जुर्माना भी लगाया जा सकता है कि उन्हें अपना खेत ही बेच देना पड़े

इस तरह की संविदा खेती से जुड़े अपने ही खतरे हैं. छोटे और मझोले किसान इन अनुबंध की बारीकियों को समझ नहीं पाएंगे यदि फसल कम्पनी के मानकों के अनुसार नही हुई तो खुले बाजार में उसे बेच भी नही पाएंगे, यदि बेचने गए तो उनका हश्र इस गुजरात के तीन किसानों जैसा हो सकता है.

बहुराष्ट्रीय कंपनी किसी की सगी नही है कांट्रेक्ट फार्मिंग का सीधा अर्थ है यह बिल्लीयो को दूध की रखवाली सौप देने का ही दूसरा नाम है किसान की मर्जी गुलामी में बदल जाएगी………..कांट्रेक्ट फार्मिंग एक तरह से ‘नील की खेती’ का ही दौर वापस ले आएगी ओर इस बार हमारे पास कोई ‘महात्मा’ भी नही होगा……..

इसको भी देख सकते है