संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पेप्सीको कम्पनी : बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शर्तों के नीचे दम तोड़ती खेती

गुजरात के किसानो पर पेप्सी कम्पनी ने एक केस अहमदाबाद की व्यापारी कोर्ट में दर्ज करवाया जिसको लेकर अभी देश और दुनिया में खबरे बनी हुई है. हर किसान को जानना चाहिए की मामला क्या है और किसानो के अधिकार क्या है. किसान नेता सागर रबारी का आलेख;

गुजरात के अरावली जिले के 4 किसानो पर ‘पेप्सी’ ने अहमदाबाद की व्यापारी कोर्ट में केस दर्ज करवाया की आलू की जिस जात को किसानो ने उगाया है वो उसने “इंटेलेक्टुअल प्रॉपर्टी राइट एक्ट” के तहत रजिस्टरड करवाया है, अतः, उस की अनुमति के बिना किसान उसकी खेती नहीं कर सकते. बिना अनुमति के किसानो ने खेती किया है उससे “पेप्सी” को 1 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ है जो किसानो को चुकाना चाहिए.

इसे बहुत लम्बा नहीं करना है इस लिए किसानो के साथ कंपनीने क्या हथकंडे अपनाये उसका वर्णन अभी यहां नहीं करता हूँ। लेकिन आस्चर्य हुवा की “व्यापारी कोर्ट” ने किसानो को बिना सुने ही, आलू नहीं बेचने और कोर्ट में हाजिर रहने का नोटिस दिया, साथ ही में, तुरंत, कोर्ट की एक कमेटी भी बना डाली जो “आलू” के सेम्पल ले और लेबोरटरी से उसका परीक्षण करा के कोर्ट में रिपोर्ट पेश करे. वाह, क्या तेजी दिखाई है!

अख़बार में समाचार छपते है कुछ संगठनों ने मिलके प्रेस कांफ्रेंस किया और किसानो को अपना समर्थन घोषित किया, हर संभव मदद करने की, अंत तक लड़ने में साथ देने की बात कही. क्यों की.

प्लांट वेराइटी प्रोटेक्शन एन्ड फार्मर्स राइट एक्ट-2001 के अंतर्गत किसानो को अधिकार मिला है की, “किसी भी एक्ट के तहत, कोई भी बीज ऐस्टेरेद रजिस्टर्ड हुवा हो उससे किसानो के परम्परागत किसानी के अधिकार पर कोई बाधा नहीं आएगी. किसान को उगाने, खुले बाजार में बेचने, किसी को भेट करने, खुद उपयोग करने और उसको फिर से बीज के रूप में इस्तेमाल करने का अधिकार रहेगा.

यानि, पेप्सी ने गलत केस किया

इस बात को गुजरात और देश के अखबारों ने अच्छे से उठाया. उनका का शुक्रिया अदा करना चाहिए की उन्होंने इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लिया.

कम्पनी को उम्मीद नहीं होगी, या सोचा नहीं होगा की किसानो को इतना बड़ा समर्थन मिलेगा, मिडिया का साथ मिलेगा. डर के मारे पेप्सी ने कोर्ट से बाहर दो शर्तो पर समाधान करने का ऑफर दिया. (1) किसान गारंटी दे की वो आगे से इसकी खेती नहीं करेंगे (2) अगर खेती करते है तो जितनी भी उपज हो वः पेप्सी को ही बेचेंगे, किसी और को नहीं.

किसान क्यो मानेंगे? हम ऐसा क्यों करेंगे भाई? ये तो आलू से ज्यादा किसानो की आझादी का मामला है. पेप्सी कौन होती है ये तय करने वाली की किसान क्या उगाएंगे और किसको बेचेंगे? आज गुजरात के किसानो पर केस किया, कल को उत्तर प्रदेश के किसानो पर करेंगे, फिर बंगाल और बिहार के किसानो की बारी आ सकती है. हम अलग थोड़े न लड़ेंगे, साथ लड़ेंगे और साथ जीतेंगे भी.

पेप्सी ने दरअसल केस किसानो को डराने और उसके लिए आलू उगाने को मजबूर करने के लिए ही किया होगा लेकिन लगता है दांव उल्टा पड़ गया.

एक टीवी डेबिट में हमने कहा की सवाल आलू और रॉयल्टी का नहीं, हमारी आजादी का है, हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी. जब तक-

      • कम्पनी बिना-शर्त केस वापस न ले,
      • किसानो को हुए खर्च का भुगतान न करे,
      • किसानो की बदनामी के लिए किसानो से माफ़ी न मांगे.

कोई समझोता नहीं हो सकता.

ये मौका है बाजारवाद को उसकी हैसियत दिखाने का. अगर हम मिलकर लड़े, सब तय करे की पेप्सी का कोई भी सामान नहीं खरीदेंगे तो पेप्सी क्या बनाएगी और कहा बेचेगी? आखिर हमारे ही पैसो से वो हम पर शर्ते लाद ने की हिम्मत दिखा रही है.

ये खेती हमारी है, ये देश हमारा है, कानून भी हमारा है, फिर शर्ते तय करने वाली “पेप्सी” कम्पनी कौन होती है?
हाँ, अपनी आजादी, अपनी किसानी को पोलिटिकल पार्टिओ के भरोसे मत छोडो, खुद समझो, दुसरो को समझाओ और पेप्सी के सामान का खुलकर बहिष्कार करो.

इस के लिए अपना काम छोड़कर बाहर जाने की भी जरूरत नहीं, केवल, पेप्सी का कोई भी सामान न ख़रीदे उतना तय कर ले. बिना पेप्सी के जी नहीं सकते क्या? हमारे पुरखे बिना पेप्सी के मजे से जिए थे और हम भी बिना पेप्सी के मजे से जियेंगे, अगर मर भी जायेंगे तो किसानो की आजादी के लिए इतना बलिदान तो बनता ही है.

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