मध्य प्रदेश : दोबारा विस्थापित आदिवासियों को खानाबदोश करने की तैयारी
-दीपक ‘विद्रोही’
बार-बार अपना घर छोड़कर जाना, फिर से नए आशियाने की तलाश और जिंदगी को फिर से पटरी पर दौड़ाने की कोशिश, यह बेहद चुनौती भरा काम है। लेकिन दो दशक पहले बरगी बांध से विस्थापन का दंश झेल चुके आदिवासियों ने अपनी जिंदगी को संभाला ही था कि उन्हें दोबारा विस्थापित करने का नई परियोजना तैयार हो गई। मंडला जिले के चुटका गांव में प्रस्तावित 1400 मेगावॉट के परमाणु प्रोजेक्ट के एवज में आदिवासियों के सामने अपने जीवन मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है। इस परमाणु प्रॉजक्ट के प्रस्ताव को ग्राम सभा द्वारा निरस्त कर दिया गया था, लेकिन फिर भी इसे यहां स्थापित किया जाना संविधान की पांचवी अनुसूची के विरुद्ध और अवैधानिक है। गौरतलब है कि बरगी बांध से 162 गांव विस्थापित हुए हैं, जिसमें मंडला के 95 सिवनी के 48 तथा जबलपुर जिले के 19 गांव शामिल हैं। सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन हेतु बनी बरगी परियोजना से विस्थापितों को मुआवजा देकर अपनी जमीन से बेदखल कर दिया गया तथा किसी प्रकार की पुनर्वास एवं पुर्नबसाहट योजना लागू नहीं की गई। इस परियोजना से प्रभावित होने वाले 70 प्रतिशत गोंड आदिवासी समुदाय के लोग हैं।
क्या है पांचवी अनुसूची
देश में कुल 9 राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्र पांचवी अनुसूची में शामिल है। पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में ग्राम सभा सर्वोच्च होती है और इस क्षेत्र के सारे मुद्दों पर फैसले भी ग्राम सभा सहमति से लेने का प्रावधान है। संविधान के जानकार जयंत वर्मा कहते है कि पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में दिलिप सिंह भूरिया कमेटी की अनुशंसा पर 24 दिसंबर 1996 से आदिवासी क्षेत्रों पर विस्तार का विशेष कानून पेसा लागू हुआ। इस कानून के अंतर्गत किसी भी अनुसूचित क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण करने के लिए ग्राम सभा की सहमति जरूरी होती है। अगर ग्राम सभा अधिग्रहण के लिए सहमति नहीं देती तो उस भूमि पर किसी भी तरह की परियोजना नहीं लगवाई जा सकती। चुटका में भी ग्राम सभा ने परमाणु परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को अमान्य कर दिया था,लेकिन भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को बढ़ाया जा रहा है, जो संविधान के खिलाफ है। वहीं मुख्यमंत्री ने कहा है कि चुटका परियोजना से 25 हजार करोड़ की इस परियोजना से क्षेत्र का विकास होगा,लेकिन फूकुशिमा जैसे परमाणु हादसों के बाद इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि चुटका में ऐसी दुर्घटना नहीं होगी।
आदिवासियों के 54 गांव में होगा विकिरण
परमणु परियोजना स्थापित हो जाने के बाद संयंत्र स्थल से 11 वर्ग किमी के दायरे में 54 आदिवासी गांव में विकिरणों का खतरा तथा जलाशय में कार्यरत 2000 मछुआरों के परिवार की जिन्दगी संकट में आयेगी। इस परियोजना की शुरूआत 1984 में हुई, जब परमाणु ऊर्जा आयोग का विशेष दल स्थल निरीक्षण एवं जांच हेतु आया था। केन्द्र सरकार द्वारा अक्टूबर, 2009 में इसकी मंजूरी प्रदान की गई। फिलहाल यहां 700 मेगावाट की दो यूनिट कार्य करेगी लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 2800 मेगावाट बिजली बनाने का प्रस्ताव है। वर्तमान में शासन द्वारा इस परियोजना से बरगी बांध के विस्थापित ग्राम चुटका, टाटीघाट एवं कुण्डा के लगभग 350 परिवार को दुबारा विस्थापित करने की योजना है। परियोजना हेतु 650 हैक्टेयर भूमि तथा 7 किमी की दूरी पर स्थिति ग्राम सिमरिया के पास टाऊनशिप हेतु 75 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण प्रस्तावित है। इस योजना की प्रारम्भिक लागत 16500 करोड़ की है तथा इस संयंत्र में नेचुरल यूरेनियम तथा कुछ मात्रा में थोरियम का उपयोग किया जाएगा और बरगी जलाशय से 128 क्युसेक लिया जायेगा। इस परमाणु बिजली घर न्यूक्लीयर पॉवर आॅफ कारपोरेशन आॅफ इंडिया द्वारा निर्माण किया जायेगा तथा जमीन, पानी और बिजली आदि के लिए मप्र पॉवर जेनरेटींग कंपनी को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
‘यह सही है कि कुछ लोगों का दोबारा विस्थापन होगा लेकिन गांव वालों की सहमति से ही परमाणु परियोजना स्थापित की जा रही है। परियोजना के लिए किसी तरह से नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है।’ -फग्गन सिंह कुलस्ते, केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री
चुटका परमाणु परियोजना के खिलाफ ग्राम सभा ने प्रस्ताव पारित किया, लेकिन सरकार ने ग्राम सभा का प्रस्ताव नहीं माना। सरकार खुलेआम पांचवी अनुसूची का उल्लंघन कर संविधान की हत्या करने का प्रयास कर रही है। -गुलजार सिंह मरकाम, राष्ट्रीय समन्वयक,भारतीय गोंडवाना पार्टी
चुटका परमाणु परियोजना में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। परमाणु परियोजना से सभी ग्रामीण सहमत है और ग्रामीणों ने ही अपने पुनर्वास के लिए जगह का निर्धारण किया है। पांचवी अनुसूची के उल्लंघन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। -प्रीति मैथिल, कलेक्टर मंडला