माही बांसवाड़ा परमाणु पॉवर प्लांट विरोधी आंदोलन
बांसवाड़ा से मुश्किल से 15 कि.मी. दूर आड़ीभीत में किसान अपनी ज़मीन बचाने के लिए लगातार मई 2012 से धरने पर बैठे हैं। इन किसानों की ज़मीन माही (बांसवाडा़, राजस्थान) बांध के पास बन रहे परमाणु ऊर्जा संयंत्र में जा रही है। बांसवाड़ा से मात्र 20 किमी. दूर बारी में प्रस्तावित परमाणु पॉवर प्लांट के लिए तीन ग्राम पंचायतों (नापला, बारी, कुटम्बी) की 3447 हैक्टैयर भूमि का अधिग्रहण करने की योजना है। इस भूमि अधिग्रहण से 1022 खातेदार प्रभावित हो रहे हैं एवं 11 हजार से अधिक लोगों को इससे विस्थापित होना पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस में 700-700 मेगावाट क्षमता वाले स्वदेशी दाबित भारी पानी रियक्टरों के चार यूनिटों को स्थापित करने की योजना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार माही बजाज सागर बांध से संयंत्र को पानी उपलब्ध करवाया जायेगा।
विदित है कि क्षेत्र के किसान, परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए सरकार द्वारा अपनी भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ आदिवासी किसान संघर्ष समिति की अगुवाई में 17 मई 2012 से लगातार धरने पर बैठे हुए हैं। क्षेत्र की 18 ग्राम पंचायतों के किसान अपनी आजीविका के मुख्य साधन कृषि भूमि को बचाने और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपने मज़बूत इरादे जताने के लिए 17 मई 2012 से पूर्व मंत्री मईड़ा के नेतृत्त्व में आमरण अनशन पर बैठे थे। दुलीचंद मईड़ा ने सात दिन तक आमरण अनशन किया और उसके बाद इस बारे में मुख्यमंत्री स्तर पर बातचीत करने के आश्वासन के बाद आमरण अनशन स्थगित किया गया।
आदिवासी किसान संघर्ष समिति के साथी जवार सिंह गरासिया कहते हैं कि ’’अपने ही नियमों, कानूनों का उल्लंघन सरकार की न बदल सकने वाली आदत बन गयी है। परमाणु ऊर्जा नियंत्रण बोर्ड के मानकों जैसे- पांच किलोमीटर तक प्राकृतिक जंगल होना, 10 किलोमीटर तक 10 हज़ार आबादी होना तथा 30 किलोमीटर तक 1 लाख की जनसंख्या होना आदि का भी इस परियोजना में उल्लंघन हुआ है। यह परमाणु ऊर्जा संयंत्र जिस जगह लगाया जाना प्रस्तावित है उसके 5 किलोमीटर के दायरे में 1 लाख से अधिक आबादी है। इस संयंत्र के लगने से माही बजाज सागर बांध का पूरा पानी निचोड़ लेने से आसपास की सारी भूमि बंजर हो जायेगी।’’
आदिवासी किसान संघर्ष समिति ने भारत के राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा जो इस प्रकार है-
प्रति,
राष्ट्रपति
भारत सरकार, नई दिल्ली
द्वारा : जिला कलेक्टर महोदय, जिला – बाँसवाड़ा
विषय-: बारी, सजावानिया, रेल डेरी, आड़ीभीत, कटुम्बी , नापला आदि क्षेत्र में अणु बिजलीघर नही बनाने एवं इसके एवं इसके विरोध में अनशन करने के संदर्भ में।
महोदया,
निवेदन है कि राजस्थान राज्य के दक्षिणी आँचल में जनजाति बहुल बाँसवाड़ा जिला स्थित है। इस क्षेत्र के बारी, सजवानिया, रेल, डेरी, आड़ीभीत, कटुम्बी, नापला आदि गंाव में अणु बिजली घर बनाना प्रस्तावित किया गया है। इसके लिए विशेषज्ञ दल के द्वारा सर्वे भी कर लिया गया है। इस अणु बिजलीघर बनने से यहां के कृषकों की जमीन अधिग्रहित हो जाएगी जिससे यहां के आदिवासी एवं उनके परिवार बर्बाद हो जाएगें। इसके बनने से यहां रहने वाले लगभग 1022 परिवार और 11525 जनसंख्या प्रभावित होगें। इस अणु बिजली घर के बनाने से पहले निम्न लिखित बिन्दुओं पर विचार करने की आवश्यकता है-
1.दानपुर-छोटी सरवन क्षेत्र में पूर्व में प्रस्तावित ताप बिजलीघर,कोयला बिजलीघर , परमाणु बिजलीघर का कार्य प्रगति पर है।
यहाँ दानपुर में थर्मल पॉवर प्लान्ट की स्थापना की जा रही है जिसके लिए भूमि अधिग्रहित कर प्रभावितों को मुआवजा दिया जा चुका है। लेकिन वे सब लोग अशिक्षित होने एवं कृषि कार्य के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं जानने के कारण आज दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। क्योंकि उनकी आजीविका का साधन कृषि था जो उनसे विकास के नाम पर अधिग्रहित कर ली गई। दानपुर, छोटी सरवन क्षेत्र के आदिवासियांे का आजादी के बाद से अब तक पूर्ण रूप से विकास नही हो पाया है। इस क्षेत्र में अभी तक सड़क, पानी, शिक्षा, चिकित्सा आदि का अभाव है। यह क्षेत्र पिछले 50 वर्ष से पिछड़ा हुआ है।
फेफर में कोयला बिजली घर बनाने का कार्य शुरू हो चुका है। वहां के लोगों की जमीन भी सरकार द्वारा अधिग्रहित कर ली गई है। वहां के लोग भी दर-दर की ठोकरें खा रहें है। क्यांेकि उन्हंे मुआवजे के रूप में जो रूपये दिए गये, वो कुछ ही महीने में खर्च हो गये। ये लोग कम पढ़े-लिखे एवं पिछड़े होने के कारण कृषि के अलावा कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकते हैं।
जब इतने सारे संयंत्र यहां लग रहे है तो इसी क्षेत्र में एक और अणु बिजलीघर बनाने की क्या जरूरत है?
इन संयंत्रों के लगने से होने वाले विकास का लाभ जब यहां के मूल निवासियों को ही नहीं मिलेगा तो यहां के विकास का क्या फायदा? इस क्षेत्र के लोगों का आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। इसी से यह अपनी आजीविका चला रहे है अब इनसे आजीविका के यह साधन भी छीनने का कार्य सरकार कर रही है। यदि इनकी यह कृषि की जमीन अणु बिजलीघर के नाम पर अधिग्रहित की जाती है तो ये और इनके परिवार वाले भूखमरी को शिकार हो जाएगें और काल का ग्रास बन जाएंगे। इससे इनका नामोनिशान मिट जाएगा। इन गरीब, अशिक्षित आदिवासियांे की जमीन के नाम पर सरकार किसका विकास करना चाहती है। सरकार को तो चाहिए कि वो इन गरीब आदिवासियों पर विशेष ध्यान देकर इनका विकास करे न कि उनकी रोजी- रोटी का आधार इनकी कृषि भूमि का अधिग्रहण कर उनकी रोजी रोटी छीनें।
2. अणु बिजलीघर के लिए गरीब, अशिक्षित आदिवासियों की जमीन ही क्यों अधिग्रहीत की जाती है।
अणु बिजली घर बनाने से विकास होता है, तो इस विकास के नाम पर गरीब, अशिक्षित, आदिवासियों की कृषि की भूमि का अधिग्रहण क्यों किया जाता है? ये पहले से ही पिछड़े हुए हैं और अब इनके जीवन का आधार इनकी कृषि की भूमि का अणु बिजलीघर के लिए अधिग्रहण किया जाना प्रस्तावित है। इससे इन लोगों का जीवन ही समाप्त हो जाएगा। जैसे-तैसे ये लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं अब इनसे आजीविका के यह साधन भी छीनने का कार्य सरकार कर रही है। इन गरीब, अशिक्षित आदिवासियांे की जमीन के नाम पर सरकार किसका विकास करना चाहती है। सरकार को तो चाहिए कि वो इन गरीब आदिवासियों पर विशेष ध्यान देकर इनका विकास करे न कि उनकी रोजी-रोटी का आधार इनकी कृषि भूमि का अध्रिहण कर उनकी रोजी रोटी छीने।
3. पूर्व के माही बांध से विस्थापितों की दुर्दशा।
बाँसवाड़ा में 1960 में माही परियोजना का निर्माण शुरू हुआ था जिसमें यहां के 180 गांवों के लोगों की जमीन अधिग्रहित की गई थी। इनकी जमीन के बदले जमीन अन्य स्थानों पर दी गई थी लेकिन उस जमीन पर अन्य लोगांे का कब्जा था जिससे माही विस्थापितों को आंबटित जमीन नहीं मिल पाई और वे आज तक अपने घर नहीं बना पाए व भीख माँगने पर मजबूर हो गए हैं। माही बांध से विस्थापित हुए लोग आज भी पुनर्वास समिति के बैनर तले अपने पुनर्वास के लिए संघर्षरत हैं। विस्थापित हुए सारे किसान आदिवासी अपने कुटुम्ब परिवार से अलग रहने को मजबूर होना पड़ा और जिसको जहां मजदूरी मिली वहां जैसे-तैसे अपना जीवन-निर्वाह कर रहे हैं। उनके हालात भिखारियों से भी बदतर हैं।
ऐसे हालात हमारे भी होने की संभावना है क्योेंकि जब सरकार उनको आज तक न्याय नहीं दे सकी हैं तो हमें क्या न्याय देगी। पूर्व से ही हम व हमारे परिवार, समाज के लोग माही विस्थापित की मार झेल रहे हैं, अतः हम किसी भी हालात में यह अणु बिजली घर नहीं बननें देंगे।
4.. विकसित राष्ट्र अणु बिजलीघर बन्द कर रहे हैं।
विश्व के कई देशों में अणु बिजलीघर संचालित हो रहे हैं। लेकिन उनके दुष्प्रभावों की वजह से अब उनको बन्द करने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। लेकिन हमारी सरकार उनसे सबक न लेकर बर्बादी की कगार पर देश को ले जा रही है। परन्तु अब हम नहीं बनने देंगे बिजली घर।
अतः श्रीमान से निवेदन है कि बारी, सजवानिया, रेल, डेरी आड़ीभीत, कटुम्बी आदि के किसानों की जीविका चलाने वाली जमीन का अधिग्रहण न करके उनका विनाश न करे।
{निदेवक-आदिवासी किसान संघर्ष समिति, बांसवाड़ा}