विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन का राष्ट्रीय सम्मेलन-रैली; 9-10 फरवरी 2016, हैदराबाद
हैदराबाद चलें! विस्थापन के खिलाफ! फासीवाद के खिलाफ!
साम्राज्यवादी विकास मॉडल का पुरजोर विरोध करो!
जनविकास मॉडल का निर्माण करो!
कारपोरेट की दलाली करने वाली सरकार के खिलाफ जनांदोलन तेज करो!
भूमकाल दिवस के अवसर पर
विस्थापन विरोधी जनविकास आन्दोलन का दूसरा केन्द्रीय सम्मेलन व रैली
सम्मेलन
तिथि: 9 व 10 फरवरी, 2016 (सुबह से शाम तक)
स्थान: डा. बी.डी. शर्मा हॉल
( सुन्दरैया विज्ञान केन्द्रम, बाघलिंगमपल्ली, हैदराबाद)।
रैली
तिथिः 10 फरवरी, 2016, समय: शाम 4 बजे।
सर्वविदित है कि वर्तमान समय में भारत सरकार विकास के नाम पर ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटी’, ‘डिजीटल इंडिया’, ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी जैसे जुमले फैंक रही है और इस नाम पर विदेशी-देशी बड़ी कॅपनियों को जनता का जल-जंगल-जमीन व प्राकृतिक सम्पदा हड़पने का खुला न्यौता दे रही है, जबकि यह जनता के लिए जीवन-जिन्दगी जीने का मुख्य जरिया है। इसके लिए सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में बहुसंख्यक जनता की सहमति लेने का प्रावधान को कमजोर करने पर तुली हुई है। आदिवासी जमीन की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगाने वाले छोटा नागपुर काष्तकारी कानून, संथाल परगना काष्तकारी कानून, आंध्र प्रदेष व तेलंगाना में लैंड ट्रांसफर एंड रेगूलेशन एक्ट की धारा 1/70 जैसे कानून में बदलाव करने की केाशिष कर रही है ताकि आदिवासियों की जमीन हड़प को कानूनी बनाया जा सके। मजदूर के काम के घंटे, छटनी, ले-ऑफ व मजदूरी सम्बंधी कानून में बदलाव कर रही है ताकि कम्पनी अपनी मनमानी कर सके। आम जनता ने सरकार के इन कदमों के खिलाफ व्यापक आंदोलन किया और इस कारण सरकार को तत्कालिन तौर पर अपने कदम को पीछे हटाना पड़ा। इन कानूनों में यह जनविरोधी बदलाव विकास का नाम पर ही किया जा रहा है।
1947 के बाद से ही विकास के नाम पर किसानों खासतौर पर आदिवासियों व दलितों की जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक सम्पदा को हड़पा गया। नेहरू ने बड़े बांध व बड़े कारखानों को विकास का मंदिर बता कर लाखों एकड़ जमीन किसानों से छीन ली थी जिससे करोड़ों किसान खासतौर पर आदिवासी और दलित घर से बेघर हो गए व दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हुए। उनकी भाषाएं खत्म हो गई। उनके खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, पर्व-त्यौहार, दूःख-सुख आदि पर गहरा असर पड़ा, जिससे उनका सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना तहस नहस हो गया। इस विकास मॉडल ने महिलाओं को घर की चाहरदिवारी में धकेलने और घर में उनकी भूमिका को कमतर कर दिया क्योंकि विस्थापित परिवारों में महिलाओं की बजाय पुरूषों को ही घर का मुखिया करार देकर सारे अधिकार व धनराशी सौंपी गई। मेहनतकश जनता की जिन्दगी बद से बदतर हो गई।
मोदी नित केन्द्रीय सरकार इसी साम्राज्यवादी विकास मॉडल को ही आक्रमक तरीके से आगे बढ़ाने में लगी है। इससे नए सिरे से बढ़े पैमाने पर विस्थापन, पलायन, भ्रष्टाचारी, बेरोजगारी, महंगाई इत्यादी में बढ़ोतरी के साथ ही आम किसानों, मजदूरों का जीना दूभर हो रहा है। संविधान द्वारा दिए गए नागरिक अधिकार का भयानक हनन किया जा रहा है। इस जनविरोधीष्षोषण-उत्पीड़न की खिलाफत करने वाली जनता, चिंतकों, बुद्धिजीवियों को भी सरकारी दमन का शिकार बनाया जा रहा है। लाखों आंदोलनकारियों पर गैरकानूनी गतिविधी रोकथाम अधिनियम, छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम आदि कानूनों की संगीन धाराओं के तहत फर्जी केस दर्ज किए गए हैं। हजारों जनता को जेल की सलाखों के पीछे बंद किया हुआ है। आपरेषन ग्रीन हंट के नाम पर केन्द्र सरकार मध्य व पूर्वी भारत में लाखों की संख्या में सेना, अर्ध सैनिक बल, वायुसेना आदि तैनात कर जनान्दोलनों को कुचलने की कोषिष कर रही है।
दूसरी तरफ फासीवादी ताकतें जनता को जनता के खिलाफ खड़ा कर रही है। जनता को विभाजित करने के लिए सम्प्रदायिक दंगे करवाए जा रहे है। सलवा जुडुम जैसे गुंडा गिरोह सरकारी षह पर आंदोलनकारी जनता पर जुल्म ढ़हा रहे है। यह सभी चंद पूंजीपतियों के हित में किया जा रहा है। एक ओर, जनता की जीवन स्तर, सुख-सुविधाओं व शिक्षा के मापदंड मानवीय विकास सूचकांक में भारत 188 देशों में 130वें स्थान पर है। भारत में भूखमरी व कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या विश्व भर में सबसे अधिक है। वहीं दूसरी ओर शोषक-शाषक वर्ग के इन 5 फीसदी लोगों की सम्पदा भारत के लगभग 70 फीसदी लोगों की कुल सम्पदा से भी अधिक है। टाटा, अम्बानी, अड़ानी, जिंदल, मित्तल, रेड्डी जैसे बड़े पूंजीपतियों ने इसी विकास मॉडल का फायदा उठा कर अकूत धन-सम्पदा जमा कर ली है। इस विकास मॉडल ने देष में असमानता में बेतहाशा बढ़ोतरी की है।
परंतु इस विकास मॉडल, जमीन अधिग्रहण और कारपोरेट घरानों की इस लूट के खिलाफ भारतीय उपमहाद्वीप में जनांदोलन खड़ा हुआ है। साम्राज्यवादी विकास मॉडल के तहत बनने वाली औद्योगिक परियोजनाओं, बांध, अभयारण्य, एक्सप्रेस हाईवे, झुग्गी-झोपड़ी उजाड़ने, विषेष आर्थिक क्षेत्र, आधारभूत ढ़ांचा निर्माण, खनन, पर्यावरणीय पार्क, तटीय औद्योगिक गलियारा, स्मार्ट सिटी परियोजना, रिटेल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश व मॉल निर्माण आदि के खिलाफ प. बंगाल में नंदीग्राम, सिंगुर, झारखंड में कोयल-कारों, गुमला, संथाल परगना, छत्तीसगढ़ में लोहांडीगुड़ा, नगरनार, ओडिसा में नियमगिरी, जगतसिंहपुर (पोस्को विरोधी आंदोलन), कलिंगनगर, महाराष्ट्र का जैतापुर, तेलंगाना में पोलावरम, उत्तर आंध्र में विशाखा एजेंसी, अरूणाचल-आसाम बार्डर, चंडीगढ़ सहित लगभग सभी राज्यों में जनता व्यापक तौर पर सड़क पर उतर रही है।
विस्थापन, जमीन अधिग्रहण व साम्राज्यवादी विकास मॉडल के खिलाफ जनांदोलन को व्यापक रूप देने के लिए और जनविकास मॉडल का निर्माण करने के लिए विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन का दूसरा सम्मेलन भूमकाल दिवस के अवसर पर हो रहा है जिस दिन अमरवीर गुंडाधर के नेतृत्व में बस्तर के आदिवासियों ने जल, जंगल जमीन पर जनता के अधिकार कायम करने के लिए 10 फरवरी, 1910 कों हमारे गांव में हमारा राज का नारा देते हुए जनसत्ता स्थापित की थी। हम मजदूर-किसानों, छात्र-नौजवानों, प्रगतिषील बुद्धिजीवियों-कलाकारों, लेखकों-रंगकर्मियों, मेहनतकष महिलाओं, छोटे दूकानदारों, पत्रकारों, विस्थापितों से अपील करते हैं कि 9 व 10 फरवरी, 2016 को डा. बी.डी. शर्मा हॉल ( सुन्दरैया विज्ञान केन्द्रम, हैदराबाद) में पहुंचकर एकजुटता का परिचय दें व सम्मेलन को सफल बनाएं।
सम्पर्कः के.एन. पंडित, संयोजक। हैदराबाद में सम्पर्क – जे. रमेश बाबू: 09948410798
केन्द्रीय कार्यालयः सरईटांड, मोहराबादी, रांची, झारखंड janandolan@gmail.com