संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट को साझे संघर्ष ही दे पायेंगे चुनौती : जन संघर्ष समन्वय समिति
जन संघर्ष समन्वय समिति का राष्ट्रीय अधिवेशन 30-31 अगस्त को राजस्थान के जयपुर शहर में संपन्न हुआ। सम्मेलन में देश के 8 राज्यों से लगभग जनांदलोनों के 150 प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। सम्मेलन का आरंभ करते हुए जन संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक दीप सिंह शेखावत ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि हम इन दो दिनों में देश में चल रही संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट तथा उसके खिलाफ चल रहे जनसंघर्षों के बारे में चर्चा करते हुए आगे की रणनीति तय करेंगे। जन संघर्ष समन्वय समिति के सह-संयोजक रामाश्रय यादव ने संगठन के सफर के बारे बताते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के गंगा एक्सप्रेस वे के लिए हुए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चले आंदोलन के बाद उसमें लगे जनसंघर्षों को यह महसूस हुआ कि हमें एक सांझी लड़ाई की जरूरत है जिसके बाद 2012 में जन संघर्ष समन्वय समिति की स्थापना हुई। अपनी स्थापना के बाद से ही जन संघर्ष समन्वय समिति ने देश में चल रहे विभिन्न भूमि अधिग्रहण के आंदोलनों में हस्तक्षेप करने का भरसक प्रयास किया। आज जन संघर्ष समन्वय समिति देश के 8 राज्यों में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि इसकी शुरुआत भूमि अधिग्रहण के मामलों से हुई थी लेकिन समय के साथ-साथ आक्रामक होते पूंजी के दौर में हमें यह महसूस होता है कि जन संघर्ष समन्वय समिति को विभिन्न मुद्दों पर चल रहे आंदोलनों को अब एकजुट करना होगा।
देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों पर बात करते हुए किसान संघर्ष समन्वय समिति के कार्यकारी अध्यक्ष तथा जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सुनीलम ने जन संघर्ष समन्वय समिति को सम्मेलन को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज देश में एक धार्मिक उनमाद बनाया जा रहा है। देश में राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है और हमें इसके खिलाफ एक सशक्त संघर्ष खड़ा करना होगा। इसके लिए हमें संघर्षों में नए लोगों को जोड़ना होगा। आज सबसे बड़ी जरूरत यह है कि संघर्षों के साथ-साथ हम लोगों के बीच वैचारिक एकता भी स्थापित करें। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान ही केवल एक दस्तावेज है जिससे भारत को बचाया जा सकता है। हमें इसके लिए ठोस कार्यक्रम निकालने होंगे।
विस्थापन विरोधी मंच के कुमार चंद मार्डी जी ने कहा कि पिछले 7 साल से राजस्थान के नवलगढ़ में चल रहा सीमेंट प्लांट विरोधी आंदोलन पूरे देश के जनांदोलनो को प्रेरणा दे रहा है। झारकंड में भी हजारों विस्थापित मजदूर किसान आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार ने उद्योगपतियों की सुविधा के लिए झारखंड मुमेंटम किया जिसमें उन्होंने उद्योगपतियों को सस्ती जमीन तथा सस्ती मजदूरी का वायदा किया। उन्होंने का कि झारखंड समेत तीन राज्य अलग हुए थे छत्तीसगढ़ तथा उत्तराखंड। यह तीनों ही राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है और सरकार इनके दोहन के लिए पूंजीपतियों को पूरी छूट दे रही है। हमें इसके खिलाफ संघर्ष के लिए संयुक्त संघर्षों की आवश्यकता है।
नियामगिरी सुरक्षा समिति से लिंगराज आजाद ने कहा कि सरकार के आदिवासी आंदोलनों को माओवाद के साथ जोड़कर उनको तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है जिसे हमें गंभीरता से सोचना चाहिए। नियामगिरी सुरक्षा समिति राष्ट्रीय जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुड़ा है जो एक गांधीवादी संगठन है फिर भी सरकार इसे माओवादी घोषित कर रही है। जनांदोलनों पर राजकीय दमन आक्रामक हो रहा है और हमें इसे चुनौती देना होगा।
सम्मेलन में बिहार से रामाशीष गुप्ता, उत्तर प्रदेश से राजेंद्र मिश्रा, हरियाणा से रमेश बेनीवाल ने भी अपनी बात रखी।
सम्मेलन में करछना आंदोलन के राज बहादुर पटेल की रिहाई, नर्मदा बचाओ आंदोलन पर हुए राजकीय दमन के खिलाफ, देश में फैल रही सांप्रदायिकता, फासीवादी उभार के खिलाफ तथा पशु मेलों पर लगी रोक के खिलाफ, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा चलाए जा रहे किसान आन्दोलन का समर्थन तथा मंदसोर किसान आन्दोलन के समर्थन सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया।
सम्मेलन ने कुमार चंद मार्डी को जन संघर्ष समन्वय समिति को संयोजक तथा कल्याण आनंद और रामाश्रय यादव को सह-संयोजक के रूप में चुना।