नियामगिरी आदिवासी दसरू कडरका गिरफ्तार : रिहाई के लिए आंदोलन तेज
नियामगिरी सुरक्षा समिति के पच्चीस वर्षीय कार्यकर्ता दसरू कडरका को 7 अप्रैल 2016 को मुनिगड़ा बाजार से माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया जबकि गिरफ्तारी के समय न तो उसके पास से किसी तरह का कोई हथियार बरामद हुआ और न ही इस आरोप को प्रमाणित करता कोई सबूत। पुलिस ने उस पर आगजनी, लूट, हत्या और कॉम्बैट आपरेशन के दौरान पुलिस बल पर हमले जैसे कई झूठे केस लगाए हैं। पुलिस का कहना है कि दसरू फरार चल रहा था जबकि मुनिगड़ा बाजार से उसका गिरफ्तार होना ही इस आरोप को बेबुनियाद साबित करता है। इस बात की आशंका है कि उसे हिरासत के दौरन यातना देकर झूठी स्वीकृतियों पर हस्ताक्षर करवाया जाएगा और वेदांता परियोजना को समर्थन देने के लिए मजबूर किया जाएगा।
यह कोई पहली घटना नहीं है। 27 फरवरी को नियामगिरी सुरक्षा समिति के कार्यकर्ता, 20 वर्षीय छात्र, मुंडा कडरका को अर्ध सैनिक बलों द्वारा एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था। 28 नवंबर को नियामगिरी सुरक्षा समिति के नेता द्रिका कडरका ने पुलिस यातना के बाद आत्महत्या कर ली। इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह नियामगिरी के संघर्षशील डोंगरिया कोंद आदिवासियों को डराने धमकाने के लिए सरकार की साजिश है जिससे कि वह वेंदाता कंपनी के खिलाफ लड़ रहे अपने जल-जंगल-जमीन की रक्षा की लड़ाई में घुटने टेक दें। यह डोंगरिया कोंध आदिवासियों,जिन्होंने सर्वोच्च न्यायलय की एक निर्देशिका का पालन करते हुए 2013 में ग्राम सभा की बैठक में खनन परियोजना का सर्वसम्मति से अस्वीकृत कर दिया था, के जनवादी आंदोलन को नष्ट करने की साजिश है
दस हजार से कम आबादी वाली डोंगरिया कोंध जन जाति खासतौर पर एक कमजोर जनजाति समूह के रूप में चिन्हित है। इस तरह से इस समुदाय के युवाओं की हत्या या इस हद तक यातना देना कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएं या फिर उनके संवैधानिक अधिकारों को नजरअंदाज करना एक तरह से इस हाशिए पर खड़े समुदाय पर प्रत्यक्ष हमला है। नियामगिरी लगभग सात सालों से अर्ध सैनिक बलों के कब्जे में है जिसने पर्वतीय इलाकों में एक डर का माहौल व्याप्त कर रखा है। इन सात सालों में नियमागिरी सुरक्षा समिति के अध्यक्ष लाडो सिकाका के अवैध अपहरण और यातना समेत सुरक्षा बलों द्वारा डोंगरिया कोंध आदिवासियों के अनेकों अवैध अपहरण, गिरफ्तारियों और उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं।