मध्य प्रदेश के वन कर्मियों का कारनामा : आदिवासी परिवार को किया बेघर
14 मई, 2017;
म. प्र. हरदा जिले वनग्राम ढेगा के आदिवासीयों को वनग्रामो में जारी बेगार, रिश्वतखोरी और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत पिछले 13 सालों से चुका रहे है जिसमें आज एक और कड़ी जुड़ गई| जब गाँव के सारे लोग तेंदूपत्ता तोड़ने जंगल गए थे तब के फूलवती और सूबेदार के घर के कवेलू वनविभाग वालों ने तोड़ दिया और उसकी ईटा और लकड़ी आदि निकालकर ले गए| उसने एक-एक पैसा जोड़कर इन ईटा, कवेलू और पुरानी लकड़ी का जुगाड़ किया था| अब उसका कैसे बनेगा| घटना के बाद फूलवती ने फोन पर समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी को कहा कि पिछले 13 सालों से वनविभाग के अत्याचार सहते-सहते वो थक गई है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस तरह की घटना के बाद उसे आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा| विभाग व्दारा लगाए सारे मामले में अदालत में झूठे साबित हो गए और सुप्रीम कोर्ट ने भी इन मामलों की जांच के लिए विशेष फोरम भी बनाया मगर यह अत्याचार नहीं रुक रहे| वो इन केसों में अपनी म्हणत की पूरी कमाई गवा बैठी है|
इन मामलों के तनाव से वो अपने पति रामभरोस को कैंसर में खो बैठी; जवान लडकी सुनीता अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है| 2007 में अपनी चचेरी बहन के साथ उस इलाके में आठवी में प्रथम श्रेणी में पास होने वाली पहली सुनीता पहली लडकी थी; वो आगे पढना हरदा भी आई, लेकिन वनविभाग के अत्याचार के चलते उसे आगे की पढाई छोडनी पडी| उस पर चार झूठे मामले लगाए| तथा उसकी लडकी सुनीता, जो उस समय नाब्लिग थी, पर वनकर्मियों को आपहरण का मामला लगाया| फूलवती ने कहा कि वन विभाग ना तो सुप्रीम कोर्ट व्दारा बनाई जिला शिकायत निवारण प्राधिकरण से डरता है और ना वो केंद्र सरकर व्दारा बनाए वन अधिकार कानून को मानता है|
समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी ने बताया कि श्रमिक आदिवासी संगठन वि. राज्य सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन 13 साल के सभी मामलों की जांच के लिए हरदा जिले में एक जिलास्तरीय शिकायत निवारण प्राधिकरण भी बनाया है| वनाधिकार कानून, 2006 में जंगल पर ग्रामसभा का पूरा अधिकार है और लोगों को निस्तार का अधिकार है फिर भी वन विभाग अंग्रेजों के जमाने जैसी कार्यवाही करता है|