संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

बस्तर : जबरन भूमि अधिग्रहण के लिए गांव में आए अधिकारियों पर पेसा कानून के तहत गांव सभा ने ठोंका जुर्माना

छत्तीसगढ़; 15 मई 2017 को बस्तर जिले के तोकापाल ब्लाक के मावलीभाटा के आदिवासियों की जमीन पर पाइप लाइन बिछाने के लिए एनएमडीसी द्वारा ग्राम सभा का आयोजन किया गया था. आदिवासियों ने पारम्परिक ग्राम सभा अपनाते हुए एनएमडीसी की ग्राम सभा का बहिष्कार कर दिया. संविधान में उल्लेखित पांचवी अनुसूची के अन्तरगत परम्परागत गांव सभा द्वारा एडिशनल कलेक्टर व तहसीलदार को पारम्परिक गाँव सभा में बिना अनुमति के प्रवेश करने तथा जबरन भूमि अधिग्रहण के लिए दोषी मानते हुए जुर्माना ठोंका है. पढ़े बस्तर से रिपोर्ट;

मामला अनुसूचित बस्तर जिले के तोकापाल ब्लाक के मावलीभाटा का है, खबर है कि एनएमडीसी द्वारा दुसरे चरण का स्लरी पाइप लाइन बिछाने सोमवार को मावलीभाटा में ग्राम सभा का आयोजन किया गया था.ग्राम वासियों ने पारम्परिक ग्राम सभा अपनाते हुए एनएमडीसी के ग्राम सभा का बहिष्कार कर दिया,ग्रामवासियों ने संविधान में उल्लेखित पांचवी अनुसूची अंतर्ग्रत अनुसूचित क्षेत्रो में परम्परागत रूढिगत ग्राम सभा से अनुमति लेने को कहा. मावली भाठा के ग्रामवासियों ने ग्रामसभा में मांझी,मुखिया, गयांता व ग्रामवासियों द्वारा एडिशनल कलेक्टर व तहसीलदार को पारम्परिक ग्राम सभा में बिना अनुमति के प्रवेश, संविधान के अनुच्छेद19 (5) के उल्लंघन करने के तहत रूढिगत ग्राम सभा द्वारा दंड भी सुनाया गया. छत्तीसगढ़ सरकार के प्रशासनिक अमले को संविधान के अनुच्छेद 13(3) पैरा (क ) 19 का पैरा 5,6 व अनुच्छेद 244 का पैरा 1 का पालन करने को कहा.

जानकारी हो की ग्राम सभा के आयोजन के एनएमडीसी द्वारा व्यवस्था किया गया टेंट, खाना का भी ग्रामीणों ने बहिष्कार कर दिया, ग्रामीणों प्रशासन द्वारा लगया गया टेंट में एकत्रित न होकर पूर्व से निर्धारित स्थल पर एकत्रित होकर जिम्मेदारिन माता से अनुमति लेने तथा सम्पूर्ण दस्तावेज के साथ उपस्थित होने पर ही ग्राम सभा में शामिल होने की बात कही.

विदित हो कि किरन्दुल से नगरनार इस्पात संयत्र तक पाईप लाइन के माध्यम से लौह अयस्क परिवाहन करने स्लरी पाईप लाइन का विस्तार किया जाना है जिसके लिए प्रभावित गांवो के लिए ग्राम सभा का आयोजन किया गया . जहा मावली भाटा में ग्रामीणों ने ग्राम सभा का बहिष्कार करते हुए संविधान के तहत पांचवी अनुसूची में निहित पारम्परिक ग्राम सभा में अनुमति लेने को कहा.जिसका प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद १३(३) क , १९(५) व २४४(१) में निहित है।

ज्ञात हो कि बस्तर में अमूल्य खनिज संपदाओ के दोहन के लिए फर्जी ग्राम सभा, जबरिया ग्राम सभा की खबरे आते रहती है, विभिन्न जगहों पर तो बन्दुक की नोक पर ग्राम सभा करवाया जाता है, यह पहली बार हुआ है कि ग्रामीणों ने संविधान का उल्लेख कर परम्परागत ग्रास सभा में अनुमति लेने की बात कही, ग्रामीणों के संवेधानिक विरोध को देखकर पूरा प्रशासनिक अमला भौचक्का रह गया, प्रशासनिक अमले के पास कोई जवाब नही था, ग्राम सभा में तो ग्रामीणों ने प्रशासनिक अमले पर पारंपरिक दंड (जुर्माना) भी लगाया.

बस्तर में जबरिया कॉरपरेट मुनाफे के लिए जमीन अधिग्रहण का अब संवेधानिक प्रावधानों का बिगुल बज गया है, हालांकि प्रशासनिक अमला इस मामले में पूरी तरह अनभिज्ञ है , जिसे ग्राम वासी संविधान पढ़ा रहे है बस्तर में लुट-घसौट अत्याचार का एक संवेधानिक लड़ाई का डंका आदिवासियों ने बजा दिया है, सरकार इसे कुचलने की पुरे जुगत में लगी है, संविधान का पालन नही करने वाले भी देश द्रोही के भागीदार होते है.

भारत का संविधान में अनुसूचित क्षेत्रो हेतु प्रावधान

13. मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ –

(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।

(2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।

(3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–

(क) ”विधि” के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना,रूढ़ि या प्रथा है ;

स्वातंत्र्य-अधिकार
19. वाक्‌-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण-

(1) सभी नागरिकों को-

(क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,

(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,

(ग) संगम या संघ बनाने का,

(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,

1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29और अनुसूची द्वारा ”पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के या उसके क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन उस राज्य के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

2 संविधान (सतहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 की धारा 2द्वारा अंतःस्थापित ।

3 संविधान (पचासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2द्वारा (17-6-1995) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

4 संविधान (इक्यासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्थापित।

(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, 1और2

(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।

3[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता,राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान,मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ।

(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।

(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।

(5) उक्त खंड के 5[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।

(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 6[उक्त उपखंड की कोई बात—

(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या

(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,

जहाँ तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।

अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि-

(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ‘यथास्थिति, राज्यपाल या राजप्रमुख’ शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।) लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि संसद का या उस राज्य के विधान मंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो।

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