हरियाणा में किसानों ने परमाणु ऊर्जा को नकारा, फर्जी जनसुनवाई हुई बेनकाब
17 जुलाई को फतेहाबाद जिले के गोरखपुर गाँव में आयोजित जनसुनवाई शुरू होने के चालीस मिनट के अंदर ही ग्रामीणों के विरोधस्वरूप बंद कर दी गयी और इसमें शामिल अफसर भाग खड़े हुए. यह जनसुनवाई प्रस्तावित गोरखपुर परमाणु परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों के मूल्यांकन पर बहस के लिए रखी गयी थी.
पर्यावरणीय जनसुनवाइयों के आयोजन के लिए ज़रूरी हर कानूनी और लोकतांत्रिक पद्धति को गोरखपुर में प्रशासन ने ताक पर रख दिया था. जनसुनवाई के लिए ज़रूरी रिपोर्ट को एक महीने पहले क्षेत्रीय आमलोगों से साझा किया जाना और इसका स्थानीय भाषा में अनुवाद ज़रूरी होता है, जो प्रशासन ने नहीं किया था. इस जनसुनवाई के लिए गोरखपुर गाँव को पूरी तरह छावनी बना दिया गया था – दर्जनों पुलिस और अर्द्धसैनिक वाहनियों की तैनाती, धारा 144 लागू करने, दंगा-नियंत्रण वाहनों और आंसू गैस के गोलों के साथ प्रशासन यहाँ पहुंचा था और सभा-स्थल को कंटीले तारों से घेर दिया गया था.
प्रशासन की इस घेरेबंदी, धमकियों और अलोकतांत्रिक जनसुनवाई से स्थानीय लोगों में बहुत गुस्सा व्याप्त था. कम-से-कम आठ हज़ार लोग 17 तारीख को सुबह 11 बजे गोरखपुर स्टेडियम स्थित जनसुनवाई-स्थल पहुंचे और अपने सवालों से सरकारी अफसरों को मजबूर कर दिया. एन.पी.सी.आई.एल. और जिला प्रशासन की बात लोगों ने सूनी तक नहीं और साफ़ कहा की जब वे ज़मीन देने ही नहीं वाले तो पर्यावरणीय सुनवाई का कोई मतलब ही नहीं है. किसान संघर्ष समिति के हंसराज सिवाच, डॉ. राजेन्द्र शर्मा, आज़ादी बचाओ आंदोलन के डॉ. बनवारीलाल शर्मा के सवालों का मौजूद अफसर कोई जवाब नहीं दे पाए तो लोगों ने मुखर विरोध शुरू किया और बिना कोई तोड़-फोड मचाए नारे लगाए और प्रशासन को जनसुनवाई की कार्रवाई बीच में ही छोडकर जाना पड़ा. हालांकि डिप्टी कमिश्नर श्री एम्.एल. कौशिक ने कहा कि विरोधी-दल के नेताओं के शामिल होने और हिंसा की आशंका को देखते हुए जनसुनवाई भंग करनी पड़ी, असल में इस कार्रवाई को बड़ी संख्या में मौजूद स्थानीय ग्रामीणों ने रुकवाया.
ज्ञात रहे कि हरियाणा के फतेहाबाद जिले में पिछले चौबीस महीने से चल रहा परमाणु ऊर्जा-विरोधी आन्दोलन निर्णायक स्थिति में पहुँच गया है। पिछले महीने की 27 जून 2012 को जहां गोरखपुर गाँव के इर्द-गिर्द जांच-पड़ताल कर रही सर्वे टीम को कई घंटों तक रोके रखा और उनसे सवाल-जवाब किए। यह सर्वे-दल नायब तहसीलदार रामचंद्र भूना के नेतृत्व में 4 कृषि विकास अधिकारी, 2 कानूनगो व 10 पटवारियों की टीम गोरखपुर व कुम्हारिया क्षेत्र में वर्तमान में खड़ी फसलों को लेकर आंकलन करने पहुची थी। ग्रामीणों ने साफ तौर पर ऐसे किसी सर्वेक्षण से मना कर दिया। पिछले मई महीने में जहां गोरखपुर उसके पड़ोसी गांवों के किसानों ने भारतीय परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन (NPCIL) को चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में घसीटा और कोर्ट ने कारपोरेशन को तलब किया है, वहीं हरियाणा की राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण आदेश को सेक्शन-9 के तहत जारी कर अनिवार्य बना दिया है और मुआवजे की राशि को बढ़ाकर सभी तरह की जमीनों के लिए चौंतीस लाख रूपए प्रति एकड़ कर दिया है। आगामी 17 जुलाई को अवार्ड भी सुनाया जाना है।
फरवरी महीने की शुरुआत में गोरखपुर के किसानों ने गाँव के इर्द-गिर्द जांच-पड़ताल कर रही एन.पी.सी.आई.एल. की सर्वे टीम को कई घंटों तक रोके रखा और उनसे सवाल-जवाब किए। यह सर्वे-दल एक निजी एजेंसी का था जिसे कारपोरेशन ने भेजा था। ग्रामीणों ने साफ तौर पर ऐसे किसी सर्वेक्षण से मना कर दिया और कहा कि जबतक सरकार हमारे सवालों का जवाब नहीं देती और अधिग्रहण का मामला न्यायालय के अधीन है, कारपोरेशन को इस तरह काम आगे बढाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आन्दोलन में आए इस नाटकीय मोड़ में फतेहाबाद जिले की व्यापक जनता में भी इस मुद्दे में रूचि जताई और क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय मीडिया में भी फतेहाबाद का परमाणु-विरोधी आन्दोलन प्रमुखता से अपनी जगह बना पाया।
किसान संघर्ष समिति के साथी डा. राजेन्द्र शर्मा कहते हैं कि ’’अपने ही नियमों, कानूनों का उल्लंघन सरकार की न बदल सकने वाली आदत बन गयी है। परमाणु ऊर्जा नियंत्रण बोर्ड के मानकों जैसे- पांच किलोमीटर तक प्राकृतिक जंगल होना, 10 किलोमीटर तक 10 हज़ार आबादी होना तथा 30 किलोमीटर तक 1 लाख की जनसंख्या होना आदि का भी इस परियोजना में उल्लंघन हुआ है। यह परमाणु संयंत्र जिस जगह लगाया जाना प्रस्तावित है उसके 5 किलोमीटर के दायरे में 5 लाख से अधिक आबादी है और काजलहेड़ी गांव के पास ही 400 से अधिक काले हिरण है। इस संयंत्र के लगने के बाद क्षेत्र का पूरा पानी निचोड़ लेने से आसपास की सारी भूमि बंजर हो जायेगी।’’
1503 एकड़ में लगेगा संयंत्र : गोरखपुर व कुम्हारिया के बीच परमाणु संयंत्र स्थापित करने की अधिसूचना अगस्त 2010 में जारी की गई थी। सरकार के उपरोक्त फैसले की भनक जैसे ही ग्रामीणों को लगी तो ग्रामीणों में नयी तकनीक के प्रति एक बार तो रूचि बढ़ गई, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि उक्त परमाणु संयंत्र के नाम पर उनकी जमीनों का अधिग्रहण किया जाएगा तो किसानों के हाथ-पांव फूल गए। करीब 1503 एकड़ में लगाए जाने वाले परमाणु संयंत्र के अंतर्गत सिर्फ गोरखपुर गांव की 1313 एकड़ जमीन अधिग्रहण होने की योजना बनाई जा रही है।
ज्ञात रहे कि गोरखपुर परमाणु परियोजना 2800 मैगावाट की है। पानी का मात्र एक साधन – भाखड़ा कैनाल फतेहाबाद ब्रांच है, जिसके पास यह परियोजना लगाने की योजना है। इस नहर पर लाखों किसानों का जीवन निर्भर है। यह नहर 1956 में किसानों के लिए बनाई गई थी।
आंदोलन के महत्वपूर्ण पड़ाव
गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु प्लांट संयंत्र की योजना को सिरे चढ़ाने के लिए सरकार चाहे कितने ही प्रयास कर ले, लेकिन ग्रामीण किसानों के तेवर और भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध छेड़ा गया आंदोलन सरकार के मंसूबों को कामयाबी की कगार तक नहीं पहुचने दे रहा है। हालांकि इस मामले में प्रशासन ने भी कड़ा रवैया अपनाया हुआ है और गत दो माह के दौरान गांव में कई बार दबिश देकर भूमि, जल व पेड़ों की पैमाईश हेतू परमाणु संयंत्र की प्रारंभिक रूप रेखा योजना बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन किसानों के विरोध के चलते सरकार के समक्ष प्रारंभिक दौर में ही मुसीबतें आन पड़ी हैं।
गोरखपुर के किसानों की एकजुटता ने तहसीलदार और सर्वे टीम को बैरंग लौटाया : गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र के लिए 27 जून 2012 को नायब तहसीलदार रामचंद्र भूना के नेतृत्व में 4 कृषि विकास अधिकारी, 2 कानूनगो व 10 पटवारियों की टीम गोरखपुर व कुम्हारिया क्षेत्र में वर्तमान में खड़ी फसलों को लेकर आंकलन करने पहुची। किसानों को भनक लगते ही सैकड़ों लोग लाठियां, जेलियां व अन्य कृषि यंत्र लेकर विरोध में उतर आए।
वन्य विभाग टीम ने क्षेत्र में पेड़ों की गणना शुरू कर दी थी। इस बारे में जब ग्रामीणों को पता चला तो सबसे पहले 3 दर्जन से अधिक महिलाएं लाठियां व जेलियां लेकर खेतों में पहुंच गई, जहां प्रशासन की टीम सर्वे कर रही थी। महिलाओं ने नायब तहसीलदार व पूरी टीम को खेतों से निकालकर रामफल फौजी के खेत की ढाणी के पास बैठा लिया। किसानों के विरोध के कारण सर्वे टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा। प्रशासन ने किसानों को चेतावनी देते हुए कहा की सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी।
गोरखपुर के 50 किसानों पर केस दर्ज : नायब तहसीलदार की शिकायत पर 28 जून 2012 गोरखपुर के 50 किसानों के विरुद्ध सरकारी कार्य में बाधा डालने, कर्मचारियों के साथ मारपीट करने रिकार्ड को जलाने तथा जाति सूचक गाली देने के आरोप में केस दर्ज किया गया है।
ज्ञात रहे कि 27 जून 2012 को खड़ी फसलों का मूल्यांकन करने के लिए सर्वे टीम के सदस्य गोरखपुर गांव में पहुंचे। वे जैसे ही खेतों में पहुंचे तो इसकी भनक परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे किसानों को लगी तो वे मौके पर पहुंच गए। आरोप है कि उन किसानों ने सर्वे टीम को घेर लिया और उनसे कागजात छीनकर जला दिए। भूना के नायब तहसीलदार रामचंद्र की ओर से पुलिस को दी गई शिकायत में बताया गया है कि किसानों ने कर्मचारियों के साथ मारपीट के अलावा उन्हें जातिसूचक गालियां दी। बाद में एसडीएम व डीएसपी ने मौके पर पहुंचकर स्थित को संभाला। नायब तहसीलदार की शिकायत पर पुलिस ने किसान राजकुमार, बदलू, रणधीर को नामजद कर चालीस पचास के विरुद्ध केस दर्ज किया गया है।
किसान संघर्ष समिति के प्रधान हंसराज सिवाच ने कहा कि प्रशासन ने झूठा मुकदमा दर्ज किया है। मुकदमा रद्द नहीं किया गया तो आंदोलन को और तेज किया जायेगा ।
मुआवजा राशि : भूमि अधिग्रहण के नाम पर सरकार ने गोरखपुर के किसानों को 34 लाख 52 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा राशि देने की योजना बनाई है। परंतु परमाणु संयंत्र को जिला व आसपास के क्षेत्र के लिए विनाशकारी होने का हवाला देकर क्षेत्र की जनता मुआवजे को ठुकरा चुके हैं।
काली दीवाली भी मना चुके गोरखपुर के किसान : 22 अक्तूबर 2011 को गोरखपुर परमाणु संयंत्र के विरोध में बैठे किसानों का धरना 436वें दिन तथा अनशन 185वें दिन प्रवेश कर गया था । सरकार द्वारा परमाणु संयंत्र के लिए लगाई सैक्शन 4 व 6 को वापस नहीं लिये जाने पर किसानों ने काली दिवाली मनायी।
भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में तीन किसान शहीद : गोरखपुर गांव के किसान अपनी आजीविका के मुख्य साधन कृषि भूमि को बचाने और सरकार को भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपने मज़बूत इरादे जताने के लिए 7 किसान मरणासन्न हड़ताल पर बैठे। 7वें दिन 3 किसानों की हालत ख़राब हो गई। उन्हें अग्रोहा मेडिकल कालेज में भर्ती करवाया गया। 28 दिसंबर 2010 को एक अनशनकारी किसान भागुराम की मृत्यु हो गई।
सितंबर 2011 माह की शुरूआत में हरियाणा के गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के खिलाफ लड़ रहे किसानों को जब अपने साथी ईश्वर सिंह सिवाच (62 वर्ष) की हृदय आघात से हुई मौत का पता चला तो उन्होंने यह पहचानने में कोई गलती नहीं की कि यह मौत उनके संघर्ष की तीसरी आहुति है। ईश्वर सिंह सिवाच, राम कुमार और भागु राम फतेहाबाद जिला मुख्यालय के सामने चल रहे पिछले चौदह महीनों से धरने में भागीदार उन किसानों में रहे हैं जिन्होंने ठण्ड-गर्मी-बरसात और सरकार की बेरहमी सब सहते हुए यह धरना जारी रखा और इस संघर्ष में शहीद हुए। इस आंदोलन को राष्ट्रीय मीडिया में न के बराबर जगह मिली है; क्योंकि न तो वहां कोई सेलिब्रेटी है, न कोई तमाशा और ना ही गोरखपुर के किसानों की समस्या ऐसी है कि टीवी समाचार के एंकर ब्रेक पर जाने से पहले कुछ सैकेंडों में बिना सत्तावर्ग पर चोट किये उसका समाधान सुझा पाएं।
किसानों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे, देश भर से जनसंगठनों के प्रतिनिधि
अनेक सामाजिक, राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधि किसान भागुराम को श्रद्धांजलि देने गोरखपुर पहुंचे थे। आज़ादी बचाओ आंदोलन, उत्तराखंड वाहिनी आंदोलन, साझा मंच हिसार, माकपा, किसान सभा आदि।
लोगों ने कहा कि ‘‘गोरखपुर गांव में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र का अपनी जान पर खेल कर विरोध कर रहे किसानों के संघर्ष का वे समर्थन करते हैं। मानव जीवन, प्रकृति और खेती का विनाश करने वाली यह तकनीक महंगी होने के साथ-साथ बेहद ख़तरनाक भी है। परमाणु विकिरण से कैंसर, बांझपन और विकलांग बच्चों का जन्म जैसी भयंकर बीमारियों को कोटा के पास स्थित रावतभाटा संयंत्र के क्षेत्र में देखा जा सकता है। यूरेनियम के कचरे के निस्तारण का कोई तरीका अब तक वैज्ञानिकों के पास नहीं है और यह विकिरण तीन लाख साल से भी ज़्यादा सालों तक बनी रहती है। अमेरिका जैसे देशों ने 1990 के बाद से कोई परमाणु संयंत्र अपने देश में नहीं लगाया है।’’
हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कालसे पाटिल का किसानों को समर्थन
जैतापुर (महाराष्ट्र) के परमाणु संयंत्र विरोधी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे मुम्बई हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कालसे पाटिल 27 फरवरी 2012 को किसान संघर्ष समिति द्वारा आयोजित धरने के 567 वें दिन किसानों को समर्थन देने फतेहाबाद पहुचे । धरने को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि परमाणु ऊर्जा किसी भी सूरत में मानव हित में नहीं है क्योंकि इससे निकलने वाली हानिकारक किरणें स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं।
फिलहाल गोरखपुर गांव के किसानों के नेतृत्व में बनी किसान संघर्ष समिति आंदोलन में डटी है। भूमि अधिग्रहण के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन आज परमाणु ऊर्जा के विरोध के रूप में उभरने लगा है और आए दिन अनेक गांवों की पंचायतें, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों व वैज्ञानिकों, वकीलों, नौजवानों का निरंतर सहयोग उनको मिल रहा है। क्षेत्र से लगते 30 गांवों की ग्रामसभा तथा गांव की पंचायतों ने परमाणु संयंत्र के विरूद्ध प्रस्ताव पास कर चुके है। किसान संघर्ष समिति ने आंदोलन को और तेज करने और व्यापक जनता तक अपनी बात पहुंचाने की घोषणा की है. आगामी सत्रह अगस्त को गोरखपुर में आंदोलन के दो साल पूरे होने पर बड़े विरोध-प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा.
अब देखना यह है कि गोरखपुर के किसानों के साथ कलिंगनगर, काठिकुण्ड, जिकरपुर, करछना की पुनरावृत्ति होगी या सिंगुर का इतिहास दोहराया जायेगा यह भविष्य के गर्भ में है।