नर्मदा बांध विस्थापित गुजरात के अनशनकारियों को देश भर के जन संघर्षों का समर्थन
गुजरात के बड़ोदरा शहर के केवड़िया कॉलोनी में नर्मदा बांध विस्थापित आदिवासी पिछले 6 दिनों से क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। अनशनकारियों का कहना है कि पुनर्वास पूरा हुए बिना ही सरदार सरोवर का काम पूरा कर दिया गया है। अनशन पर बैठे इन आंदोलनकारियों का देश भर के जनसंघर्षों ने पूर्ण समर्थन किया है तथा आंदोलन के अंजाम तक पहुंचने तक साथ देने का आश्वासन दिया है। देश भर में आदर्श के रूप में स्थापित किए जा रहे गुजरात मॉडल की वास्तविक तस्वीर इन विस्थापितों की हालात बयां करती है जिनका अपना सब कुछ सरदार सरोवर की वजह से छिन गया है और अभी तक सरकार ने पुनर्वास के नाम पर इनको कुछ भी नहीं दिया है। विस्थापितों के इस आंदोलन का समर्थन कर रहे देश के जनसंघर्षों का 19 जुलाई को जारी संयुक्त बयान हम यहां पर आपके साथ साझा कर रहे हैं;
नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध से विस्थापित गुजरात के आदिवासी सैकड़ों की तादाद में बाँध स्थल से 6 किमी दूर, केवड़िया कॉलोनी में, पुनर्वास एजेंसी के कार्यालय के सामने धरने पर तथा क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। पुनर्वास कार्य अधूरा होते हुए बाँध पूरा करने पर उनका आक्रोश है। वे पीड़ित हैं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों के अनुसार सभी विस्थापितों को खेत ज़मीनें, घर प्लाट, पुनर्वास स्थल पर सभी सुविधाएं नहीं मिलने पर, 15 जुलाई से शुरू किये इस आन्दोलनकारी कार्यक्रम का तथा इन भुक्तभोगी आदिवासियों की तमाम मांगों का हम समर्थन करते हैं ।
सरदार सरोवर से तीन राज्यों के लाखों लोग उजड़ने जा रहे है। आजतक कुल 192 गाँव और 1 नगर जिसमें महाराष्ट्र के करीबन 4000, गुजरात के 5000 और मध्य प्रदेश के 45000 से अधिक परिवार डूब क्षेत्रों में धकेले गए हैं। इनमे से पहाड़ी आदिवासी, महाराष्ट्र और गुजरात के सभी तथा मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के परिवार उजड़ चुके हैं। हजारों परिवार अलग-अलग प्रकार से प्रभावित होते हुए अभी भी मूल गाँव में ही रह रहे है, लेकिन उजड़ने वाले हैं।
सबसे पहले 80 के दशक में गुजरात से प्रभावित हो चुके आदिवासियों को हम आजतक पूर्ण रूप से पुनर्वासित नहीं मानते है क्योंकि कइयों को जमीन मिली है, लेकिन 5 एकड़ से कम व असिंचित, कइयों की बसाहटों में जल जमाव है, कई विस्थापितों के नाम सूची में नहीं है । करीबन 1000 परिवारों की सूची बनाकर, उन्हें गलती से पुनर्वासित किया गया कहकर, 20 साल बाद, उनकी जमीन वापस करने की तैयारी गुजरात सरकार के ही कागजातों से स्पष्ट है ।
घोषित न हुए युवाओं को रोजगार का आश्वाशन व आदेश दिखाकर उजाड़ा गया, लेकिन आजतक उनका कोई विचार नहीं किया गया। गुजरात में व्यस्क पुत्र निश्चित करने की तारीख 1 जनवरी1987 (लेकिन मध्य प्रदेश में भू अर्जन देर से होने के कारण बहुत सारे गाँवों के लिए 2000 के बाद की है।) इसीलिए सैकड़ों आदिवासी विवाहित युवा परिवार आज भी ज़मीन के अधिकार से वंचित हैं। कई बार शिकायत निवारण प्राधिकरण के सामने जाकर, आवेदन देकर भी न्याय नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में पूरा पुनर्वास और तब तक बाँध के दरवाज़े बंद न करने की मांग लेकर बसाहटों के लोगों द्वारा शुरू किये गए इस संघर्ष को हम समर्थन घोषित करते हैं तथा गुजरात सरकार प्रभावितों से तुरंत चर्चा करके जवाब दे, और उनकी मांगे पूरी करे अन्यथा हम भी उनके साथ मैदान में उतरेंगे।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे : 9643349452, 9971058735