संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

न्याय के इंतजार में मारुति के मजदूर

किसी भी विवाद का निपटारा लंबे समय तक न होने से असंतोष बढ़ता है जिसकी परिणिति दुर्भाग्यवश कई बार हिंसा में होती है। 3 वर्ष पूर्व मारुति कार के मानेसर (गुडगांव-हरियाणा) संयंत्र में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी। नतीजतन तमाम मजदूर अभी तक जेल में है। सर्वाेच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद 148 में से 80 मजदूरों को जमानत मिल पाई है। बाकी को कब मिल पाएगी इसका इंतजार है। मारुति सुजुकी वकर्स आंदोलन पर भारत डोगरा का सप्रेस से साभार यह आलेख;

मानेसर (गुडगांव, हरियाणा) में विख्यात मारुति-सुजुकी कंपनी की कार बनाने की राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फैक्ट्री है। यहां के लगभग 148 मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों को पिछले लगभग तीन वर्षों के दौरान निरंतर गहरे दुख-दर्द के दौर से गुजरना पड़ा है। इस त्रासदी से प्रभावित होने वाले अधिकांष मजदूर युवा हैं जिनमें से अनेक का विवाह कुछ समय पहले ही हुआ है व उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं। यह सभी परिवार तीन वर्षों से न्याय के इंतजार में हैं।

इस त्रासदी का आरंभ मानेसर में 18 जुलाई 2012 की एक बेहद दुखद घटना में हुआ जिसमें एक अधिकारी की मृत्यु हो गई थीं। इसके बाद जरूरी था कि मृत अधिकारी के परिवार को समुचित सहायता देने के साथ घटना की पूरी तरह निष्पक्ष जांच की जाती जिससे इस त्रासदी से संबंधित तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आ पाते।

पर शीघ्र ही यह स्पष्ट होने लगा कि निष्पक्ष जांच के स्थान पर इस घटना का उपयोग इस तरह से किया जा रहा है जिससे कि अधिक से अधिक मजदूरों का उत्पीड़न हो। यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक घटना के लिए लगभग 150 मजदूरों को दोषी ठहराया जाएगा। पर ऐसा ही किया गया। जिन मजदूरों का नाम किसी गवाह ने नहीं लिया था, उन्हें भी जेल में ठूंस दिया गया। कुछ मजदूरों को उनके घर जाकर गिरफ्तार किया गया जो उनकेे माता-पिता, पत्नी व छोटे बच्चों के लिए और भी दुखद सिद्ध हुआ क्योंकि किसी अपराध से संबंधित होने का इन मजदूरों का दूर-दूर तक कोई इतिहास ही नहीं था।

इतना ही नहीं, शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि कई गवाहों को झूठी गवाही के लिए तैयार किया गया। यह पता चला कि किसी गवाह ने जिन मजदूरों का नाम लिया वे सब ‘एस’ से शुरू होते थे तो किसी गवाह ने ऐसे नाम लिए जो ‘आर’ से शुरू होते थे। ऐसा व्यवहारिक जीवन में हो नहीं सकता है कि एक समय में एक गवाह वर्णमाला के किसी विषेष अक्षर से शुरू होने वाले मजदूरों को ही एक साथ देख ले, और किसी दूसरे को न देखे।

पहले तो मजदूरों व मजदूरों के परिवारों को एक बड़ा धक्का इतने अधिक मजदूरों की गिरफ्तारी से लगा। पर इसके बाद उन्हें पूरी उम्मीद थी कि शीघ्र ही उनकी जमानत हो जाएगी। पर तब सभी हैरान रह गए जब उस समय की हरियाणा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपने सामाजिक न्याय के तमाम दावों को ताक पर रखकर महंगे से महंगे वकीलों की फीस केवल इसलिए भरी ताकि किसी तरह इन मजदूरों की जमानत को रोका जा सके। सरकार ने लाखों-करोड़ों रुपए सिर्फ मजदूरों की जमानत रोकने के लिए लुटाए।

लगभग 30 महीने तक इनमें से किसी मजदूर को जमानत नहीं मिली। कई कानून विषेषज्ञों ने इस बारे में आष्चर्य व्यक्त किया है कि यह क्यों और कैसे हुआ। इन 30 महीनों के दौरान कुछ मजदूरों के माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों की मृत्यु हो गई। इसका एक कारण यह भी था कि उनको इस गिरफ्तारी से बहुत सदमा लगा था। इनमें से अनेक परिवारों को रोटी व आश्रय जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। एक ओर कमाई का मुख्य स्रोत छिन गया व दूसरी ओर कानूनी सहायता के लिए बहुत दौड़-धूप करनी पड़ी तथा अदालतों के चक्कर लगाने पड़े। इस कारण अधिकांष परिवार कर्जग्रस्त हो गए। माता-पिता को बुढ़ापे में कर्ज लेना पड़ा, जेल व अदालतों के बार-बार चक्कर लगाने पड़े। कई मजदूरों के परिवार दूर रहते हैं उन्हें बार-बार कर्ज लेकर जेल व अदालत आने के लिए यात्राएं करनी पड़ीं।

एक लंबे इंतजार के बाद इस वर्ष मजदूरों व मजदूर परिवारों को उम्मीद की एक किरण सर्वाेच्च न्यायालय के 23 फरवरी के निर्णय से मिली, जिसमें कि इनमें से दो मजदूरों सुनील व कंवलजीत को जमानत दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से अन्य मजदूरों को भी जमानत मिलने का रास्ता प्रषस्त हुआ। मार्च 18 को जिला न्यायालय से एक साथ 79 मजदूरों को जमानत मिली। इसके बावजूद कुछ मजदूर आज भी जेल में हैं।

जमानत मिलने के बाद भी अनेक मजदूरों की कठिनाईयां समाप्त नहीं हुई हैं क्योंकि वे आज भी भीषण अभाव व कर्ज तथा ब्याज की भरपाई से संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें अभी तक नए रोजगार नहीं मिल पाए हैं व पुराने रोजगार संबंधी निर्णय अभी होना है। अब तो उनके लिए उम्मीद का एकमात्र स्रोत यही बचा है कि उन्हें शीघ्र से शीघ्र न्याय मिल जाए। इस न्याय के इंतजार में ही यह मजदूर व मजदूर परिवार आज जी रहे हैं।

इन सबकी सहायता के लिए सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताआंे, जन-संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व कानूनविदों को आगे आना चाहिए ताकि उन्हें न्याय मिल सके व वे अपने जीवन के टूटे हुए तार जोड़ सकें। वही लोकतंत्र सफल कहलाता है जिसमें कमजोर से कमजोर वर्ग को न्याय मिलता है। हाल के समय मजदूरों संबंधी मामलों में यह मारुति मजदूरों का विवाद अत्यधिक चर्चा में रहा है। इस पर बहुत से मजदूरों की निगाह टिकी हुई हैं। यह प्रषिक्षित व हुनरमंद मजदूर देष की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे सकते हैं, पर पहली जरूरत है कि उन्हें न्याय मिले।                                                                

  

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