जन सरोकारों से जुड़े एक नए आन्दोलन का आगाज़…….
यह मांग उठी है केदारघाटी (उत्तराखण्ड) के अगस्त्यमुनि कस्बे से । केदार घाटी में हुए जल प्रलय में अगस्त्यमुनि नगर पंचायत के विजयनगर, सिल्ली, गंगानगर, पुराना देवल आदि स्थानों में भारी नुक्सान पहुंचा था। बड़ी-भारी संख्या में लोग बेघर हो गए, लोगों की सम्पत्ति नष्ट हो गयी, होटल, लॉज आदि बह गए। संपन्नता की श्रेणी में आने वाले लोग एक ही रात में सड़क-छाप हो गए। लोगों को समझ नहीं आ रहा था की यह क्या हो गया? कई लोग बदहवाशी की स्थिति में थे। केदारघाटी में आयी त्रासदी के बाद के हालातों पर पंकज भट्ट का महत्वपूर्ण आलेख;
उत्तराखंड के पहाड़ और प्राकृतिक आपदाओं का लम्बा इतिहास है। पहाड़ों में लगभग हर साल प्राकृतिक आपदा आती है। बादल फटने, भू-स्खलन जैसी घटनाएं अब आम हो गयी हैं। इन घटनाओं में भारी मात्रा में संपत्ति नष्ट होती है। कई लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। सरकार फौरी तौर पर राहत और बचाव के कार्य करती है। आपदा प्रभावितों को नाममात्र की कुछ मुआवजा राशि वितरित की जाती है और सरकार अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है। पीड़ितों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। इसके विपरीत सरकार और उसके कर्ताधर्ताओं की मानों लाटरी खुल गयी हो। वो आपदा के नाम पर अधिक से अधिक पैकेज हड़पने के लिए जुट जाते हैं। जिस आपदा के नाम पर सरकारी तंत्र बड़े-भारी बज़ट को ठिकाने लगा देता है, उस आपदा में पीड़ित लोग शरणार्थियों सा जीवन जीने को विवश होते हैं।