सैन्यवाद, परमाणुकरण और राजकीय दमन के विरोध में उठी आवाजें
परमाणु निरस्त्रीकरण एवं शान्ति गठबंधन
Coalition for Nuclear Disarmament and Peace(CNDP)
30 August, 2014
प्रेस विज्ञप्ति
दिल्ली में नई सत्ता के आने के बाद हुए अपने किस्म के पहले जुटान में मेधा पाटकर, पी. साईनाथ, एडमिरल रामदास, एस.पी उदयकुमार, प्रफुल्ल बिदवई, ज्यां द्रेज़ और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ते सैन्यकरण, नाभिकीय ऊर्जा की सनक और जनांदोलनों व अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बढ़ते राजकीय दमन के चलते भारतीय लोकतंत्र के सामने खड़ी हो रही चुनौतियों को प्रकाशित किया और इनके खिलाफ़ अपनी सामूहिक आवाज़ उठायी।
उद़घाटन सत्र को संबोधित करते हुए भूतपूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास ने राजनीतिक दक्षिणपंथ की ओर बढ़ते हुए ध्रुवीकरण की परिस्थिति में नागरिक समाज और बुद्धिजीवियों की भूमिका पर बल दिया।
प्रसिद्ध पत्रकार पी. साईनाथ ने नाभिकीय हथियारों और युद्ध से जुड़ी पत्रकारिता में सरकारी संस्करण को सामने लाने पर चिंता जताते हुए बताया कि कैसे जापान के हिरोषिमा और नगासाकी में जब अमेरिका ने बम बरसाया था तो पश्चिमी मीडिया ने किस तरह इस घटना का काफी जश्न मनाया था और भारत में टाइम्स ऑफ इंडिया ने उस हमले के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हुए मानवीय विनाष की खबर को सिरे से गायब कर दिया था। उन्होंने कहा कि वैश्विक राजनीति में नाभिकीय युग ही था जिसने पत्रकारिता को दो हिस्सों में बांट दिया जिसमें एक बिरादरी स्टेनोग्राफरों यानी सरकारी संस्करण रिपोर्ट करने वालों की थी और दूसरी जमात पत्रकारों की थी। उन्होंने कहा कि स्टेनोग्राफरों की यह बिरादरी अब धीरे-धीरे कॉरपोरेट स्टेनोग्राफरों में तब्दील होती जा रही है। उनके बाद सभा को संबोधित करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि जंग सिर्फ सीमा पर नहीं जारी है बल्कि इस देश की हर सीमा पर, हर समुद्रतट पर, हर नदी और हर गांव में एक जंग चल रही है।
उन्होंने कहा कि विकास की भाषा, सार्वजनिक भलाई और इंसान की मनुष्येतर उपलब्धियों की भाषा में हिंसा का एक माहौल देश में निर्मित किया जा रहा है। यही भाषा अब लोकतंत्र की भाषा बन चुकी है और आज मीडिया व सूचना विस्फोट के दौर में भी हर तरफ हमले जारी हैं।
पत्रकार प्रफुल्ल बिदवई ने कहा कि नाभिकीयकरण के संबंध में जो वादा किया गया था वह अब टूट चुका है कि नाभिकीय ऊर्जा स्वच्छ, प्रबंधन योग्य और पर्याप्त है। उन्होंने कहा कि नाभिकीय ऊर्जा में करोड़ों डॉलर का निवेष किया जा चुका है उसके बावजूद कोई भी बीमा कंपनी इसे सुरक्षित मानते हुए इन परियोजनाओं को बीमित करने को अब तक तैयार नहीं हुई है लिहाजा ये परियोजनाएं बाजार की कसौटी पर भी नाकाम साबित हो चुकी हैं।
कुडनकुलम में परमाणु संयंत्र विरोधी आंदोलन के नेता एस.पी. उदयकुमार ने जनांदोलन को राष्ट्रविरोधी और राजद्रोही करार दिए जाने के खिलाफ कठोर आपत्ति जतायी। उन्होंने कहा, ‘‘नाभिकीस निर्वाण हमारी मुक्ति के लिए नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य अमेरिकी, फ्रेंच, ऑस्ट्रेलियाई और अन्य उद्वोगों के लिए है।’’
प्रो. अचिन विनायक ने नाभिकीयकरण की दिशा को उलटने के लिए दुनिया भर में परमाणु विरोधी ताकतों की एकजुटता का माहौल निर्मित करने पर बल दिया।
सैन्यकरण के सत्र में ज्यां द्रेज़, सबीका ज़ेहरा, ऋतिका खेड़ा और प्रदीप जगन्नाथन ने इस पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि इसका विरोध एक नैतिक, तार्किक और प्रबोधनवादी अवधारणा पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने बढ़ते सैन्य बजट, इज़रायल जैसे सैन्य राष्ट्रों के साथ बढ़ती करीबी और श्रीलंका, कश्मीर व पूर्वोत्तर पर भारत के दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष के बारे में अपनी बातें रखीं।
यह सम्मेलन दिल्ली के कॉन्सटिटयूषन क्लब में रविवार को भी जारी रहेगा जिसमें बिनायक सेन, वृंदा ग्रोवर, नंदिनी सुंदर, निवेदिता मेनन, कविता कृष्णन और बिमोल अजोइकम सभा को दो सत्रों में बढ़ते राजकीय दमन व भारतीय लोकतंत्र के लिए उसके प्रभाव पर संबोधित करेंगे।
कुमार सुन्दरम – 9810556134