वेदान्त कंपनी और उड़ीसा सरकार के लिए संविधान का कोई मतलब नहीं।
आंदोलनकारियों ने गणतंत्र दिवस पर मनाया ‘काला दिवस’, थाने को मानव श्रृंखला बनाकर घेरा।
भूमि की लूट के विरोधी – जेल के सींकचों के पीछे
ओडिसा के कालाहाण्डी जिले का लाँजीगढ़ ब्लाक भारतीय संविधान के तहत विशेष संरक्षण प्राप्त अनुसूचित क्षेत्रों में आता है। इसी स्थान पर वेदांता कंपनी ने अपना अलमुनाई प्लांट लगा रखा है और इसी क्षेत्र में स्थित नियामगिरि पहाड़ के बेशकीमती बाक्साइट पर उसकी ललचाई निगाहें लगी हुई हैं। स्थानीय ग्रामवासी, आदिवासी अपनी जमीन, जंगल, नदी, झरने, पहाड़ बचाने की लड़ाई लगातार लड़ते आ रहे हैं।
नियामगिरि सुरक्षा समिति, सचेतन नागरिक मंच, लैण्ड लूजर्स एसोसिएशन जैसे स्थानीय संगठनों के साथ ही साथ समाजवादी जन-परिषद के कार्यकर्ता-नेता इस संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
आदिवासी क्षेत्रों को मिले विशेष संवैधानिक संरक्षणों को धता बताने की घटनायें यहां पर आम चलन में हैं। संवैधानिक प्रावधानों तथा पेसा कानून की धज्जियां उड़ाते हुए, बिना ग्राम सभा की सहमति, प्रस्ताव यहां तक कि बिना बताये ही इस इलाके में वेदांत कंपनी सरकारी अमले की मदद से आदिवासियों की जमीनें तथा प्राकृतिक संसाधनों को लूटने में लगी है। इस लूट का विरोध करने वाले राज्य तथा कारपोरेट हिंसा का शिकार बनाये जाते हैं, जेल में निरूद्ध किये जाते हैं तथा पुलिस थाने में कई-कई दिनों तक अनायास लाक अप में बंद रखे जाते हैं।
इसी तरह का एक कारनामा कालाहाण्डी जिले के लांजीगढ़ थाना क्षेत्र के रेंगोपाली गांव में 21 जनवरी 2012 को सामने आया। इस गांव में वेदांता कंपनी ने अपना ‘रेड पाण्ड’ बना रखा है। रेड पाण्ड के बीच से एक रास्ता है जो रेंगोपाली और बसंतपाड़ा गांव को आपस में जोड़ता है। 21 जनवरी को गांव वालों को बिना पूर्व सूचना दिये वेदांत कंपनी एवं उड़ीसा सरकार के कारिंदे स्थानीय बी.डी.ओ., तहसीलदार, थानाध्यक्ष तथा भारी पुलिस बल की अगुआई में पहुंचकर रास्ते को खोदकर खतम करने लगे। गांव के लोगों ने ग्राम सभा की अनुमति लेने तक काम रोकने की बात कही तथा काम बंद करवाने के लिए आगे बढ़े। आगे बढ़ते महिलाओं-पुरुषों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। 25-30 महिलाओं समेत सैकड़ों लोग घायल हो गये। 55 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। 2 दिन तक जिला मुख्यालय भवानी पटना की पुलिस लाइन में रखने के बाद 47 लोगों को जेल भेज दिया गया।
इस घटना की खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गयी। अगले दिन 22 जनवरी 2012 को रेंगोपाली एवं केन्दुबुड्डी गांव की महिलाओं ने नियामगिरि सुरक्षा समिति के अध्यक्ष कुमटी माझी एवं लैण्ड लूजर्स एसोसिएशन के सुनेद्र नाग, मनोरंजन दास तथा सचेतन नागरिक मंच के सत्य नारायन महार की अगुवाई में लांजीगढ़ थाने के अंदर घुसकर धरना आरंभ कर दिया। पुलिस की धमकी-धौंस कारगर नहीं हो पायी। अन्ततः मजबूरन लगभग 24 घण्टे बाद बी.डी.ओ., तहसीलदार को धरना दे रही महिलाओं के बीच में आना पड़ा, काम रोकवाने की घोषणा करनी पड़ी तथा यह कहना पड़ा कि पंचायत चुनावों के बाद ग्राम सभा की सहमति मिलने के बाद ही यह काम करवाया जायेगा। इसके बाद ही 23 जनवरी 2012 को शाम को धरना समाप्त हुआ।
धरना समाप्त होने के बाद नियामगिरि पहाड़ के ऊपरी हिस्से में बसे गांव लाखपादर में 23 जनवरी को ही मीटिंग करके गिरफ्तार साथियों की रिहाई तथा कंपनी एवं सरकारी दमन के विरोध में 26 जनवरी 2012 को पूरे इलाके में गणतंत्र दिवस को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने तथ लांजीगढ़ थाने का घेराव करने का निर्णय लिया गया। इसकी तैयारी के लिए 25 जनवरी को फुलडोमर एवं चन्दनपुर गांवों में बैठकें की गयीं। इन बैठकों में दर्जनों गांवों के लोगों ने हिस्सा लिया तथा 26 जनवरी को जगन्नाथपुर गांव में इकट्ठा होकर जुलूस निकालकर थाने पर प्रदर्शन करने की बात तय पायी गयी। नतन बोत्तेलिया, चन्दनपुर, हरे कृष्णापुर, केन्दुगुडी, चनालेमा, कमन खुटी, कोरला, जुड़ाबंद, रघुनाथपुर, बलभद्रपुर, बिसनाथपुर आदि गांवों में भी बैठकें की गयीं।
26 जनवरी को दोपहर तक कई हजार आदिवासी तथा स्थानीय निवासी जगन्नाथपुर छग पर इकट्ठा हो चुके थे। वहा पर छत्तीसगढ़ पुलिस के महिला-पुरुष कांस्टेबिल्स तथा एस.पी.ओ. के जवान पुलिस अधिकारियों समेत सैकड़ों की तादाद में सुबह से ही मौजूद थे। पुलिस की गाड़ियां उन रास्तों पर भी खड़ी की गयीं थीं जहां से होकर लोगों का आना था। ऐसा पुलिस इसलिए कर रही थी ताकि लोग डरकर वापस चले जायँ, परंतु ऐसा हो नहीं पाया। लांजीगढ़ की दुकानें पुलिस ने बंद करा दीं। ट्रैफिक रोक दिया तथा थाने को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। कालाहाण्डी के राजा का खण्डहरनुमा बना एक महल जो लांजीगढ़ में अवस्थित है, ठीक उसी के सामने एक बिल्डिंग में बी.डी.ओ,, तहसीलदार तथा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे और बाहर भारी पुलिस फोर्स। थाने के ठीक सामने गणतंत्र दिवस का आयोजन लांजीगढ़़ युवक संघ की तरफ से वेदांत कंपनी ने आयोजित कराया था उसे भी जल्दी ही समाप्त करा दिया गया।
दोपहर बाद हाथों में काले झण्डे लेकर आदिवासियों का जुलूस कुमटी माझी, सिकाका लाडो, दई, लिंगराज आजाद, सत्य नारायन महार, सिव संकर भुई, चन्द्र मनि महानन्द, अर्जुन चण्डी, गिरधारी पात्रा, राजकिशोर, सुरेन्द्र नाग, मनोरंजन दास की अगुवाई में जगन्नाथपुर छग से चलकर 3 कि.मी. आगे लांजीगढ़ थाने पहुंचा। मानव श्रृंखला बनाकर थाने की इमारत को चारों तरफ से घेर लिया तथा अपने साथियों की रिहाई की मांग के नारे लगाते रहे। वेदांत कंपनी एवं सरकार विरोधी नारे लगे। अपना जल, जंगल, जमीन, खनिज न छोड़ने का संकल्प दोहराया गया।
मौके पर मौजूद अधिकारियों को माँगपत्र सौंपकर जुलूस पुनः वापस जगन्नाथपुर छग में इकट्ठा हुआ तथा अगले दिन 27 जनवरी को चन्दनपुर गांव में आगे की रणनीति तय करने के लिए बैठक करने का निर्णय लेकर सभी साथी चावल दालमा खाकर अपने-अपने गांव की तरफ वापस चले गये। -सत्य नारायन, मनोरंजन दास, सुरेन्द्र नाग- लांजीगढ़ से