भारत में युरेनियम बेचने आए आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का विरोध करें
आज शाम चार बजे दिल्ली के रेल म्यूज़ियम पर इकठ्ठा हों और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबट के विरोध में आस्ट्रेलियाई दूतावास की तरफ शांतिपूर्ण मार्च में शामिल हों। आस्ट्रेलिया में बड़ी बड़ी युरेनियम खदानें होने के बावजूद एक भी अणु संयंत्र नहीं है और आस्ट्रेलिया का श्वेत-धनी वर्ग दुनिया भर में युरेनियम बेच के मुनाफा कमाता है। खामियाजा वहाँ के मूलनिवासी समुदायों को भुगतना पड़ता है जिनकी ज़मीन पर ये खदाने हैं। इस युरेनियम के आयात के बाद भारत में भी नुकसान यहाँ के गरीब ही झेलेंगे।
आस्ट्रेलिया की सारी शानो-शौकत वहाँ के अश्वेत मूलनिवासियों के नृशंस शोषण और रंगभेद पर टिकी है. जादूगोड़ा की तरह आस्ट्रेलिया की यूरेनियम खदानों के आसपास भी लोग विकिरण-जनित बीमारियां, विस्थापन और गरीबी झेल रहे हैं और दशकों से इसके खिलाफ लड़ रहे हैं. इनमें से कुछ नेताओं से मैं इस अप्रैल में आस्ट्रेलिया में मिला। उनके बीहड़ इलाके देश के भीतर एक उपनिवेश हैं जिनसे बाकी आस्ट्रेलिया का नाता बस हाइवे पर दौड़ते खनिज भरे बड़े-बड़े टैंकरों भर का है. टोनी ऐबट भयानक नस्लभेदी और दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री है जिनका तीखा विरोध खुद वहाँ के लोग रोज़ कर रहे हैं.
जार्ज बुश के साथ हुई डील के आठ साल बाद भी एक भी अमेरिकी अणु-संयत्र भारत में नहीं लग पाया है क्योंकि इनके लिए ईंधन आस्ट्रेलिया से आना है और तकनीकी पुर्जे जापान से। नरेन्द्र मोदी इस हफ्ते जापान गए थे लेकिन वहाँ परमाणु डील नहीं हुई। अब टोनी एबट को रोकने की बारी है। जो लड़ाई हम भारत-अमेरिकी समझौते में हारे थे उसको अब भी जीता जा सकता है।
भारत उन गिने चुने देशों में है जो फुकुशिमा के बाद भी परमाणु संयंत्रों का विस्तार कर रहे हैं. पूरी दुनिया में ज़्यादातर देश परमाणु ऊर्जा से दूर जा रहे हैं अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपना रहे हैं. भारत की सरकार विदेशी कंपनियों के दबाव में अब भी नए संयंत्र लगा रही है जिसका जैतापुर, मीठी विरदी, कूडनकुलम इत्यादि में स्थानीय लोग तेज विरोध कर रहे हैं. आस्ट्रेलिया से आयातित यह यूरेनियम ईंधन इन समुदायों की जिंदगियां तबाह करेगा.
मोदी-टोनी के बीच यह डील दोनों देशों के अमीरों की डील है, गरीबों वंचितों के खिलाफ। इसका विरोध करें।