कटवरिया सराय के रेहड़ी-पटरी दुकनदारों पर पुलिसिया दमन
होली पर्व से पहले लोग खुशियों से लबरेज होते हैं, काफी दिन पहले से ही लोग इस त्यौहार को मनाने की तैयारी में लगे रहते हैं। दुकानदार इस त्यौहार में अपनी दुकानों को सजाते हैं, रंग-बिरंगी पिचकारी, गुलाल तथा होली का सामान आपको रेहड़ी-पटरी पर भी मिल जाता है। दक्षिणी दिल्ली के कटवरीया सराय के रेहड़ी-पटरी दुकानदारों के सामने समस्या बन कर आया। होली का त्यौहार अपने रोजगार को बचाने की चिंता में बीता। ये दुकानदार रेहड़ी-पटरी पर सब्जी, फल बेचा करते थे और उनके घर की महिलाएं वहीं आस-पास के घरों में घरेलू काम भी करती थीं। इसमें से कुछ दुकानदार पास के एलआईजी फ्लैट के गैराज में रहते हैं और इसके बदले वे उनके घर का काम कर दिया करते हैं जिससे एक दूसरे के सुख-दुख में साझेदार बने रहते हैं। अचानक 9 मार्च का दिन उनके लिये आफत बन कर आया। कोई पूर्व नोटिस दिये बिना अचानक पुलिस आकर उनको दुकाने बंद करने को कहती है। फल-सब्जी, चाय, एसटीडी जैसी 20-25 दुकानें एक ही झटके में बंद हो जाती हैं। इन दुकानदारों की समस्या यहीं खत्म नहीं होती, जो पास के एलआईजी फ्लैट के कबूतरखाने जैसे बने गैराज में परिवार सहित रहते थे वहां से भी डंडे के जोर पर भगाया जा रहा है। इनको हटाये जाने को लेकर हमलोगों ने वहां के पीड़ित परिवारों से तथा एमआईजी, एलआईजी और कटवरीया सराय के गांव के लोगों से बात की।
कटवारिया सराय गांव की रामरती ने कहा कि यहां रहने से हम लोगों को भी सुरक्षा लगता है कभी भी देर रात में जाने-आने से कोई भय नहीं लगता। लड़कियां रात में भी बिना डर भय के काल सेंटर से आती जाती हैं। इनके नहीं रहने पर इन जगहों पर गाड़ी पार्किंग होगी और शराब पियेंगे और छेड़खानी की घटना बढ़ेगी।
जेबी सहदेव, जो कि रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर हैं, 36 वर्ष से एमआईजी फ्लैट में रह रहे हैं और पहले वे आर डब्ल्यू ए के उपाध्यक्ष और सचिव भी रह चुके हैं। इन्होंने बताया कि करीब 30 वर्ष पहले उनके और आस-पास के लोगों के प्रयास के द्वारा इन रेहड़ी-पटरी दुकनदारों को यहां लाया गया जिससे कि आस-पास के लोगों की रोजमर्रा की जरूरत पूरी हो सके। इनसे हमारी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था, ये सब्जी-फल बेचते हैं साथ ही साथ इनके घर की महिलायें कालोनियों वालों के घरों में घरेलू काम भी किया करती हैं। जिससे कि आस-पास के बहुत सारे लोगों को फायदा होता है। लेकिन अब राजनीति के द्वारा यहां से इन लोगों को हटाया जा रहा है। लोगों के पास पैसा हो गया है वे अपनी रोजमर्रा की खरीदारी के लिए भी अपने घरेलू नौकर को भेजते हैं, खुद कभी बाहर खरीदारी करने के लिए नहीं जाते, इसलिए इनको प्राब्लम नहीं होता। नौकर दूर से भी जाकर सामन लाने को बाध्य होते हैं।
जया जोसफ, जो कि 16 वर्ष से सत्यम मेडिकल सेन्टर में हेड नर्स का काम करती है वे दुकानदारों के हटाये जाने से बेहद दुखी हैं। उन्होंने बताया कि थकान भरी ड्यूटी के बाद उन्हें पास में आसानी से सब्जी और जरूरत के समान मिल जाते थे। जो समय बचता था वे मरीजों की देख-भाल में लगाते थे। मरीजों को दवा लेने से पहले कुछ खाना होता है इनके कारण उनको तुरंत ही कुछ न कुछ मिल जाता था। कुछ दिन पहले एक मरीज आया उसको दवा देने से पहले उसको कुछ खाना था तो उस को मैं बाहर बताने आयी की उसको किधर जाना है, मरीज डर रहा था कि उसको देर न हो जाये। स्टुडेन्ट्स या देर रात काम करने वाले लोगों के लिए भी सहुलियत थी। उनको सुबह-सुबह या देर रात भी जरूरत का समान मिल जाया करता था।
रिटायर्ड ब्रिगेडियर सत्य प्रकाश एमआईजी फ्लैट्स में रहते हैं, उनके अनुसार ये लोग 1992-1993 से यहां रहते हैं। ‘‘इन दुकानदारों से सिक्युरिटी का कोई प्राबलम नहीं है। टी स्टाल वाले डब्बा नहीं रखते जिससे कि चाय के कप इधर-उधर बिखरे होते हैं। इस रोड पर एक दो बार एक्सीडंेट भी हुआ है (एक्सीडेंट की पुष्टि नहीं हो पाई) इसलिए इन दुकानदारों को एमसीडी पास के खाली जगह या पार्क में (पास में उन्होंने दो जगह भी बताया) जगह देना चाहिए और उन से तहबाजारी वसूल करनी चाहिए। वे नहीं चाहते कि 20 वर्षों से रोजगार करने वाले बेरोजगार हो जायें। उनकी चिंता उनके बच्चों पर भी थी कि वे आस-पास पढ़ाई करते होंगे उनका भी नुकसान होगा।
जनता फ्लैट के गैराज में रहने वाली श्रीमती देवी जो कि मूलतः उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। वे अपने बंद पड़े कमरे के सामने खड़ी हैं वे यहां पर 30 वर्ष से रह रही हैं अपने घर के सामने तख्त पर प्रेस कर अपने परिवार की रोजी रोटी चलाती हैं। उनके पति 22 वर्ष से लपाता हैं, वे अपने बच्चों और रिश्तेदार के साथ रहती हैं। उनके कमर की हड्डी में परेशानी होती है जिससे कि वो और कोई काम भी नहीं कर सकती हैं। उनकी रिश्तेदार सुनीता ने बताया कि शादी के 4 दिन बाद ही 19 वर्ष पहले इस जगह पर आयी थी। तब से लेकर आज तक उनकी किसी के साथ किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन अचानक हमको यहां से भगाया जा रहा है। जो पुलिस वाले आकर भगा रहे हैं हमारे पास आकर अपने कपड़े प्रेस कराते थे पैसे भी नहीं देते थे। हेड कांस्टेबल अजित सिंह आकर उसके तख्त को फेंक रहा है गालियां देता है, धमकी देता है और यही कांस्टेबल पैसा भी लेकर जाता था।
यही कहानी राजस्थान (भरतपुर) की रहने वाली कमलेश की है जो 20 वर्ष से कटवारिया सराय में रहकर प्रेस का काम करती है। कमलेश विधवा है घर में एक अकेली कमाने वाली वही है। वह प्रेस करके अपने दो बेटा और एक बेटी को पांचवे, चौथे तथा तीसरे दर्जे में पढ़ाती है। उनकी भी प्रेस की दुकान बंद करा दीया गय है, वह भी सोचती है कि अब उसके परिवार का क्या होगा, वह कहां जायेगी, उसके पास गांव में भी कुछ नहीं है। यदि उसकी प्रेस की दुकान दुबारा चालू नहीं हुयी तो उनके बच्चों की पढ़ाई छूट जायेगी और अपने बच्चो को काम (बाल मजदूरी) करने को कहेगी।
श्याम सिंह 20-22 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से आये थे, उनका पूरा परिवार यहीं रहता है वे मजदूरी करते हैं, उनका बेटा फल की दुकान लगता था और उनकी पत्नी माया आस-पास के घरो में खाना बनाने और सफाई का काम करती हैं। उनकी मजदूरी और पत्नी के काम करने से इतनी कमाई नहीं हो पाती कि वे परिवार को चला सकें। अगर उनके बेटे की दुकान फिर से नहीं लगी तो उनको और कहीं जाना पड़ेगा, जहां वो भी रोजगार कर सके। उनकी एक बेटी है जो 12वीं की परिक्षा दी है वे उसका शादी करना चाहते हैं लेकिन उनके पास पैसे नहीं है कि बेटी का शादी कर पायें। उनको इतने वर्षों में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई थी।
राशमोहन, जिनकी उम्र 78 वर्ष है, वे पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले के हैं। वे एक कोने में पान की दुकान चलाते थे। जो कि रास्ते से दूर था लेकिन उनकी पान की दुकान भी बंद करा दी गयी और वहां पर गाड़ी पार्क की जाती है। उनके परविार में सात सदस्य हैं उनके घर के बच्चे आरकेपुरम सरकारी स्कूल में पढते हैं जिनके आने जाने का खर्च ही रोज 40रु. है। उनका बेटा आईपीएम में काम करते थे उनकी भी नौकरी छूट गई है अब वो अपने इन बच्चों को आने-जाने का किराया भी नहीं दे पा रहे हैं जिससे की उनकी पढ़ाई छूट सकती है।
एमआईजी, एलाआईजी और कटवारिया सराय के अधिकांशतः लोग नहीं चाह रहे हैं कि उजाड़े जाायें इसलिए उनके समर्थन में एक हस्ताक्षर अभियान चल रहा है जिसका बहुत सारे लोग हस्ताक्षर कर रहे हैं।
यहां जो लोग 20-30 वर्ष से रहते आये हैं जो कि अपने जीवन का आधे से अधिक समय यहां गुजार चुके हैं, क्या उसको यहां का निवासी नहीं माना जाये? क्या निवासी का मतलब वही है जो करोड़ो रु. के फ्लैट खरीद लें? जब सभी लोग यह मान रहे हैं कि इनसे सुरक्षा का कोई खतरा नहीं है बल्कि इनसे तो वे ज्यादा सुरक्षित हैं। दिल्ली में जहंा आज यह माना जा रहा है कि महिलायें कहीं भी सुरक्षित नहीं है वहां इस जगह 11-12 बजे रात को भी महिलायें बिना रोक-टोक आ जा सकती हैं तो क्या इन्हंे इस तरह की चौकदारी का ईनाम दिया जा रहा है? जहां सरकार आज बाल मजदूरी और सर्व शिक्षा अभियान की बात करती है क्या ऐसे उजाड़े जाने से बाल मजदूरी रोकी जा सकती है, जब घर की आमदनी नहीं होगी तो बच्चे कैसे स्कूल जायेंगे? क्या महिलाएं और नौजवानों का रोजगार छीन कर सरकार उनको गलत काम करने के लिए नहीं उकसा रहे हैं? (सरकार रोजगार देने में नकाम रही है और बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रहा है जिससे कि अपराध में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है।) जो बुजुर्ग 70-75 वर्ष के हो गये हैं वे क्या कर सकते हैं? इसका जबाब शायद ही हम सबको मिल पाये।
(आलेख और तसवीरें: सुनील, मानसी)