धरमजयगढ का संघर्ष आख़िरी दौर में
याद रहे कि अभी 1 दिसंबर को ही अजय संचेती (भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के कारोबारी सहयोगी और राज्यसभा सांसद) को मिली कोयला खनन की लीज़ रद्द हो चुकी है। इस आधार पर कि तयशुदा अवधि में उनकी कंपनी खनन नहीं शुरू कर सकी थी। ज़ाहिर है इसलिए कि कंपनी की राह में प्रभावित होनेवाले किसान डट कर खड़े थे, रोड़ा बने हुए थे। उनकी संघर्षशीलता के सामने कंपनी को मुंह की खानी पड़ी।
किसी एक जगह मिली जीत दूसरी जगहों की संघर्षरत जनता को उत्प्रेरित करने का भी काम करती है। धरमजयगढ़ तक भी इस जीत की धमक पहुंची। नये सिरे से और नये जोश के साथ लड़ाई जारी रखने के लिए लोगों ने कमर कसी। तय किया कि जो भी ज़मीन का सौदा करने के लिए गांव पहुंचेगा, उसे खदेड़ दिया जायेगा। उन्हें पता है कि लीज़ बचाने के लिए कंपनी तरह-तरह के हथकंडे आज़मायेगी। उससे निपटने की सुगबुगाहट परवान पर है। वैसे, इसके पहले किसी कंपनी के लोगों का मुंह काला करके गांव से भगाये जाने की भी घटना हो चुकी है।
यह लड़ाकू तेवर भूमि बचाओ संघर्ष समिति समिति और छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ताओं के साझा हस्तक्षेपों का नतीज़ा है।
धरमजयगढ के इलाक़े में 10 कोल ब्लाक आबंटित हो चुके हैं। उनके शुरू होने का मतलब है- धरमजयगढ़ शहर समेत संबंधित गांवों का नामोनिशान मिट जाना। इस डर ने लोगों को एकजुट कर दिया। ग़ौर तलब है कि फ़रवरी 2011 में हुई जन सुनवाई में ग्रामीणों ने डीबी पावर लिमिटेड के प्रस्तावित कोयला खनन का तीखा विरोध किया था- कंपनी द्वारा पेश की गयी पर्यावरण प्रभाव आकलन की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़ा कर दिया था।
धरमजयगढ के वाशिंदे कह रहे हैं कि वे हाथी-भालू के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रह सकते हैं लेकिन डीबी पावर लिमिटेड के साथ नहीं। नारा लगा रहे हैं कि भास्कर समूह होश में आओ। यह वही भास्कर समूह है जो अख़बारी दुनिया का बड़ा खिलाड़ी है। अख़बारों का काम निगरानी करना है लेकिन भास्कर समूह की कंपनी पर धरमजयगढ के लोग निगरानी रख रहे हैं। यह इस दौर का दुर्भाग्य है।
(यह तसवीर अक्टूबर 2006 में रायपुर में छत्तीसगढ़ विस्थापन विरोधी मंच द्वारा आयोजित विशाल रैली के दौरान की है। छायाकार हैं आदियोग)